Friday 23 September 2016

उपहास

जब- जब आँख से मेरी एक आँसू छलकता है
दुनिया की आँखों में कहीं उपहास झलकता है
समझाती हूँ मन को ना हुआ कर पागल इतना
वो भी हो गया है जिद्दी कहाँ मेरी सुना करता है
- सीमा

Thursday 22 September 2016

मगरूर बहुत होती हैं खुशियाँ

मगरूर बहुत होती हैं खुशियाँ
पहुँच से दूर बहूत होती हैं खुशियाँ

आगा पीछा कुछ देख ना पातीं
नशे में चूर बहुत होती हैं खुशियाँ

गम तो लगते औबदरंग औ बेनूर
कोहिनूर मगर लगती हैं खुशियाँ

गम तो लपक के गले लग जाते
दूर खड़ी तरसाती हैं खुशियाँ

गम तो मुश्किल से साथ छुड़ाते
पल में छिटक जातीं हैं खुशियाँ

गमों का कोई नाज ना नखरा
कितने नाच नचातीं हैं खुशियाँ

खुद ब खुद गम आकर मिल जाते
माँगे से नहीं मिलती हैं खुशियाँ

गम ही सहलाते दुखती रग जब
मिलते मिलते रह जाती हैंं खुशियाँ

हमें तो बस अपने गम ही प्यारे
जरा भी रास नहीं आती हैं खुशियाँ

- सीमा
22/09/2016

Sunday 11 September 2016

मुझे याद तुम्हारी आती है

बदली जब नभ में छाती है
धरा झूम- झूम इठलाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

स्वाति की एक बूंद बरस जब
चातक की प्यास बुझाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

चन्द्रिका चाँद की चकोरी को
धवल ओढ़नी उढ़ा जब जाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

मधुर स्पर्श पा रवि-करों का
कमलिनी जब खिल खिल जाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

खो जाती हूँ जब ऐसे खयालों में
खुद की भी सुध ना आती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

बेबस, तनहा पाकर जब मुझको
परछांई भी मेरी डराती है
मुझे नींद जरा ना आती है

खोई खोई सूनी अँखियों में मेरी
अश्रु-धार उमड़ तब आती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

आँखों में अनगिन ख्वाब लिए
यूँ ही रात गुजर तब जाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है
              
                बहुत याद तुम्हारी आती है

- सीमा