Wednesday 31 January 2024

आखिरी ये रात होगी...


अब न तुमसे बात होगी।
अनमनी -सी रात होगी।
अब न होंगे चाँद- तारे,
ना रुपहली रात होगी।

कुछ पलों की जिंदगानी,
कुछ पलों में ढेर होगी।
दो घड़ी भी ‘गर मिले तो,
दो घड़ी क्या बात होगी ?

चाँद भी रूठा हुआ -सा,
चाँदनी भी सुस्त -सी है।
कुलमुलाते -से सितारे,
क्या हसीं अब रात होगी ?

अब अकेले इन दिनों का,
गम सहारा है हमारा।
रात साए में अमा के,
बात किसको ज्ञात होगी ?

बुझ रही है दीप की लौ,
टूटती -सी श्वास भी अब,
ख्वाब में ही आ मिलो तो,
साथ ये सौगात होगी।

कीं कभी जो बात तुमसे,
आ रहीं अब याद हमको।
आज नयनों से हमारे,
आखिरी बरसात होगी।

आखिरी ये रात होगी
अब न तुमसे बात होगी….

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Tuesday 30 January 2024

इस तरह क्या दिन फिरेंगे...

इस तरह क्या दिन फिरेंगे….

जो छलेंगे, वो फलेंगे।
इस तरह क्या दिन फिरेंगे ?

डग न सीधे भर रहे जो,
पर लगा नभ में उड़ेंगे।

आज हम उस राह पर हैं,
जिस राह बस गम मिलेंगे।

चल न तपती रेत में यूँ,
पाँव में छाले पड़ेंगे।

राह सच की चुन चला चल,
मुश्किलों के दिन ढलेंगे।

साथ देते जो गलत का,
हाथ वो पीछे मलेंगे।

दौड़ता है वक्त हर पल,
अश्व रोके क्या रुकेंगे।

तू न दे गर साथ तो क्या,
हम न कोई काम करेंगे ?

सर्द दिन ये और कब तक,
मूँग छाती पर दलेंगे।

आ रहा ऋतुराज देखो,
चाहतों के गुल खिलेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Monday 29 January 2024

पग न अब पीछे मुड़ेंगे...

कस कमर जो चल पड़े हैं,
पग न वे पीछे मुड़ेंगे।

तुम जियो आजाद होकर,
अब न तुम पर भार हूँ मैं।
कर्म अपने साथ लेकर,
जी रही अधिकार हूँ मैं।
अब कभी जो हम मिले तो
तार क्या मन के जुड़ेंगे ?

रह हमारे साथ कुछ पल,
जो किए अहसान तुमने।
मोल चुकता कर दिया सब,
दे तुम्हें हर मान हमने।
साध अब गंतव्य अपना,
नित्य ही ऊँचें उड़ेंगे।

झेल ले सब यातनाएँ,
हो असर वो साधना में।
झंड कर दे चाल जग की,
हो दुआ वो प्रार्थना में।
गह चरण प्रभु राम के मन,
ताप सब वे ही हरेंगे।

रास्ते    उतने   खुलेंगे,
बंद  जितने  द्वार  होंगे।
डगमगा ले नाव कितनी,
हम यकीनन  पार होंगे।
थाम ली पतवार जिनकी,
तार उन सबको तरेंगे।

जिंदगी संघर्ष है तो,
फल मधुर मिलता इसी से।
रश्मियाँ रवि की प्रखर ये,
मन-कमल खिलता इसी से।
चीर देंगे हर तमस हम,
मौत को हँसकर वरेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

दिन सुखद सुहाने आएंगे...


दिन सुखद सुहाने आएंगे…

बीतेंगी रातें गम की दिन सुखद सुहाने आएंगे।
आज नहीं तो कल वो तेरे नाज उठाने आएंगे।

कचरे पर जो बैठे अकड़े कूड़ा तुझको समझ रहे।
वही कभी जूड़े में तेरे फूल सजाने आएंगे।

आँखों पर पट्टी बाँधे हैं, समझें कैसे बुरा-भला ?
अक्ल के अंधे कभी न कभी सही ठिकाने आएंगे।

करो फिक्र बस केवल अपनी, अक्ल घुमाना बंद करो।
बीतेगी जब खुद पर खुद हर बात बताने आएंगे।

रो-रोकर हलकान न हो मन धीर धरा सा धार मना।
मुस्कुराने के और अभी कितने बहाने आएंगे।

बात-बात पर कर देते जारी जो फरमान तुगलकी।
बात में ऐसे सिरफिरों की कौन सयाने आएंगे ?

