साथ तुम्हारा गर किस्मत से पाती
फूली ना समाती, कितना इतराती !
गुमां होता मुझे भी भाग्य पे अपने
झूमती, गाती, मदमाती, इठलाती !
भर आँखों में मादक सपन सुहाने
राह में तुम्हारी पलकें मैं बिछाती !
जो जो तुम कहते वही मैं बनाती
चाव से फिर सब तुम्हें खिलाती !
तृषित थकित तन-मन पे तुम्हारे
बदली बन- बन बरस मैं जाती !
जो बाँहों में अपनी मुझे तुम लेते
सच लाज से दोहरी मैं हो जाती !
मिल जातीं जब जब नजरें तुमसे
शरमा के तुमसे लिपट मैं जाती !
जो अधरों पे मेरे अधर तुम रखते
विचुम्बित कंपित सिहर मैं जाती !
तुम संग सोती, तुम संग जगती
ढल कर तुममें तुम सी हो जाती !
तुम मेघ रूप बन छाते मुझ पर
बदली सी उमड़ बरस मैं जाती !
मिल दो तन एक जान हम होते
तुम मुझमय मैं तुममय हो जाती !
कोई पृथक् ना होती पहचान मेरी
बस नाम से तुम्हारे मैं जानी जाती !
रूठ जाते गर तुम तो तुम्हें मनाती
कभी मानिनी सी नखरे दिखाती !
छवि पान कर मैं कभी ना अघाती
तुम कान्हा तो मैं मीरा बन जाती !
रचते गीत एक दूजे पर हम दोनों
तुम सुर देते और मैं गुनगुनाती !
तुम अनुभूति मैं, अभिव्यक्ति तुम्हारी
तुम अजस्र प्रवाह मैं छंदोमय हो जाती !
बस कर 'सीमा' यूं ख्वाब ना देख
किस्मत ना सदा यूं साथ निभाती !
- सीमा