Sunday 12 February 2017

बस यूँ ही हम हँसते रहे ---


बस यूँ ही हम हँसते रहे
रेखाएँ गम की ढकते रहे

उमड़ा सैलाब दुखों का
एक खुशीे को भटकते रहे

रीत गया दिन आस लगाए
साथ को उनके तरसते रहे

आलिंगन उनका पा न सके
दूर- दूर से ही बस तकते रहे

मन की जमीं सूखी ही रही
नयनों से बदरा बरसते रहे

क्यूं अपनी ही नजरों में हम
बन कर काँटा कसकते रहे

हम बेबस हुए, लाचार हुए
बिलखते रहे, सिसकते रहे

न आया उन्हें तरस भी जरा
बेबसी पे हमारी हँसते रहे

ढाढस तो क्या बँधातेे हमें
फब्तियाँ हम पर कसते रहे

कंचन- सा मन अपना हम
कसौटी पर नित कसते रहे

भाव उनके आसमां पे चढ़े
हम मगर सस्ते के सस्ते रहे

हुए नाकाम, साहिल न मिला
बीच- भंवर हम उलझते रहे

उम्मीदों के पल, तिल- तिल
मुट्ठी से हमारी खिसकते रहे

झेलते रहे सितम पर सितम
ये उम्र न घटी, हम जीते रहे

पिंजर में 'सीमा' के कैद हुए
उड़ने को पंख ये मचलते रहे

- सीमा
12-02-2017

Thursday 9 February 2017

तेरी खातिर -----

आई हूँ जग में तेरी खातिर
जाऊँगी जग से तेरी खातिर

पढ़ें लिखे को चाहेे कितने
मैंने लिखा पर तेरी खातिर

हुनर न कोई लेकर मैं आई
मैंने सीखा सब तेरी खातिर

मुझ पर कितने जुल्म हुए
हँसके सहे सब तेरी खातिर

हर एक बंधन ठुकराया मैंने
लाँघी हर सीमा तेरी खातिर

कुछ भी अर्थ निकाले कोई
जीवन ये मेरा तेरी खातिर

विष का प्याला मिला मुझे
मैंने पिया पर तेरी खातिर

मूक नहीं थी रसना ये मेरी
सी ली पर मैंने तेरी खातिर

कर्ज है तेरा मुझ पर भारी
मैंने पाया जो भी तेरी खातिर

किस्मत हो चाहे कितनी शातिर
बदलेगी एक दिन मेरी खातिर

- सीमा