Wednesday 30 August 2023

भ्रातृ चालीसा...


भ्रातृ चालीसा….रक्षा बंधन के पावन पर्व पर

भ्रातृ-चालीसा —

भाई घर की शान है, बहनों का अभिमान।
भाई में बसती सदा, हम बहनों की जान।।

रिश्ता भाई-बहन का, सबसे पावन जान।
इसके जैसा जगत में, मिले नहीं परमान।।

सबसे उजला निर्मल नाता।
भाई-बहन का जग-विख्याता।।१।।

भाँति-भाँति के जन जगती में।
भाँति-भाँति के मन जगती में ।।२।।

नियामकों ने नियम बनाए।
सोच-समझ परिवार बनाए ।।३।।

चुन-चुन गढ़ीं सुदृढ़ इकाई।
मात- पिता, भगिनी औ भाई।।४।।

एक वृंत पर खिले दो फूल।
एक ही मृदा एक ही मूल।।५।।

सबसे प्यारा नाता जग में।
एक खून दौड़े रग-रग में।।६।।

रिश्ता है ये सबसे पावन।
जैसे सब मासों में सावन।।७।।

एक मातु के हम-तुम जाये।
अपने साथ मुझे तुम लाये।।८।।

लिखे- पढ़े- खेले संग – संग।
देखे जीवन के रंग – ढंग।।९।।

तुम बचपन के साथी मेरे।
रहे नित्य ही बनकर प्रेरे।।१०।।

आँख खुली तो देखा तुमको।
आँख मुँदे तक देखूँ तुमको।।११।।

भाई तुम रक्षक बहनों के।
तारे हो उनके नयनों के।।१२।।

तुम्ही बहन के पहले हीरो।
तुम बिन दुनिया लगती जीरो।।१३।।

बुरी नजर से देखा जिसने।
सबक सिखाया उसको तुमने।।१४।।

तुम पर कोई आँच न आए।
हर मुश्किल से प्रभु बचाए।।१५।।

साथ तुम्हारा नित बना रहे।
ये माथ युगों तक तना रहे।।१६।।

राखी सदा कलाई सोहे।
बहना हर पल रस्ता जोहे।।१७।।

जब-जब मुझपे विपदा आई।
आये दौड़ न देर लगाई।।१८।।

जब-जब गिरा मनोबल मेरा।
पाया तब – तब संबल तेरा।।१९।।

पति, संतान, पिता या माता।
कोई न इतना साथ निभाता।।२०।।

अश्रु बहन के देख न पाते।
सम्मुख विधि के अड़ तुम जाते।।२१।।

बिना स्वार्थ दौड़े तुम आते।
पिता तुल्य सब फर्ज निभाते।।२२।।

तुमसे रिश्ते-नाते औ रस।
तुम बिन दुनिया होती नीरस।।२३।।

भाई -दूज पर्व अति पावन।
भर जाता खुशियों से दामन।।२४।।

शरारतें यादें मन भावन।
राखी लेकर आता सावन।।२५।।

स्मृतियाँ बचपन की लुभाएँ।
परत दर परत खुलती जाएँ।।२६।।

सोंधी-सुगंधित-सरस-सुवास।
तन-मन में भर देती उजास।।२७।।

जिसने दूषित नजर उठाई।
तुमने उसको धूल चटाई।।२८।।

बहन अकेली जब घबराती।
देख तुम्हें हिम्मत आ जाती।।२९।।

हर नाते से बढ़कर भ्राता।
हर विपदा में बनता त्राता।।३०।।

माँगूँ एक न हिस्सा तुमसे।
जुड़े रहो तुम पूरे मुझसे।।३१।।

बना रहे नित नेह तुम्हारा।
बना रहे घर बार तुम्हारा।।३२।।

बँधी कलाई नेहिल राखी।
बने अतुलित प्रेम की साखी।।३३।।

धीर गंभीर अति बलशाली।
रहो सुखी नित वैभवशाली।।३४।।

भाई तुम पर नेह अगाधा।
हर सुख-दुख तुमने ही साधा।।३५।।

मात-पिता का तुम्हीं सहारा।
तुम बिन उनका कहाँ गुजारा।।३६।।

धुरी तुम्हीं हो पूरे घर की।
पाओ खुशियाँ दुनिया भर की।।३७।।

कभी न अपना नेह छुड़ाना।
कभी बहन को भूल न जाना।।३८।।

बच्चों के तुम मामा प्यारे।
तुम चंदा तो वो हैं तारे।।३९।।

सब बहनों के प्यारे भाई।
कृपा करें तुम पर रघुराई।।४०।

जब-जब जग में जनम लूँ, मिले तुम्हारा साथ।
दुनिया सारी नाप लूँ, लिए हाथ में हाथ।।

जुग-जुग तक जग में रहें, मुद-मंगल त्यौहार।
मन-मानस करते रहें, खुशियों की बौछार।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Saturday 19 August 2023

तीज मनातीं रुक्मिणी...