नाफरमानों की बस्ती में कहो गुजारा कैसे हो,
चढ़े बना जो हमको सीढ़ी हमें झुकाने आएंगे ?

दग्ध प्राण भौतिक तापों से, रहते जो संतप्त सदा।
जल में पावन सरयू के मन-दीप सिराने आएंगे।

झूठी दुनिया रचने वाले सिर्फ दिखावा करते हैं।
‘सीमा’ सच्चे कभी यहाँ क्यों, नगर बसाने आएंगे ?

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Sunday 28 January 2024

मुक्तक...छंद मनमोहन

मनमोहन छंद...

( 14 मात्रा (8+6) पदांत नगण
चारों चरण या दो- दो चरण समतुकांत
सही विधान- अठकल +किसी भी तरह का त्रिकल + नगण अर्थात पदांत 111 )

१-
शीश झुकाकर  करूँ नमन।
करो प्रभो सब  पाप शमन।।
द्वेष-दंभ  सब   करें  गमन।
रहे  देश  में    सदा  अमन।।

२-
सर-सर सर-सर चले पवन।
नर्तन   करते   धरा - गगन।।
मन विरहन के लगी अगन।
दुनिया  खुद  में  रहे  मगन।।

३-
कैसे  उनको   लगी  भनक।
रखे यहाँ पर कनक-कनक।।
थी नयनों में   नयी चमक।
खेल-खेल में  गढ़ा यमक।।

४-
उठी हृदय में कौन सटक ?
करता क्यों ये उठा-पटक ?
पहले ही मन गया खटक ।
दर्पण भी लो  गया चटक।।

५-
कितना ऊँचा  उठा गगन।
फिर भी नीचे किए नयन।।
कर्म निरत नित रहे मगन।
हममें भी  हो वही लगन।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Saturday 27 January 2024

अच्छे बच्चे...

सजल…छंद शैलजा

अच्छे बच्चे- छंद शैलजा…
{२४ मात्राएँ .१६-८ पर यति,अंत- दीर्घ (गा)}

रोज सवेरे शाला जाते, अच्छे बच्चे।
सदा बड़ों को शीश नवाते, अच्छे बच्चे।

पढ़ते-लिखते नाम कमाते, आगे जाते,
मात-पिता का मान बढ़ाते, अच्छे बच्चे।

राह सभी आसान इन्हें हैं, सच पूछो तो,
मुश्किल देख नहीं घबराते, अच्छे बच्चे।

सदा मित्र का साथ निभाते, भार उठाते।
गल्प न कोरी कभी बनाते, अच्छे बच्चे।

छोटों का आदर्श बनें ये, शान बड़ों की,
साख न घर की दाँव लगाते, अच्छे बच्चे।

विनम्र भाव से नीची नजरें, रक्खें हर पल,
मंजिल पर बस नजर टिकाते, अच्छे बच्चे।

दीन-हीन को गले लगाते, आस बँधाते,
कभी काम से जी न चुराते, अच्छे बच्चे।

‘सीमा’ अपनी कभी न लाँघें, रहें संयमित।
अनुशासन सबको सिखलाते, अच्छे बच्चे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Friday 26 January 2024

कर रहे शुभकामना...


75वें राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं…

कर रहे शुभकामना….

पर्व है गणतंत्र दिवस का, राष्ट्र की आराधना।
अखंड भारत देश रहे ये, कर रहे शुभकामना।

सबके सुख-दुख अपने सुख-सुख,
भाव मन में पुष्ट हो।
भेद-भाव की बात न हो अब,
हर मनुज संतुष्ट हो।
पनपे ना वृत्ति छल-कपट की,
बनी रहे सद्भावना।

कर रहे शुभकामना….

