Wednesday 16 December 2015

ए चाँद मेरे

तुझे छूने से भी डरती हूँ ए चाँद मेरे !
कहीं उजला तन ये तेरा मैला ना हो जाए
बस ये अहसास बहुत है जीने के लिए
कि तू है जमाने में सबसे करीब मेरे !

नजर का टीका लगा दिया है
पहले ही मुख पर तेरे
देखूं जो तुझे तो कहीं नजर ही
ना मेरी लग जाए

यूं तो आते जाते रहे हैं
पथिक इस मग से कितने
पर वो शख्स एक तू ही है
जो दिल में गहरे उतरा

रहे तू सदा सलामत
संग चाँदनी के अपनी
इल्तिजा यही बस मेरी
इक फेरा इधर भी करना

~ सीमा

Monday 14 December 2015

बस यूँ ही-

"बस यूं ही"मुस्कुरा दिया करो
अंधेरे में दीया जला दिया करो
उजड़े,  वीरान चमन में दिल के
आस का फूल खिला दिया करो

बन खिवैया डगमगाती कश्ती
खेकर किनारे लगा दिया करो
असहाय बुझते मन- प्राणों में
जीवन की लौ लगा दिया करो

जो घिर आए रात अमा सी काली
चाँद- सा मुख दिखा दिया करो

- सीमा

Friday 11 December 2015

कैसे कह दूँ ---

बातों बातों में पूछ बैठे वो
मेरी बेखुदी का सबब
कैसे कह दूँ कि उनका खयाल ही
मुझे मदहोश कर देता है

खोई हूँ तुममें
खयालों में तुम्हारे
याद रहा क्या
अब सिवा तुम्हारे

फिर उल्फत सी जागी है
कहीं कुछ तो कसर बाकी है ।
यूं ही दिल किसी पर आ जाए
ऐसी तो मेरी फितरत ना थी ।

                      --- सीमा ---

Thursday 3 December 2015

मैंने तुमको देखा---

मैंने तुमको देखा-
    देखा अद्भुत रूप तुम्हारा !

यूँ ही सदा की तरह
दो आँखें
बुन रही थीं ख्वाब
आंकने छवि तुम्हारी
हो रही थीं बेताब
ले संबल उस कल्पना का सतत
गोधूली के धुंधलके में
कुतुहल सा रचते
पावन पद रखते
चले आए थे जब तुम
बस यूं ही अठखेली करते
मेरे कोरे मन के द्वारे
और मैं पगली- सी
निहारती ही रही थी तुम्हें
बेसुध-सी अपलक
निर्निमेष !

ऊंगलियाँ चल रही थीं
अनथक
कभी बनती-सी लगती आकृति
बिगड़ जाती पर
तत्क्षण !
विहँसती आँखों से
लरज गिरते दो आँसू
घुल- मिल जाते
उस छवि में
जिसे आंकने में
बर्ष दर बर्ष
बीतते रहे
कहीं कुछ न कुछ
कसर
रह ही जाती थी
क्यों नहीं
बन पाता था अक्स सही
बस सोचती रह जाती थी
मन मसोस
कभी मुंद जातीं पलकें !

थक कर बेसुध-सी
आज भी तो
यूँ ही
खोई- सी तुम में
मन के फलक पर
आंकती तस्वीर तुम्हारी
कब लुढ़क गिरी कहाँ
कुछ होश रहा न अपना
सहसा खुमारी में
नींद की
होने लगा कुछ अहसास
बिचित्र-सा
मोहक-सा
उन्मादक
अपनी ओर खींचता-सा
बनने लगी शनैः शनैः
आकृति एक
अलौकिक-सी
खुद ब खुद
खिंचती लकीरें
सीधी, आड़ी, गोल
उफ ! ये रूप
मन विस्मित असूझ
कंपकंपाते अधर अवाक्
नयन विस्फारित
देखते रहे अद्भुत नजारा
आलोकित हो उठा था
मन का कोना कोना
हाँ वही तो थी रूपराशि हूबहू
आंकने में जिसे
बिछल गयीं थीं
ऊंगलियाँ मेरी
छलक आया था लहू
बीत गए थे युग अनगिन
कहीं न कहीं
रह ही जाती थी
कोई ना कोई कमी
उफ !
क्या रूप माधुरी थी
समा न पाती थी आँखों में
देख-देख जिसे
मन अघाता न था !

