भारती के भाल सजे सम्मान जग में पाए हिंदी
स्वर्णिम इतिहास अपना फिर से दोहराए हिंदी
मात्र भाषा ही नहीं ये जान है निज संस्कति की
ध्वज अपने प्रतिमानों का जग में फहराए हिंदी
एक ताल पर इसकी थिरक उठे ये विश्व ही सारा
गूँज उठें सकल दिशाएँ गीत कोई जब गाए हिंदी
गंध निज माटी की सोंधी वर्ण-वर्ण से आए इसके
खुशबू भीनी संस्कारों की देश- देश बगराए हिंदी
बँधें बोलियाँ एक सूत्र में माला के रंगीं मनकों- सी
उन्नत भाल गर्व से भरा हो कंठहार बन जाए हिंदी
ओछे खेल में राजनीति के जन-मन भटक न पाए
भाषायी सब झगड़े सूझ से अपनी सुलझाए हिंदी
विविधता में एकता की झलक जहाँ पर दे दिखाई
बन-ठन आएँ सारी बोलियाँ ऐसा पर्व मनाए हिंदी
बात ही निराली मातृभाषा की माँ सम लगती प्यारी
दिखावे का प्यार और का नेह माँ सा छलकाए हिंदी
हो ग्रसित जो हीन ग्रंथि से अंग्रेजी के पीछे दौड़ रहे
उस भाषा में क्या है ऐसा जो न हमें सिखलाए हिंदी
गुलामी के व्यामोह से अब तो मन अपना मुक्त करो
बड़े गर्व से बड़ी शान से अधरों पे सबके आए हिंदी
- डॉ. सीमा अग्रवाल, मुरादाबाद ( उ.प्र. )
१४.०९.२०१७