जाति-वर्ग औ संप्रदाय की,
टूटें सब दीवारें।
गद्दारी जो करें देश से,
चुन-चुन उनको मारें।
विपदा आए कोई यदि तो,
मिल करें सब सामना।

कर रहे शुभकामना….

कोई बच्चा देश का मेरे,
रहे न भूखा-नंगा।
कर्तव्यों के हिम से निकले,
अधिकारों की गंगा।
हो सदैव उद्देश्य हमारा,
गिर रहे को थामना।

कर रहे शुभकामना….

स्वार्थ रहित हों कर्म सभी के,
राष्ट्र-मंगल से जुड़े।
गुलाम रहे न जन अब कोई,
मुक्त अंबर में उड़े।
प्रेम-भाव भर अमिट हृदय में,
मिटा कलुषित भावना।

कर रहे शुभकामना….

आत्मनिर्भर बनें भारत-जन,
सुप्त बोध सब जागें।
कर्मठता हो, कर्म श्रेष्ठ हों,
जड़ता मन की त्यागें।
रामराज्य का स्वप्न नहीं तो,
है महज उद्भावना।

कर रहे शुभकामना….

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

Thursday 25 January 2024

कुसुमित जग की डार...

कुसुमित जग की डार…

हंसगति छन्द…

1-
गजानन श्री गणेश, सदा सुखकारी।
शिव शंकर हैं तात, उमा महतारी।
प्रथम पूज्य श्रीपाद, अमंगल हारी।
चरण नवाऊँ माथ, हरो अघ भारी।

2-
ये हैं गण के ईश, सुवन शंकर के।
आए हरने क्लेश, सभी के घर के।
गणपति इनका नाम, सर्व सुख दाता।
पूरण करते काम, दुखों के त्राता।

3-
धेनु चराएँ श्याम, बजाएँ वंशी।
बस गोकुल के ग्राम, हो चंद्र-अंशी।
दें जग को संदेश, करो गौ सेवा।
सभी मिटेंगे क्लेश, मिलेगी मेवा।

4-
ले झुरमुट की ओट, देख लूँ तुमको।
भर नज़रों में रूप, सेक लूँ मन को।
रहो सदा अब साथ, जुड़े वो नाता।
बिना तुम्हारे नाथ, नहीं कुछ भाता।

5-
उगल रहा रवि आग, तपन है भारी।
चूल्हे पकता साग, झुलसती नारी।
क्रुद्ध जेठ का ताप, सहे दुखियारी।
टपके भर-भर स्वेद, लपेटे सारी।

6-
रहे समंदर शांत, उछलता नद है।
धीर-वीर-गंभीर, जानता हद है।
करे हदें वो पार, न तुम कुछ कहना।
मिले भले ही हार, मगर चुप रहना।

7-
तुम्हीं हमारी शान, मान हो बिटिया।
हम सबका अरमान, जान हो बिटिया।
बिटिया तुम पर नाज, हमें है भारी।
महक उठी है आज, खिली फुलवारी।

8-
कुसुमित जग की डार, फले अरु फूले।
आशा पंख पसार, उड़े नभ छू ले।
सुखद सँदेशे रोज, चले घर आएँ।
बरसें सुख के मेघ, खुशी सब पाएँ।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Wednesday 24 January 2024

कर्मवीर भारत...

भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।
दम पे इन्हीं के सभ्यता अनुदिन यहाँ फूली फली।

नित काम में रत हैं मगर, फल की न करते कामना।
सौ मुश्किलों सौ अड़चनों, का रोज करते सामना।
इनकी लगन को देखकर, हों पस्त अरि के
हौसले,
कैसे विधाता  वाम हो, जब पूत मन की भावना।
शिव नाम मन जपते चलें, ले कर्म की गंगाजली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।१।

कुछ चुटकियों का खेल है, हर काम इनके वास्ते।
धुन में मगन चलते चलें, आसान करते रास्ते।
फल कर्म का पहला सदा, करके समर्पित ईश को, 
करते विदा सब उलझनें, हँसते-हँसाते-नाचते।
कब दुश्मनों की दाल कोई सामने इनके गली।
भारत सदा से ही रहा है  कर्मवीरों की थली।२।