आज जाना मैंने
पल- पल नूतन होते
अद्वितीय इस रूप को
कैसे आँक पाती मैं
कैसे कर पाती आबद्ध
लघु तूलिका में अपनी
व्यापकता उसकी
वो तो समाया था
सृष्टि के कण-कण में
नहीं था मात्र
देह एक
बँधता कैसे
लघु पाश में
मेरी कल्पना के
वो तो था असीम
अनादि, अनंत
और मैं-
मात्र नन्ही-सी
निकली उससे ही
उसकी ही
सीमा में आबद्ध
उससे प्रतिबिंबित
उससे उद्भासित
उसकी प्रतिच्छाया एक !

-सीमा

Sunday 22 November 2015

अब वो बात कहाँ---

अब रही वो पहले सी बात कहाँ
वो सुहाने दिन, मादक रात कहाँ
प्यासा ही तरसता रह जाता मन
प्यार की होती अब बरसात कहाँ

Thursday 19 November 2015

मैं खुद रोशन हो जाऊंगी

रोशनी पाकर सूरज से
ज्यों गगन में चाँद चमकता
जब तुम चमकोगे जग में
मैं खुद रोशन हो जाऊंगी ।

साँझ घिरे तो छुपा लूंगी
प्यार से तुम्हें आँचल में अपने
भोर होते ही मिटा खुद को
तुम में ओझल हो जाऊंगी

- सीमा

Tuesday 10 November 2015

वो अपना कहाँ बेगाना है ---

अब तक तो भ्रम में जीता था
पर अब ये दिल ने जाना है
दौड़ रहा जिस सुख के पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !

मोहक उसने जाल बिछाया
कैसा सुंदर ख्वाब दिखाया
जब आँख खुली तो मैंने पाया
हर सूं पसरा वीराना है !

समझ न थी नादां दिल को
छूने चला ऊँची मंजिल को
मूंदता रहा सच से आँखें
हुआ कैसा ये दीवाना है !

मुद्दत हुई जब मिलीं थीं खुशियाँ
अब तो मिलती इक झलक नहीं
मेहमां दूर का हो गयी निंदिया
पल भर भी लगती पलक नहीं
लगा रहता इस तन्हा दिल में
बस गम का आना- जाना है !

कभी खेले थे साथ हमारे
खूब गगन के चाँद सितारे
आगोश में अपने लेने को
खड़ी थीं बहारें बाँह पसारे
आज सभी ने किया किनारा
सब किस्मत का फसाना है !

कैसे सुनाऊँ अपनी कहानी
सुख से सदा रही अनजानी
सावन- सा बन लुटाया जीवन
जग ने फिर भी कदर ना जानी
खुशियों का नकाब पहने
अश्कों का ताना- बाना है !

दौड़ रहा मन जिसके पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !

- सीमा अग्रवाल

Thursday 5 November 2015

ए मेरे निष्ठुर भाग्य विधाता !

हँसी न आने दी अधरों पर,
अश्कों पर भी रोक लगा दी !
ए मेरे निष्ठुर भाग्य-विधाता,
मुझे तुमने ये कैसी सज़ा दी !

कैसे इठलाते फिरते थे
रोके न किसी के रुकते थे
दिल में मचलते अरमानों की
अर्थी ही हाय ! उठा दी !

अंधड़ आया, बादल गरजे,
और टूटकर बरसा पानी !
नन्हें, नाजुक सपनों की,
सबने मिल हस्ती मिटा दी !

कितने प्यारे दिन थे आए
मन ने अनगिन ख्वाब सजाए
कान भरे किस्मत के किस ने
उसने लिखी हर खुशी मिटा दी !

प्यार ही तो माँगा था अपना
दौलत तो कभी ना माँगी थी
क्यूँ अनचाहा देकर मुझको
अनजानी सी राह दिखा दी !