तीज मनातीं रुक्मिणी…

सावन आया जानकर, देखा सम्यक् वार।
तीज मनातीं रुक्मिणी, कर सोलह सिंगार।।

चूड़ीं बिछुवे करधनी, गल मुक्तामणि माल।
पाँव महावर शोभता, बेंदी शोभे भाल।।

राधा झूला देखकर, खड़ी पकड़कर डाल।।
तुम बिन सब सूना लगे, आओ मदन गुपाल।।

तुम बिन कुछ सूझे नहीं, समझ न आए रोग।
जोगन -सा मन हो गया, रुचें न जग के भोग।।

तज क्यों हमको चल दिए, क्यों काढ़ा ये बैर ?
जहाँ रहो तुम खुश रहो, सदा मनाएँ खैर।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
“दोहा संग्रह” से

Monday 14 August 2023

मेरी माटी मेरा देश...

मेरी माटी मेरा देश….

मेरी माटी मेरा देश।
निर्मल स्वच्छ रहे परिवेश।
दृष्टि मलिन न डाले कोई,
दूर तलक जाए संदेश।

© सीमा अग्रवाल
चित्र गूगल से साभार

आया पर्व पुनीत...

आया पर्व पुनीत….

मुक्त हुए बंदी कारा से,
हुई हमारी जीत।
याद दिलाने कुर्बानी की,
आया पर्व पुनीत।

बहकी-महकी सकल दिशाएँ,
सुरभित है परिवेश।
थिरक रहा है आज खुशी से,
अपना भारत देश।
कण-कण से सृष्टि के देखो,
फूट रहा संगीत।

गरज बरसकर मेघ गगन से,
करें यही संकेत।
शुद्ध भावना मन में जिसके,
मिले उसे अभिप्रेत।
आज हुए पानी-पानी जो,
हमें समझते क्रीत।

आनंदित सब भारतवासी,
जन-गण-मन उल्लास।
हुई कामना फलित हमारी,
आया दिन वह खास।
आज गा रहा बच्चा-बच्चा,
आजादी के गीत।

मर मिटे जो देश पे, उनके
याद करें अवदान।
व्यर्थ नहीं जाने देंगे हम,
उनका यह बलिदान।
वीर सपूतों पर भारत के,
उमड़ रही है प्रीत।

लापरवाही त्यागें सब जन,
रखें देश का ध्यान।
अपने प्राणों से बढ़कर हो,
मातृभूमि का मान।
गलत नहीं जब कर्म हमारे,
क्यों हों हम भयभीत।

ऐरा-गैरा आ अब कोई,
रच न सके उत्पात।
बंद रखें हम मुट्ठी अपनी,
लगा न पाए घात।
बनें सिरमौर फिर हम जग के,
दोहराएँ अतीत।।

याद दिलाने कुर्बानी की,
आया पर्व पुनीत।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
मनके मेरे मन के से

Saturday 12 August 2023

उठो, जागो, बढ़े चलो बंधु...(अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष)

उठो, जागो, बढ़े चलो बंधु...


उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

सपने सतरंगी आगत के,
सजें तुम्हारी आँखों में।
जज्बा जोश लगन सब मिलकर,
भर दें उड़ान पाँखों में।

रखकर गंतव्य निगाहों में,
अर्जुन सम तीर चलाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

तुम युवक ही रीढ़ समाज की,
टिका है भविष्य तुम्हीं पर।
तुम्हीं देश के कर्णधार हो,
नजरें सभी की तुम्हीं पर।

निज ऊर्जा, महत्वाकांक्षा से
ऊँचा तुम इसे उठाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

मंजिल चूमे कदम तुम्हारे,
भरी हो खुशी से झोली।
देख तुम्हारे करतब न्यारे,
नाचें झूमें हमजोली।

देश तरक्की करे चहुँमुखी,
अग जग में मान बढ़ाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

कुदरत के लघु अवयव को भी,
क्षति न कभी तुम पहुँचाना।
पूज चरण पीपल-बरगद के,
बैठ छाँह में सुस्ताना।

दीन-हीन निरीह जीवों को,
जीवन की आस बँधाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

असामाजिक तत्व समाज के
खड़े राह को रोकें तो,
डाह भरे निज सम्बन्धी भी
छुरा पीठ में भोंकें तो,

करके नजरंदाज सभी को
पथ अपना सुगम बनाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु,
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

– ©® डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
साझा काव्य संग्रह ” वेदांत ” में प्रकाशित