उड़ती चिरैया भाँप लें, जल-थाह गहरी नाप लें।
अपकर्म या दुष्कर्म का, सर पे न अपने पाप लें।
आशीष जन-जन का लिए, सर गर्व से ऊँचा किए,
फूलों भरी शुभकर्म की, झोली जतन से ढाँप लें।
कलुषित हृदय की भावना, कदमों तले घिसटी चली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।३।

बैठे भरोसे भाग्य के, रहते नहीं हैं ये कभी।
करके दिखाते काम हैं, कहते नहीं मुख से कभी।
आए बुरा भी दौर तो, छोड़ें न मन को साधना,
फुसलाव में भटकाव में, आते नहीं हैं ये कभी।
हर शै जमाने की झुकी, पीछे सदा इनके चली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।४।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

चंद मुक्तक... छंद ताटंक...

चंद मुक्तक
छंद ताटंक...

अपनी भाषा अपनी संस्कृति, किसे न मोहित करती है ?
अपनी माँ या अपनी मासी, किसे न प्यारी लगती है ?
पर अपना ये देश अनूठा, पर संस्कृति पर मरता है।
पर भाषा के पीछे लगकर, निज को लांछित करता है।१।

नदी हमारी मात सरीखी, हमको जीवन देती है।
विमल-शुद्ध कर बदन हमारा, पाप हमारे खेती है।
सींचे खेत अन्न उपजाए, सगरे जग की थाती है।
मंथर गति से बहती जाती, कल-कल स्वर में गाती है।२।

तुम बिन लगता कहीं नहीं मन, खोया-खोया रहता है।
डूब तुम्हारे ख्यालों में ये, कुछ न किसी से कहता है।
बदल गए दिन रात सभी कुछ, जबसे तुमको देखा है।
फलित हुए ज्यों पुण्य हमारे, शुभ कर्मों का लेखा है।३।

कहते आए सभी अभी तक, नारी अबला होती है।
झेल न पाती तनिक कड़ाई, बात-बात पर रोती है।
मूरत ममता प्रेम त्याग की, जीवन जग को देती है।
किसमें इतना बल है बोलो, बला स्वयं वर लेती है।४।

नहीं लडेंगे नहीं भिड़ेंगे, सबका साथ निभाएंगे।
सबका  मान बढ़ाएंगे,     सबका हाथ बँटाएंगे।
स्वर्ग गगन में अगर कहीं है, उठा जमीं पर लाएंगे।
मिलजुलकर सब साथ रहेंगे, भू को स्वर्ग बनाएंगे।५।

© डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Tuesday 23 January 2024

ऐंठ रहा जलजात...

ठिठुरन बढ़ती जा रही, काँपे थर-थर गात।
सरवर जम सब हिम हुए, ऐंठ रहा जलजात।।

पूस मास पाला पड़ा, ठिठुर रहे मैदान।
जमे हुए हैं शीत में,  ओले से अरमान।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Sunday 21 January 2024

सजी कैसी अवध नगरी...

सजी कैसी अवध नगरी, सुसंगत दीप पाँतें हैं।
गगनचुंबी इमारत हैं, तनी अद्भुत कनातें हैं।
बड़ी शुभदा घड़ी पावन, विराजें राम आसन पर,
पखारें पाँव प्रभुवर के, भरी जल की पराँतें हैं।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद


सजी कैसी अवध नगरी...


सजी कैसी अवध नगरी, सुसंगत दीप पाँतें हैं।
गगनचुंबी इमारत हैं,     तनी अद्भुत कनातें हैं।
बड़ी शुभदा घड़ी पावन, विराजें राम आसन पर,
पखारें पाँव प्रभुवर के,  भरी जल की पराँतें हैं।

© सीमा अग्रवाल

मुरादाबाद ( उ.प्र. )

फोटो गूगल से साभार

धन्य हुए हैं नैन...