चैन आए अब कैसे दिल को
कैसे आँखों में निंदिया आए
मसलकर मेरे सुख की कलियाँ
क्यों काँटों की सेज बिछा दी !

क्यूँ आए अब हँसी लबों पर
क्यूँ मन ये झूमे, नाचे, गाऐ
सुला कर मेरी किस्मत तुमने
सोई हुई हर पीर जगा दी !

स्नेह-सागर यूँ तो छलक रहा
पर पहुँच ना उस तक कोई मेरी
बुझ ना सकेगी जो जनम- जनम
क्यों मन में ऐसी प्यास जगा दी !

               ---सीमा अग्रवाल---

Friday 23 October 2015

हमने तुमको देखा है

राम नहीं, रावन भी नहीं
बस तुममें तुमको देखा है !
सबसे अलग सबसे जुदा
बस हमने तुमको देखा है !

छल नहीं, कोई छद्म नहीं
अहं नहीं, कोई दंभ नहीं
स्नेहिल नजरों से मंद-मंद
मुस्कुराते तुमको देखा है !

धवल चंद्र सम रूप तुम्हारा
वृत्त ज्यों निर्मल जल की धारा
स्त्रवनों में मधुरिम बतियों का
रस ढुलकाते तुमको देखा है !

यूँ तो दूर बहुत तुम पास नही
मिलने की भी कोई आस नहीं
आँखें मूंद पर जब भी देखा
अपने दिल में तुमको देखा है !

लुकते, छिपते, ओझल होते
कभी शांत कभी चंचल होते
इंदु सम अपने मन-मानस में
नित अठखेली करते देखा है !

तुम छाए हो जग में चाँद बन कर
आ रही चाँदनी मुझ तक छन कर
ऐसा प्यारा  एक  सपन सलोना
तड़के ही आँखों ने मेरी देखा है !

दुहाई यहाँ आने की तुम्हारे
दे रहे हैं ये पदचिन्ह तुम्हारे
अभी अभी हाँ अभी तो यहीं
मुक्त विचरते तुमको देखा है !

         ---- सीमा ----

Thursday 22 October 2015

राम नहीं, रावन भी नहीं ---

राम नहीं, रावन भी नहीं
बस तुममें तुमको देखा है !
सबसे अलग सबसे जुदा
बस हमने तुमको देखा है !

छल नहीं, कोई छद्म नहीं
अहं नहीं, कोई दंभ नहीं
स्नेहिल नजरों से मंद मंद
मुस्कुराते तुमको देखा है !

धवल चंद्र सम रूप तुम्हारा
वृत्त ज्यों निर्मल जल की धारा
श्रवनों में मधुरिम बतियों का
रस ढुलकाते तुमको देखा है !

यूँ तो दूर हो तुम पास नही
मिलने की कोई आस नहीं
आँख मूंदकर पर जब देखा
इस दिल में तुमको देखा है !

                     --- सीमा ---

Wednesday 21 October 2015

क्यूँ यूँ---

क्यूँ यूँ अजनबी तुम हो गए ! क्यूँ यूँ भाग्य हमारे सो गए ! खुशी से लहलहाती जमीं पर क्यूँ यूँ बीज गम के बो गए ! - सीमा

हँसी ना आने दी अधरों पर

हँसी न आने दी अधरों पर,
अश्कों पर भी रोक लगा दी !
ए मेरे निष्ठुर भाग्य-विधाता,
मुझे तुमने ये कैसी सज़ा दी !

कैसे इठलाते फिरते थे
रोके न किसी के रुकते थे
दिल में मचलते अरमानों की
अर्थी ही हाय ! उठा दी !

अंधड़ आया, बादल गरजे,
और टूटकर बरसा पानी !
नन्हें, नाजुक सपनों की,
सबने मिल हस्ती मिटा दी !

कितने प्यारे दिन थे आए
मन ने अनगिन ख्वाब सजाए
कान भरे किस्मत के किस ने
उसने लिखी हर खुशी मिटा दी !

प्यार ही तो माँगा था अपना
दौलत तो कभी ना माँगी थी
क्यूँ अनचाहा देकर मुझको
अनजानी सी राह दिखा दी !

