पंछी जब कलरव करते हैं।
उपवन-उपवन गुल खिलते हैं।
शीतल मंद हवा चलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।
सूरज हो या चाँद-सितारे।
धुंधलके हों या उजियारे।
उपादान सब ये कुदरत के,
जब जो होते साथ हमारे।
सूने मन बाती जलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।
सुईं घड़ी की चलती प्रतिपल।
नदियाँ बहती जातीं कलकल।
पल रोके से कब रुक पाते,
बढ़ते जाते आगे अविरल।
साँझ सुहानी जब ढलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।
वर्षों बाद तुम्हें जब देखा।
उभर आयी स्मित की रेखा।
अनथक हमने तुम्हें निहारा,
किए रहे पर तुम अनदेखा।
आस-किरन रह-रह छलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।
झेल न पाते जग के पहरे।
तिरें नयन में ख्वाब सुनहरे।
इच्छाओं के पंख रुपहले,
दुबकें जाकर दिल में गहरे।
याद न टाले से टलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।
रस्ता तक-तक नयना हारे।
बहते आँसू ज्यों परनारे।
नहीं लिखा था मिलन भाग्य में,
आते कैसे फिर तुम द्वारे।
हसरत भी आँखें मलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।
यंत्रचलित सा हर दिन बीते।
लौटें लेकर अरमां रीते।
सूर्य जलधि के अंक समाता,
हौले से संझा ढलती है।
बात तुम्हारी ही चलती है।