समता ऐसे रूप की,    मिले कहीं ना अन्य।
निर्मल छवि मन आँककर, नैन हुए हैं धन्य।।

धन्य-धन्य प्रभु आप हैं, लिया राम-अवतार।
हित मानव के खोलने,     उच्च चेतना-द्वार।।

जन-जन के आदर्श तुम, दशरथ नंदन ज्येष्ठ।
नरता के मानक गढ़े,     नमन तुम्हें नर श्रेष्ठ।।

हृदय कामनागार तो,      कामधेनु हैं आप।
एक झलक भर आपकी, हर ले हर संताप।।

लला गृह की ओर चले, आयी सुहानी भोर।
बजें नगाड़े - दुंदुभी,     गुंजित नभ के छोर।।

पलक-पाँवड़े मग बिछा, खड़ा सज्ज हो द्वार।
राम-दरश की कामना,    करता हर परिवार।।

प्राण-प्रतिष्ठा  राम  की,  हुई  अवध में  आज।
सुखदा बाइस जनवरी, फलें सभी शुभ काज।।

जप ले मनके नाम के,   मेटें मन के ताप।
राम नाम के जाप से, धुल जाते सब पाप।।

खोया वैभव सूदमय, मिला अवध को आज।
युगों-युगों तक अब चले, रामलला का राज।।

हुई परीक्षा  पूर्ण हर,        भक्त हुए  उत्तीर्ण।
खड़े बगल सब झाँकते, मन जिनके संकीर्ण।।

मन - मानस मेरे रहे,   सदा आपका वास।
सहस्त्रार विगसे कमल, आए सरस सुवास।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
फोटो गूगल से साभार

Friday 19 January 2024

शुभागमन हो राम का...

शुभागमन हो राम का ...

जन-जन के आदर्श तुम, दशरथ नंदन ज्येष्ठ।
नरता के मानक गढ़े,     नमन तुम्हें नर श्रेष्ठ।।१।।

जीवन के हर क्षेत्र में,  बढ़े निडर अविराम।
ज्ञान-भक्ति अरु कर्ममय, कर्मठ योद्धा राम।।२।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ,      जागें जग के भाग।।३।।

दर्प चूर आतंक का, किया खलों का अंत।
देख राम की वीरता,      गद्गद साधू-संत।।४।।

जप ले मनके नाम के,    मेटें मन के ताप।
राम-नाम के जाप से, धुल जाते सब पाप।।५।।

कुटी बना तिरपाल में, जिया पुनः वनवास।
लौट अवध अब आ रहे, कण-कण में उल्लास।।६।।

शुभ फलदायक हो घड़ी, मंगलमय हों काज।
आए फिर से देश में,     राम लला का राज।।७।।

खोया वैभव सूदमय, मिला अवध को आज।
युगों-युगों तक अब चले, रामलला का राज।।८।

लौट अवध प्रभु आ रहे, खुशियाँ अपरंपार।
नाचें-थिरकें रसमगन, हर्षित नर अरु नार।।९।।

सिंहासन आरूढ़ हो,  करें लला फिर राज।
समता से शासन चले, समरस बने समाज।।१०।।

कितनी गहरी आस्था,  कितना श्रद्धा भाव।
भीड़ उमड़ती आ रही, राम-दरश का चाव।।११।।

लला गृह की ओर चले, आई सुहानी भोर।
बजें नगाड़े दुंदुभी,     गुंजित नभ के छोर।।१२।।

प्राण प्रतिष्ठा राम की,        पावन मंत्रोच्चार।
लला आज घर आ रहे, चहुँ दिशि जयजयकार।।१३।।

भव्य कलेवर में दिपे,  नगरी प्रभु की आज।
देव मुदित आशीष दें,  गद्गद संत समाज।।१४।।

पलक-पाँवड़े मग बिछा, खड़ा सज्ज हो द्वार।
रामदरश की कामना,    करता हर परिवार।।१५।।

शुभागमन हो राम का,  शुभ हों ग्रह-नक्षत्र।
संधि-शांति-सौहार्दमय, हों आगे सब सत्र।।१६।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो गूगल से साभार

Thursday 18 January 2024

फिर सुखद संसार होगा...

राम का अवतार होगा...