चैन आए अब कैसे दिल को
कैसे आँखों में निंदिया आए
मसलकर मेरे सुख की कलियाँ
क्यों काँटों की सेज बिछा दी !

क्यूँ आए अब हँसी लबों पर
क्यूँ मन ये झूमे, नाचे, गाऐ
सुला कर मेरी जागी किस्मत
सोई हुई हर पीर जगा दी !

                -----सीमा अग्रवाल-----

Monday 28 September 2015

अब तक यूं ही गँवाया जीवन

तुलसीदास जी द्वारा रचित पद "अब लौं नसानी अब ना नसैहौं" का भावानुवाद---

अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा !
जाग गया हूँ राम-कृपा से, फिर बिस्तर नहीं लगाऊंगा !

हर चिंता को हरने वाली, राम- नाम की मणि मनोहर
सदा ह्रदय में बास करेगी, बनकर उनकी अचल धरोहर
राम-नाम-सेतु पर चढ़कर, भव- सागर तर जाऊंगा ।
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।

अपने वश में जान ये इन्द्रियाँ,खूब हँसी हैं मुझ पर
आज इन्हें काबू में करके, लगाम कसूंगा मैं इन पर
राम-नाम से चलेगा शासन, ऐन्द्रिक- राज हटाऊंगा ।
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।

झूठे रस के लोभ में कितना, मन का भौंरा भटका है
जब-जब इसने चोंच बढ़ाई, तब-तब काँटों में अटका है
राम-रसायन पीने अब, चरणकमलों में इसे बसाऊंगा ।

अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।
जाग गया हूँ राम-कृपा से, फिर बिस्तर नहीं लगाऊंगा ।

                      --- डॉ0 सीमा अग्रवाल ---

Sunday 27 September 2015

सावन-भादो चले गए----

सावन- भादो चले गए, गए गगन से बादल !
पर दो पलकों पर अब भी छाए गहन हैं बादल !
बरसती आँखें अहर्निश, छाया रहतासघनअंधेरा
क्या जानूँ कब जायेंगे इन अँखियन से बादल ! - सीमा

Saturday 19 September 2015

मेरी प्यासी, सूनी अंखियों में

मेरी प्यासी सूनी अंखियों में
तुम बनके सपना छा जाना !
अलसाई सी मुंदती पलकों में
तुम बनके प्राण समा जाना !

कितना तरसते कान ये मेरे
मीठे बोल तुम्हारे सुनने को !
अधरों को कानों तक लाकर
कोई गीत मधुर सा गा जाना !

लगता नहीं मन बिना तुम्हारे
बेचैन- सा हर पल रहता है !
तनहा सुबकते अरमानों को
तुम देके थपकी सुला जाना !

मैं निहारूंगी राह तुम्हारी
तुम चुपके- चुपके आ जाना !
पंथ बुहारती अंखियों को
मनमोहक छवि दिखा जाना !

काँधे पे तुम्हारे चिबुक टिका
जब मैं तुम में खो जाऊंगी !
प्यार से लगा सीने से अपने
तनमन की थकन मिटा जाना !

बाँह थाम मेरी, ले साथ अपने
सतरंगी जहां दिखा लाना !
यूँ मेरे नीरस जीवन में तुम
प्रेम की नदिया बहा जाना !
         

                       --- सीमा---

Wednesday 12 August 2015

एक चकोर चाँद से मिलने चला भाग्यलिपि अपनी बदलने चला ! चुभे पग में इतने कंटक, प्रस्तर ठोकर लगी, जमीं पर आन गिरा ! --- सीमा ---

Wednesday 5 August 2015

मुझे याद तुम्हारी आई---

खोई रही ख्यालों में तुम्हारे
पलभर नींद मुझे ना आई !
तुम क्या जानो तुम बिन,
तन्हा कैसे मैंने रैन बिताई !

तकती रही तस्वीर तुम्हारी
सुधबुध अपनी बिसराई
मुझे याद तुम्हारी आई !

पंछी लौटे नीड़ में अपने
नभ में संध्या घिर आई
मुझे याद तुम्हारी आई !

रोमांचित हो उठी धरा
जब नभ में बदली छाई
मुझे याद तुम्हारी आई !

