Sunday 26 June 2022

मौन मुखर था...

अधर मौन थे, मौन मुखर था…

अधर मौन थे, मौन मुखर था…

कितना सुखद हसीं अवसर था।
अधर मौन थे, मौन मुखर था।

पूर्ण चंद्र था,
उगा गगन में।
राका प्रमुदित,
मन ही मन में।

टुकुर-टुकुर झिलमिल नैनों से,
धरती को तकता अंबर था।

मन-मानस बिच,
खिलते शतदल।
प्रिय-दरस हित,
आतुर चंचल।

टँके फलक पर चाँद-सितारे,
बिछा चाँदनी का बिस्तर था।

सरल मधुर थीं,
प्रिय की बातें।
मदिर ऊँँघती,
ठिठुरी रातें।

रात्रि का अंतिम प्रहर था,
डूबा रौशनी में शहर था।

प्रेमातुर अति,
चाँद-चाँदनी।
मादक मंथर,
रात कासनी।

और न कोई दूर-दूर तक,
प्रिय, प्रेयसी और शशधर था।

डग भर दोनों,
बढ़ते जाते।
इक दूजे को,
पढ़ते जाते।
मंजिल का ना पता-ठिकाना,
खोया-खोया-सा रहबर था।

अधर मौन थे, मौन मुखर था…
( “मनके मेरे मन के” से )

– © डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

Saturday 25 June 2022

वापस लौट नहीं आना....

वापस लौट नहीं आना…

वापस लौट नहीं आना…

मंजिल तक जाने में निश्चित,
व्यवधान बहुत आएंगे।
बस तुम मुश्किल से घबराकर,
वापस लौट नहीं आना।

दुख को चखकर सुख की कीमत,
और अधिक बढ़ जाती है।
रौंदी जाकर भी तो देखो,
धूल गगन चढ़ जाती है।

देख सामने कठिन चुनौती,
हिम्मत हार नहीं जाना।

सागर से मिलने की धुन में,
नदियाँ बढ़ती जाती हैं।
जज्बा, लगन, हौसले के नव,
मानक गढ़ती जाती हैं।

तुम भी अनथक बढ़ते जाना,
जब तक पार नहीं पाना।

रोड़े-पत्थर काँटे-कंकड़,
पग-पग पथ में आएंगे।
कितने लालच दुनिया भर के,
आ ईमान डिगाएंगे।

कितना कोई दुख बरपाए,
पर तुम खार नहीं खाना।

धूप-शीत-तम-अंधड़-बारिश,
खड़ा यती-सा सहता है।
चीर जड़ों को देखो तरु की,
मीठा झरना बहता है।

तप-तप कर ही स्वर्ण निखरता,
सच ये भूल नहीं जाना।

गरज-गरज कर काले बादल,
आसमान पर छाएंगे।
भूस्खलन और ओलावृष्टि,
मिल उत्पात मचाएंगे।

पाँव जमा अंगद से रखना,
अरि से मात नहीं खाना।

साँझ ढले से देखो चंदा,
निडर गगन में चलता है।
निविड़ तिमिर की चीर कालिमा
जग को रोशन करता है।

तुम भी अपनी धुन में चलना,
पथ से भटक नहीं जाना।
बस तुम मुश्किल से घबराकर,
वापस लौट नहीं आना।

– © डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
“सृजन शर्मिष्ठा” से

रहे न अगर आस तो...

रहे न अगर आस तो….

क्या क्षणिक इन आँधियों से,जिंदगी डर जाएगी ?
रहे न अगर आस तो हाँ, प्यास ही मर जाएगी ।

तू बस अपना काम कर,
फल चला खुद आएगा।
तीरगी को चीर, वहीं,
रौशनी रख जाएगा।
मन में शीतल शुद्ध हवा, ताजगी भर जाएगी।
रहे न अगर आस तो हाँ…..

वक्त ठहर गया तो क्या,
समय न अपना तू गँवा।
हौसलों में जान रहे,
पल में होगा दुख हवा।
झोंका सुख का आएगा, किस्मत सँवर जाएगी।
रहे न अगर आस तो हाँ…..

पहुँच न ले गंतव्य तक,
न तब तलक तू साँस ले।
मंजिल निकट आएगी,
मिट जाएँगे फासले।
छूकर मन की भावना, मौत भी तर जाएगी।
रहे न अगर आस तो हाँ……

जिंदगी का सुर्ख सफ़ा,
पल-पल नजरों में रहे।
हार-जीत का फलसफ़ा,
नित-नित साँसों में बहे।
ढील जरा भी दी अगर, चेतना मर जाएगी।
रहे न अगर आस तो हाँ, प्यास ही मर जाएगी।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“सृजन प्रवाह” से

Friday 24 June 2022

पाँव में छाले पड़े हैं...

पाँव में छाले पड़े हैं ...

वेदना में जल रही हूँ, आँसुओं में गल रही हूँ।
पाँव में छाले पड़े हैं,   पर निरंतर चल रही हूँ।

ओ नियंता दर्द मेरा, देख तू भी इक बारगी।
फर्क मुझ पर क्या पड़े अब, रोशनी हो या तीरगी।
हाथ में गम की लकीरें, साथ तम के पल रही हूँ।
पाँव में छाले पड़े हैं,   पर निरंतर चल रही हूँ।

कौन जाने कब मुझे हो, इस जहां को छोड़ जाना।
कौन जाने किस सुबह फिर, हो यहाँ पर लौट आना।
दिवस का अवसान होता, रात में अब ढल रही हूँ।
पाँव में छाले पड़े हैं,   पर निरंतर चल रही हूँ।

शिकवा न कोई मैं करूँ, रुचे जो जिनको वो करें।
मार्ग फिर भी रोक लेतीं, हा हर कदम पर ठोकरें।
आस मंजिल की लगाए, नित स्वयं को छल रही हूँ।
पाँव में छाले पड़े हैं,   पर निरंतर चल रही हूँ।

देता न कोई साथ है, आज समझ ये पायी हूँ ।
पास कुछ न और बाकी, भाव-सुमन बस लायी हूँ।
कल मुझे जो मीत कहते, आज उनको खल रही हूँ।
पाँव में छाले पड़े हैं,   पर निरंतर चल रही हूँ।

खुशी के रेले मिलेंगे, ख्वाब देखे थे नज़र ने।
मर्म जीवन का सुझाया, नत खड़े गुमसुम शज़र ने।
लुट गया रोशन जहां अब, हाथ खाली मल रही हूँ।
पाँव में छाले पड़े हैं,   पर निरंतर चल रही हूँ।
पर निरंतर चल रही हूँ।

- © डॉ0 सीमा अग्रवाल

जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद ( उ.प्र.)

साझा संग्रह "प्रभांजलि" से

Saturday 18 June 2022

चंद दोहे....


सच को शूली पर चढ़ा, सत्ता गाल बजाय।
शातिर अपनी चाल चल, दूर खड़ा मुस्काय।।

चाल तुम्हारी चल गयी, हुए घाघ से शेर।
सवा सेर जिस दिन मिला, हो जाओगे ढेर।।

अपनी सुविधा के लिए, करे और पर वार।
परदुख का कारण बने, पड़े वक्त की मार।।

अपनी गलती को छुपा, मढ़ें और पर दोष।
बुद्धिमत्ता दिखा रहे, खाली जिनका कोष।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद ( उ.प्र.)