Thursday 21 May 2015

सब किस्मत का फसाना है

अब तक तो भ्रम में जीता था
पर अब ये दिल ने जाना है
दौड़ रहा जिस सुख के पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !

मोहक उसने जाल बिछाया
कैसा सुंदर ख्वाब दिखाया
जब आँख खुली तो मैंने पाया
हर सूं ही पसरा वीराना है !

समझ न थी नादां दिल को
छूने चला ऊँची मंजिल को
मूंदता रहा सच से आँखें
हुआ कैसा ये दीवाना है !

मुद्दत हुई जब मिली थीं खुशियाँ
अब तो मिलती एक झलक नहीं
मेहमां दूर का हो गयी निंदिया
पल भर भी लगती पलक नहीं
               लगा रहता इस तन्हा दिल में
               बस गम का आना जाना है !

कभी खेले थे साथ हमारे
खूब गगन के चाँद सितारे
आगोश में अपने लेने को
खड़ी थीं बहारें बाँह पसारे
                 आज सभी ने किया किनारा
                  सब किस्मत का फसाना है !

                  --- सीमा अग्रवाल---

Wednesday 20 May 2015

सँभल जा ए मानव---

हो स्वार्थ ग्रसित सीने में प्रकृति के,नित खंजर तूने भोंके हैं ।
पग- पग चेतावनी देकर उसने, पग बढ़ने से तेरे रोके हैं ।
नामुमकिन है कुदरत को तेरा, वश में यूँ अपने कर पाना,
सँभल जा मानव, ये ख्वाब विजय के तेरी आँखों के धोखे हैं ।

                        --- सीमा---

हर पल याद तुम्हें मैं करती हूँ

तुमने ही तो ढील दी इतनी
खिंची चली मैं तुम तक आई !
मोहक छबि बसा आँखों में
मन ने अपनी प्यास बुझाई !

खींच रहे हो डोर उधर तुम
इधर जां पर मेरी बन आई !
यूँ न मुँह फेरो अब मुझसे
तुम्हारी ही हूँ मैं,नहीं पराई !

मन के तार जुड़े क्या तुमसे
मैं सुध बुध तन की भूल गयी !
कल्पना में गढ़ रूप तुम्हारा
रूह बाँहों में तुम्हारी झूल गयी !

दूर दूर रह कर भी तो हमने
कितना जीवन साथ जिया है !
जब भी अश्क बहे हैं तुम्हारे
पलकों पर मैंने उन्हें लिया है !

आबाद रहो खुशहाल रहो तुम
फरियाद ये रब से करती हूँ !
तुम्हारे दिल की तो तुम जानो
हरपल याद तुम्हें मैं करती हूँ !

         ---- सीमा-----

सखि री ! मैं हूँ जिसकी दीवानी

सखि री ! मैं हूँ जिसकी दीवानी
वो ही ना जाने इस मन की पीर !
लाख जतन कर करके मैं हारी,
कुछ समझा ना वो निष्ठुर बेपीर !

मन चाहे उससे लिपट मैं जाऊँ
साँसों में उसकी घुलमिल जाऊँ
ढल के उसमें उस सी हो जाऊँ
मिलने को उससे दिल है अधीर !

पल भर उस बिन रह न सकूँ मैं
दिल की किसी से कह न सकूँ मैं
दूरी उससे अब सह न सकूँ मैं
बहता रह-रह अंखियों से नीर !

अधिकार नहीं कुछ उस पर मेरा
फिर भी लगता है मुझे वो मेरा
उस बिन जीवन निस्सार है मेरा
कहो तो दिखा दूँ दिल को चीर !

मैं मीरा उसकी वो मोहन मेरा
अधूरा है उस बिन जीवन मेरा
लाख सितम ढाए ये दुनिया
संग लिये फिरूं उसकी तस्वीर !

                 --- सीमा ---

Saturday 16 May 2015

हर पल याद तुम्हें मैं करती हूँ

तुमने ही तो ढील दी इतनी
खिंची चली मैं तुम तक आई !
मोहक छबि बसा आँखों में
मन ने अपनी प्यास बुझाई !

खींच रहे हो डोर उधर तुम
इधर जां पर मेरी बन आई !
यूँ न मुँह फेरो अब मुझसे
तुम्हारी ही हूँ मैं,नहीं पराई !

मन के तार जुड़े क्या तुमसे
मैं सुध बुध तन की भूल गयी !
कल्पना में गढ़ रूप तुम्हारा
रूह बाँहों में तुम्हारी झूल गयी !

दूर दूर रह कर भी तो हमने
कितना जीवन साथ जिया है !
जब भी अश्क बहे हैं तुम्हारे
पलकों पर मैंने उन्हें लिया है !

आबाद रहो खुशहाल रहो तुम
फरियाद ये रब से करती हूँ !
तुम्हारे दिल की तो तुम जानो
हरपल याद तुम्हें मैं करती हूँ !

      ---- सीमा-----