रो रो व्यथित सावन ने
अश्कों की झड़ी लगाई
मुझे याद तुम्हारी आई !

चाँद के आगोश में जब
निशा शरमाई सकुचाई
मुझे याद तुम्हारी आई

चुपके से आ चकोर को
चाँद ने चादर धवल उढ़ाई
मुझे याद तुम्हारी आई !

                   --- सीमा ---

Monday 3 August 2015

ए रुह मेरी----

ए रुह मेरी ! तू चंद पलों को
जा प्रिय से मेरे मिलकर आ
जा दबे पाँव से चुपके चुपके
हाले दिल उनसे कहकर आ !

पड़ी माथे उनके एक अलक
जगाती प्यार की मधुर ललक
चूम आ उन उनींदी पलकों को
भर ला आँखों में प्रिय झलक

खुद को बिसारूँ उन्हें निहारूँ
छवि ऐसी मधुर आँककर ला !

सोये मिलें गर प्रियवर मेरे
लिये नयनों में ख्वाब मृदुल
गर्व से दीपित मुखमंडल पर
थिरकती हो मुस्कान अतुल

हौले से मासूम कपोलों पर
चुंबन मधुर अर्पित कर आ !

औरों का ख्याल तो रखते हैं
पर खुद की उन्हें परवाह नहीं
सबकी चाह करते हैं पूरी, पर
अपनी उनकी कोई चाह नहीं

तू प्यार से उनके तन मन को
सहला के सारी थकन मिटा !

भोली भाली शक्ल है उनकी
सबपे भारी अक्ल है उनकी
ऐसी निराली है उनकी अदा
देखेगी जो तू भी होगी फिदा

तुझे रुचे जो सबसे ज्यादा
छवि ऐसी एक छांटकर ला !

बहुत प्यारी हैं उनकी बातें
हँसते हँसते कट जाएँ रातें
कली मन की खिल जाती
जब होतीं प्यार की बरसातें

ले, सूनी अंखियों में अपनी
लाज का काजल आंजकर जा !

पहचान तो उन्हें तू लेगी ना
देख जा कुछ छवियाँ न्यारी
चाँद सा उजला रूप उनका
भोले शंकर सी सूरत प्यारी

बाँकी छवि कान्हा सी उनकी
तू दिल में अपने टाँककर जा !

भोली सी उस मुखाकृति पर
क्यों उदासी की परतें गहरी
पथ में इतने अवरोध हैं कैसे
जिंदगी जहाँ आकर है ठहरी

क्यूँ इतने गम पाले हैं मन में
तू भीतर उनके झाँककर आ !

ए रूह मेरी तू चंद पलों को
जा प्रिय से मेरे मिलकर आ
पावन रज उनके चरणों की
मस्तक पर मेरे लाके सजा !

करके पूरी ख्वाहिश ये मेरी
आहिस्ता मुझमें आन समा !

ए रूह मेरी-----

                         --- सीमा ---

Monday 20 July 2015

जब जब कोशिश करती हूँ -----

जब जब कोशिश करती हूँ उसे भुलाने की !
तब और मचल उठती है तमन्ना, पाने की !

निष्ठुर सनम क्या कदर प्यार की जाने
लिये बैठा है वो तो कसम, ना आने की !

दिल का गम आँखों से सावन बन बरसेगा
जगह मिली बादल को इन पलकों पर छाने की !

एक ना एक दिन तो दिल उसका पिघलेगा
पूरी कर ले चाह वो अपनी, सितम ढाने की !

यूँ ही कैसे आए हँसी लबों पर बोलो
कोई तो वजह हो आखिर, मुस्कुराने की !

ऐसे खफा हुआ कि मुड़ के ना देखा पीछे
नाकाम रही हर कोशिश, उसे मनाने की !

                       --- सीमा ---

Saturday 18 July 2015

जीवन अपना राम हवाले

घुमड़ आए हैं नील गगन में
गम के बादल काले-काले
ढुलक पड़े आँखों से सावन
रुके ना किसी के सम्हाले !