दूर हर अँधियार होगा।
फिर सुखद संसार होगा।

झेलते सब दंश उसका।
बढ़ रहा है वंश उसका।
कलयुगी इस काल में भी,
रह गया कुछ अंश उसका।
फिर मरेगा जल्द रावण,
राम का अवतार होगा।

हर खुशी  निर्बाध होगी।
पूर्ण मन की साध होगी।
भूलवश गलती किसी से,
हुई  यदि  एकाध होगी।
शोध सारी खामियों को,
मूल से निस्तार होगा।

अब न इच्छा रुष्ट होगी।
कामना संतुष्ट होगी।
एकता का भाव होगा,
भावना संपुष्ट होगी।
फिर मनों से मन मिलेंगे,
जुड़ रहा हर तार होगा।

सुन जरा वैदिक ऋचाएँ।
गूँजती  हैं  दस  दिशाएँ।
भोर तम को चीर बढ़ती,
लड़खड़ाती-सी निशाएँ।
उदित होगा बाल रवि फिर,
फिर तमस संहार होगा।

छल छद्म सब दूर होंगे।
दर्प सबके चूर होंगे।
गौरवान्वित सत्यवादी,
मान से भरपूर होंगे।
झूठ का परदा गिरेगा,
सत्य का दरबार होगा।

बिक रही हैं भावनाएँ।
चीरतीं मुख वासनाएँ।
लोभ के चंगुल फँसी जो,
हो हताहत कामनाएँ।
पा परस पगधूलि पावन,
शीघ्र ही उद्धार होगा।

राम फिर राजा बनेंगे।
कष्ट सबके ही हरेंगे।
बात होगी गर चयन की,
राज्य को पहले वरेंगे।
एक सबका न्याय होगा,
सत्य ही आधार होगा।

राम का अवतार होगा।
फिर सुखद संसार होगा।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
फोटो गूगल से साभार

आयी सुहानी भोर...

लला गृह की ओर चले, आई सुहानी भोर।
बजें नगाड़े-दुंदुभी,     गुंजित नभ के छोर।।

पलक-पाँवड़े मग बिछा, खड़ा सज्ज हो द्वार।
रामदरश की कामना,    करता हर परिवार।।

दुर्दिन बीते शुभ दिन आए, रामलला घर वापस आए।
हुई अंततः जीत हमारी, बिगड़ी किस्मत दीन्ह सँवारी।
मेघ चतुर्दिक सुख के छाए, पुरवासी मुद मंगल गाए।
मन उमंगित शुभ घड़ी आयी, सजी अयोध्या नवता पायी।
भव्य नव्य अरु दिव्य स्वरूपा, शोभा अमित अपार अनूपा।
महिमा पुर की अकथ अपारा, सहस-कोटि मुख बरनि न पारा।
हुई सुबह ले सुखद उजाला, बीत गया तम-तोम कराला।
राम-रस की बह रही धारा, मन आह्लादित हर्ष अपारा।
तनीं कनातें राम-पताका, शुभ नित बाँचे राम-शलाका।
गर्भ-गृह में प्राण-प्रतिष्ठित, रोम-रोम प्रभु हुए अधिष्ठित।
जब प्रभु आनी ठानी मन में, बानक वही बने अग-जग में।

प्राण-प्रतिष्ठा  राम  की,  हुई  अवध में  आज।
सुखदा बाइस जनवरी, फलें सभी शुभ काज।।

घर-घर सबके गया बुलावा, अक्षत चावल पूत कलावा।
लगीं अवध में उत्सुक आँखें, काश मुझे मिल जातीं पाँखें।
मैं भी अवधपुरी जा पाती, राम दरश कर धन्य कहाती।
मन हर्षित तन होत अधीरा, मिटे कलेश गयी सब पीरा।
देव गगन में अति हरषाए, पुष्प खुशी के चुन बरसाए।
जागे फिर से भाग अवध के, हुए धूसरित भाव कपट के।
राम-नाम की महिमा न्यारी, समझ न पाएँ अत्याचारी।
राम-नाम काटे भव-फंदा,  दुख निकसें मन होत अनंदा।
संत काज हित नर वपु धारे। खोजि-खोजि प्रभु खल संहारे।
भक्त शिरोमणि पूर्ण सकामा, जपत निरंतर रामहिं रामा।
दो नयनन ने आस लगाई, दरसन दो हमको रघुराई।

