अनजान पथिक से तुम....
अनजान पथिक से आज तुम, आए हो मेरे द्वारे
खोई हुई मेरी खुशियाँ सारी तलाश रही हूँ तुममें...
कितने सुहाने पल- छिन थे, जब
चाँद-चकोर से हम- तुम मिलते
मैं अपलक तुमको निरखा करती
कैरव अनगिन मन-मानस खिलते
मनमोहिनी वे छवियाँ सारी तलाश रही हूँ तुममें...
तुम साथ वो पुराना भूल गए
जिए हैं मैंने युग संग तुम्हारे
तुमने अपनी दिशा बदल ली
बिखर गए मेरे अरमां ही सारे
मीठी-मीठी वे बतियाँ सारी तलाश रही हूँ तुममें...
रात अंधेरी जब घिर -घिर आती
मन - मानस को मेरे दहलाती
चाँद -सा मुखड़ा देख तुम्हारा
कुमुदिनी-सी मैं खिल-खिल जाती
मधुर रुपहली वे रतियाँ सारी तलाश रही हूँ तुममें...
खोई हुई मेरी खुशियाँ सारी तलाश रही हूँ तुममें...
~~~सीमा~~~