कितने दिनों की उमस समेटे
घुट रहा था भीतर ही भीतर
आज सब्र का बाँध टूट गया
खोल दिये सब दिल के ताले !

एक-एक कर मन-माला में
नाजुक सपने पिरो रहा था
मसल गए तूफां के हाथों
अरमां सब उसके मतवाले !

टप टप गिरते आँसू जमीं पर
मर्म व्यथा का खोल रहे हैं
कान खोलकर सुनो गौर से
कैसे दर्द भरे हैं उसके नाले !

आँखें धुँधली, राह अँधेरी
पथ की कोई पहचान नहीं
काँटे चुभते कदम- कदम
पाँव पड़े हैं अनगिन छाले !

कोई ना संगी साथी अपना
हर सुख लगता जैसे सपना
कभी तो पार लगेगी नैया
जीवन अपना राम हवाले !

                 --- सीमा ---

Thursday 9 July 2015

तुम्हें याद तो मेरी आती होगी

कभी तो हिचकी आती होगी !
याद मेरी तुम्हें दिलाती होगी !
कितने नाम तुम लेते होंगे,पर
नाम से मेरे रुक जाती होगी !

जब अश्कों का भार सम्हाले
नभ में घटा घिर आती होगी !
तरस तो मुझपर आता होगा
जो हाल वो मेरा बताती होगी !
        
          --- सीमा ---

Thursday 25 June 2015

तेरे बिना

मेरा बजूद अधूरा तेरे बिना !
मिलूँ खुद से कैसे तेरे बिना !
प्राण तो जा बसे तुझमें मेरे,
बता जीऊँ मैं कैसे तेरे बिना !

           --- सीमा ---

Monday 15 June 2015

मेरे चाँद की---

मेरे चाँद की है हर अदा निराली
देख जिसे रात भी हुई मतवाली
नजर न हटाती पल भर अपनी
करती रूप की उसके रखवाली
                  --- सीमा ---

मेरे चाँद ने अपनी दिशा बदल ली
बंद किया इधर अब आना जाना !
वो न जाने, इक झलक को उसकी
कैसे रात भर तड़पे एक दीवाना !
          --- सीमा ---

Sunday 7 June 2015

चाहत चकोर की---

चाहत चकोर की चाँद भला क्या जाने !
एक से बढ़कर एक उसके कई दीवाने !

कितनी गहरी चाहत किस परवाने की
तलबगारों से घिरी शमा क्या पहचाने !

रो रोकर वो कहे अपनी प्रणय कहानी
दिल की लगी को उसकी कोई ना जाने !

सिर धुनता हाथ मलता प्यासा रह जाता
उसे क्या खुले हों पास कितने मयखाने !

हो लेता है निहाल देख दूर से प्रिय को
चला है पगला अनन्य प्रेम की रीत निभाने !

किस सोच में खोई "सीमा" तू क्या ना जाने
भाते हैं सबको ही तितलियों के पंख सुहाने !

                       ---सीमा---

चुपके से ---

लो पास तुम्हारे चली मैं आई चुपके से !
खोलो ना दिल के द्वार अपने चुपके से !

देखो ना घर के काम मैं सारे कर आई
छुपा लो अपने पास मुझे अब चुपके से !

मुझे तो तुममें रब का नूर नजर आता है
देखूं जो तुम्हें खिसक जाते गम चुपके से !

अनथक छवि निहारतीं बावरी अँखियाँ
जाने कब आ जाती नींद उनमें चुपके से !

तनिक मूंद लो आँखें, लाज हमें आती है
हमें कहनी है दिल की बात तुम्हें चुपके से !

चाह यही बस, कभी दूर न खुद से करना
निकल जाएंगे वरना प्राण हमारे चुपके से !

                       --- सीमा ---

Thursday 21 May 2015

सब किस्मत का फसाना है

अब तक तो भ्रम में जीता था
पर अब ये दिल ने जाना है
दौड़ रहा जिस सुख के पीछे
वो अपना कहाँ बेगाना है !

मोहक उसने जाल बिछाया
कैसा सुंदर ख्वाब दिखाया
जब आँख खुली तो मैंने पाया
हर सूं ही पसरा वीराना है !

