Tuesday 9 January 2024

चमको हे मार्तंड...


लुढ़का पारा शून्य पर, कुहर-शीत की धूम।
सूरज भी आया मनो,   सर्द हिमालय चूम।।

पाला पड़ा दिमाग पर, हाथ-पाँव सब सुन्न।
बिस्तर में दुबके हुए,      पड़े सभी  हैं टुन्न।।

जेठ मास में क्रुद्ध से, उगल रहे थे आग।
पूस मास में दुम दबा, कहाँ छुपे अब भाग ?।।

मुख पर जब अति ओज था, कर में शक्ति प्रचंड।
बल अपना वह याद कर, चमको हे मार्तंड।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो गूगल से साभार

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