मन - मानस मेरे रहे,   सदा आपका वास।
सहस्त्रार विगसे कमल, आए सरस सुवास।।

मानव-संस्कृति के तुम पोषक। धर्म-न्याय सत् के उद्घोषक।
तुम सा जग में और न दूजा, ध्यान लगा नित तुमको पूजा।
अहं चूर कर रिपु संहारा, कीन्ह दशानन विगत विकारा।
मन से सबका भला विचारा, गलत शब्द ना कभी उचारा।
दुख जीवन में रहे सदा ही,  पल सुख के बस यदा-कदा ही।
दुख में भी सुख लीन्ह तलाशा, दोष मिटा मन सतत तराशा।
तुम सा जग में कौन मिलेगा ? देकर शुभता पाप हरेगा ?
मर्यादित-अनुशासित तुम सा, छान लिया जग मिला न ऐसा।
तीन जगत के प्रभु तुम स्वामी।  घट-घट वासी अंतर्यामी।
करें नयन-मन मिल संवादा,  कायम हो फिर वह मर्यादा।
जन-जन मन में आस लगाए, राम-राज फिर वापस आए।

सिंहासन आरूढ़ हो,  करें लला फिर राज।
समता से शासन चले, समरस बने समाज।।

खोया वैभव सूदमय, मिला अवध को आज।
युगों-युगों तक अब चले, रामलला का राज।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
फोटो गूगल से साभार

Monday 15 January 2024

पर्व मकर संक्रांति...

सूर्यदेव जी चल पड़े, मकर राशि की ओर।
बेला है संक्रांति की,        उत्तरायणी भोर।।

माँ गंगा का अवतरण,  हुआ धरा पर आज।
उतरी मुक्ति प्रदायिनी, जीव-जगत के काज।।

उत्तरायणी पर्व यह,  महा   संक्रमण  काल।
ग्रह नक्षत्र  मौसम सभी, बदलें अपनी चाल।

 © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Sunday 14 January 2024

क्या यही सुख-सार होगा...

चरम पर व्यभिचार होगा।
बढ़ रहा अँधियार होगा।

सात्विकता क्षीण होगी,
तमस का विस्तार होगा।

गालियों से बात होगी,
अस्मिता पर वार होगा।

ध्वस्त  होंगीं  सभ्यताएँ,
मूल्य मन पर भार होगा।

जिंदगी बेज़ार होगी,
मौत का व्यापार होगा।

पाशविकता पास होगी,
फेल शिष्टाचार होगा।

भंग होगी लय सुरों से,
टूटता हर तार होगा।

भूलकर कर्तव्य सारे,
याद बस अधिकार होगा।

क्या खबर षड़यंत्र क्या फिर,
ले रहा आकार होगा।

नींव आगत की यही क्या ?
क्या यही आधार होगा ?

क्या यही सुख-सार होगा ?
क्या यही संसार होगा ?

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
फोटो गूगल से साभार

Wednesday 10 January 2024

विश्व हिन्दी दिवस...

हमारी शान है हिन्दी,   हमारा मान है हिन्दी।
चिरंतन मूल्य-संस्कृति का,  सतत उत्थान है हिन्दी।
प्रवासी भी विदेशों में,    बजाते हिन्द का डंका,
मनुज जो हिन्द के वासी, उन्हें वरदान है हिन्दी।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Tuesday 9 January 2024

चमको हे मार्तंड...


लुढ़का पारा शून्य पर, कुहर-शीत की धूम।
सूरज भी आया मनो,   सर्द हिमालय चूम।।

पाला पड़ा दिमाग पर, हाथ-पाँव सब सुन्न।
बिस्तर में दुबके हुए,      पड़े सभी  हैं टुन्न।।

जेठ मास में क्रुद्ध से, उगल रहे थे आग।
पूस मास में दुम दबा, कहाँ छुपे अब भाग ?।।

मुख पर जब अति ओज था, कर में शक्ति प्रचंड।
बल अपना वह याद कर, चमको हे मार्तंड।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो गूगल से साभार

Monday 8 January 2024

रामलला घर आएंगे...