समझ न थी नादां दिल को
छूने चला ऊँची मंजिल को
मूंदता रहा सच से आँखें
हुआ कैसा ये दीवाना है !

मुद्दत हुई जब मिली थीं खुशियाँ
अब तो मिलती एक झलक नहीं
मेहमां दूर का हो गयी निंदिया
पल भर भी लगती पलक नहीं
               लगा रहता इस तन्हा दिल में
               बस गम का आना जाना है !

कभी खेले थे साथ हमारे
खूब गगन के चाँद सितारे
आगोश में अपने लेने को
खड़ी थीं बहारें बाँह पसारे
                 आज सभी ने किया किनारा
                  सब किस्मत का फसाना है !

                  --- सीमा अग्रवाल---

Wednesday 20 May 2015

सँभल जा ए मानव---

हो स्वार्थ ग्रसित सीने में प्रकृति के,नित खंजर तूने भोंके हैं ।
पग- पग चेतावनी देकर उसने, पग बढ़ने से तेरे रोके हैं ।
नामुमकिन है कुदरत को तेरा, वश में यूँ अपने कर पाना,
सँभल जा मानव, ये ख्वाब विजय के तेरी आँखों के धोखे हैं ।

                        --- सीमा---

हर पल याद तुम्हें मैं करती हूँ

तुमने ही तो ढील दी इतनी
खिंची चली मैं तुम तक आई !
मोहक छबि बसा आँखों में
मन ने अपनी प्यास बुझाई !

खींच रहे हो डोर उधर तुम
इधर जां पर मेरी बन आई !
यूँ न मुँह फेरो अब मुझसे
तुम्हारी ही हूँ मैं,नहीं पराई !

मन के तार जुड़े क्या तुमसे
मैं सुध बुध तन की भूल गयी !
कल्पना में गढ़ रूप तुम्हारा
रूह बाँहों में तुम्हारी झूल गयी !

दूर दूर रह कर भी तो हमने
कितना जीवन साथ जिया है !
जब भी अश्क बहे हैं तुम्हारे
पलकों पर मैंने उन्हें लिया है !

आबाद रहो खुशहाल रहो तुम
फरियाद ये रब से करती हूँ !
तुम्हारे दिल की तो तुम जानो
हरपल याद तुम्हें मैं करती हूँ !

         ---- सीमा-----

सखि री ! मैं हूँ जिसकी दीवानी

सखि री ! मैं हूँ जिसकी दीवानी
वो ही ना जाने इस मन की पीर !
लाख जतन कर करके मैं हारी,
कुछ समझा ना वो निष्ठुर बेपीर !

मन चाहे उससे लिपट मैं जाऊँ
साँसों में उसकी घुलमिल जाऊँ
ढल के उसमें उस सी हो जाऊँ
मिलने को उससे दिल है अधीर !

पल भर उस बिन रह न सकूँ मैं
दिल की किसी से कह न सकूँ मैं
दूरी उससे अब सह न सकूँ मैं
बहता रह-रह अंखियों से नीर !

अधिकार नहीं कुछ उस पर मेरा
फिर भी लगता है मुझे वो मेरा
उस बिन जीवन निस्सार है मेरा
कहो तो दिखा दूँ दिल को चीर !

मैं मीरा उसकी वो मोहन मेरा
अधूरा है उस बिन जीवन मेरा
लाख सितम ढाए ये दुनिया
संग लिये फिरूं उसकी तस्वीर !

                 --- सीमा ---

Saturday 16 May 2015

हर पल याद तुम्हें मैं करती हूँ

तुमने ही तो ढील दी इतनी
खिंची चली मैं तुम तक आई !
मोहक छबि बसा आँखों में
मन ने अपनी प्यास बुझाई !

खींच रहे हो डोर उधर तुम
इधर जां पर मेरी बन आई !
यूँ न मुँह फेरो अब मुझसे
तुम्हारी ही हूँ मैं,नहीं पराई !

मन के तार जुड़े क्या तुमसे
मैं सुध बुध तन की भूल गयी !
कल्पना में गढ़ रूप तुम्हारा
रूह बाँहों में तुम्हारी झूल गयी !

दूर दूर रह कर भी तो हमने
कितना जीवन साथ जिया है !
जब भी अश्क बहे हैं तुम्हारे
पलकों पर मैंने उन्हें लिया है !

आबाद रहो खुशहाल रहो तुम
फरियाद ये रब से करती हूँ !
तुम्हारे दिल की तो तुम जानो
हरपल याद तुम्हें मैं करती हूँ !

      ---- सीमा-----

Sunday 26 April 2015

भूकंप : एक दानव

आगत से
बेखबर
सोया था
एक क्षेत्र समूचा
ख्वाब लिए
भिन्न-भिन्न नयन में ।
सहसा
भग्न हुई तन्द्रा
हलचल हुई
धरती के तन में ।
उछल पड़ीं चट्टानें
हिलने लगीं नदियाँ
गेंद-सी
पारे-सी ।
दफन हुई हरियाली
आकाश सहम उठा
ठिठक गया
पल भर को ।
देखता रहा
भू पर
आए कहर को ।
देखता ही रहा
बस बेबस !
दानव भूकंप का
अपने विशाल जबड़ों से
निगल गया
पलक झपकते
उफ !
कितनी जानें
कौन जाने !
जानता नहीं कौन
भरोसा नहीं
एक पल की भी
जिंदगी का
तोड़े पर कौन
गुमान
अदृश्य की
मुट्ठी में कैद
इस नन्ही-सी
जिंदगी का !

               --- सीमा अग्रवाल ---

आशा : एक चिराग

हर बार
बना महल
सपनों का -
ढह गया !
खण्डहर में पर
एक चिराग -
जलता रह गया !
आया झंझावात
और वज्रपात हुआ !
ध्वस्त हुईं सब दीवारें
ऐसा प्रबल आघात हुआ !
सहता रहा प्रहार
पर हार न मानी उसने
फिर से उठने संवरने की
हठ मन में ठानी उसने !
एक-एक कर शान्त हुए
भाव सब जख्मी मन के
थामे रहा पर सदा
हाथ में वह-
आशा के मनके !
जलता रहा अकेला
सेंकता रहा हाथ
अपने ही अरमानों की
धधकती चिता पर
हर सुख जिसका
अश्क बनकर बह गया !

               --- सीमा अग्रवाल ---

Saturday 25 April 2015

कैसी झमाझम सारी रात हुई !

बिन मौसम ही बरसात हुई
अंखियों से सारी रात हुई
मन-किसान झूला फांसी पर
सुख की खेती बरबाद हुई !

पसरा हर सूं गहन अंधेरा
भाग्य छला गया क्यूँ मेरा
मुँह फुलाए बैठीं खुशियाँ
हाय ! ऐसी क्या बात हुई !

देखे मन ने अनगिन सपने
सब्र की आँच पर रखे तपने
झुलस गए पर पर ही उनके
क्या सोचा क्या औकात हुई !

क्या क्या अरमान बोए थे
क्या क्या ख्वाब संजोए थे
चली न एक किस्मत के आगे
देखो ! कैसी करारी मात हुई !

उजड़ी बगिया आशाओं की
कहानी शुरू हुई बाधाओं की
मधुर, सुहानी, मदमस्त हवा
तूफान और झंझावात हुई !

बिन मौसम ही बरसात हुई
कैसी झमाझम सारी रात हुई !

--- सीमा अग्रवाल ---

Thursday 23 April 2015

मेरे चाँद ने ---

मेरे चाँद ने अपनी दिशा बदल ली
या धुंधला चले इन आँखों के गोले !
इक झलक मिली न दूर तक उसकी
मैंने राह तकी रात भर पलकें खोले !

               --- सीमा ---

Wednesday 22 April 2015

जब जब ठोकर खाई मैंने

जब-जब ठोकर खाई मैंने
मुझे नया एक गीत मिला !
अश्कों के लरजते धारे में
जैसे जीवन-संगीत मिला !

क्या हुआ जो वो रूठ गया
दर्पन गर मन का टूट गया !
टूटे आइने के हर टुकड़े में
मुझे अपना मनमीत मिला !

        --- सीमा ---