नमामि राम की नगरी, नमामि राम की महिमा।
नमामि राम का संयम, नमामि राम की गरिमा।

🙏🙏

भावमगन जन अवध पुरी के, राजकुँवर घर आएंगे।
सागर सुख के लहराएँगे, घट रीते भर जाएंगे।
गूँज रही धुन राम-नाम की, राम-नाम की जोत जली,
राम-नाम की नौका में सब, भव-सागर तर जाएंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Sunday 7 January 2024

आया पाग-सनेस...

नमामि राम की नगरी, नमामि राम की महिमा।
नमामि राम का गौरव, नमामि राम की गरिमा।
🙏🙏

जनकपुरी से अवधपुरी में, आया पाग-सनेस।
उत्साहित हैं मिथिलावासी, मन में हर्ष विशेष।
समारोह निर्विघ्न पूर्ण हो, लौटें घर रघुवीर,
सोहें संग सुता आसन पर, जामाता अवधेश।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Thursday 4 January 2024

राम-जोत घर-घर जले...



नया वर्ष नव हर्ष है,      छाया नव उल्लास।
राम-जोत घर-घर जले, रचे सुघड़ अनुप्रास।।

राम-नाम मुक्ता चुगो,  राम-राम  की टेर।
मनके प्रभु के नाम के, हरते मन के फेर।।

नमामि राम की नगरी, नमामि राम की महिमा।
नमामि राम का गौरव, नमामि राम की गरिमा।

राम नहीं हैं मात्र कल्पना, जग के पालनहारे हैं।
कितने दुष्ट दनुज जगती के, पल भर में संहारे है।
रिश्तों में आदर्श शिरोमणि, पुरुषों में सर्वोत्तम हैं।
मर्यादा के रखवाले प्रभु, भव के तारन हारे हैं।

भावमगन जन अवध पुरी के, राजकुँवर घर आएँगे।
सागर सुख के लहराएँगे,  घट रीते भर जाएँगे।
गूँज रही धुन राम-नाम की, राम-नाम की जोत जली,
राम-नाम की नौका में सब, भव-सागर तर जाएँगे।

खुशी में झूमते पुर-जन, ठुमकते-नाचते पुर-जन।
कथाएँ जो सुनीं प्रभु की, मगन मन बाँचते पुर-जन।
लला अब जल्द घर आएँ, विगत सुख लौट फिर आएँ,
निकट है आगमन बेला, निहारें रास्ते पुर-जन।

रामलला के विग्रह की जब, भव में प्राण प्रतिष्ठा होगी।
राम-नाम अधरों पर होगा, राम-नाम में निष्ठा होगी।
लूट मचेगी राम-नाम की, राम-नाम की ईप्सा होगी।
राजा राम बनें अग-जग के, सबके मन यह लिप्सा होगी।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
फोटो गूगल से साभार

राम नाम मुक्ता चुगो...

राम नाम मुक्ता चुगो...

नया वर्ष नव हर्ष है,      छाया नव उल्लास।
राम-जोत घर-घर जले, रचे सुघड़ अनुप्रास।।

राम-नाम मुक्ता चुगो,  राम-राम की टेर।
मनके प्रभु के नाम के, हरते मन के फेर।।

नमामि राम की नगरी, नमामि राम की महिमा।
नमामि राम का गौरव, नमामि राम की गरिमा।

राम नहीं हैं मात्र कल्पना, जग के पालनहारे हैं।
कितने दुष्ट दनुज जगती के, पल भर में संहारे है।
रिश्तों में आदर्श शिरोमणि, पुरुषों में सर्वोत्तम हैं।
मर्यादा के रखवाले प्रभु, भव के तारन हारे हैं।

भावमगन जन अवध पुरी के, राजकुँवर घर आएँगे।
सागर सुख के लहराएँगे,  घट रीते भर जाएँगे।
गूँज रही धुन राम-नाम की, राम-नाम की जोत जली,
राम-नाम की नौका में सब, भव-सागर तर जाएँगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
राम तस्वीर गूगल से साभार