Sunday 26 April 2015

भूकंप : एक दानव

आगत से
बेखबर
सोया था
एक क्षेत्र समूचा
ख्वाब लिए
भिन्न-भिन्न नयन में ।
सहसा
भग्न हुई तन्द्रा
हलचल हुई
धरती के तन में ।
उछल पड़ीं चट्टानें
हिलने लगीं नदियाँ
गेंद-सी
पारे-सी ।
दफन हुई हरियाली
आकाश सहम उठा
ठिठक गया
पल भर को ।
देखता रहा
भू पर
आए कहर को ।
देखता ही रहा
बस बेबस !
दानव भूकंप का
अपने विशाल जबड़ों से
निगल गया
पलक झपकते
उफ !
कितनी जानें
कौन जाने !
जानता नहीं कौन
भरोसा नहीं
एक पल की भी
जिंदगी का
तोड़े पर कौन
गुमान
अदृश्य की
मुट्ठी में कैद
इस नन्ही-सी
जिंदगी का !

               --- सीमा अग्रवाल ---

आशा : एक चिराग

हर बार
बना महल
सपनों का -
ढह गया !
खण्डहर में पर
एक चिराग -
जलता रह गया !
आया झंझावात
और वज्रपात हुआ !
ध्वस्त हुईं सब दीवारें
ऐसा प्रबल आघात हुआ !
सहता रहा प्रहार
पर हार न मानी उसने
फिर से उठने संवरने की
हठ मन में ठानी उसने !
एक-एक कर शान्त हुए
भाव सब जख्मी मन के
थामे रहा पर सदा
हाथ में वह-
आशा के मनके !
जलता रहा अकेला
सेंकता रहा हाथ
अपने ही अरमानों की
धधकती चिता पर
हर सुख जिसका
अश्क बनकर बह गया !

               --- सीमा अग्रवाल ---

Saturday 25 April 2015

कैसी झमाझम सारी रात हुई !

बिन मौसम ही बरसात हुई
अंखियों से सारी रात हुई
मन-किसान झूला फांसी पर
सुख की खेती बरबाद हुई !

पसरा हर सूं गहन अंधेरा
भाग्य छला गया क्यूँ मेरा
मुँह फुलाए बैठीं खुशियाँ
हाय ! ऐसी क्या बात हुई !

देखे मन ने अनगिन सपने
सब्र की आँच पर रखे तपने
झुलस गए पर पर ही उनके
क्या सोचा क्या औकात हुई !

क्या क्या अरमान बोए थे
क्या क्या ख्वाब संजोए थे
चली न एक किस्मत के आगे
देखो ! कैसी करारी मात हुई !

उजड़ी बगिया आशाओं की
कहानी शुरू हुई बाधाओं की
मधुर, सुहानी, मदमस्त हवा
तूफान और झंझावात हुई !

बिन मौसम ही बरसात हुई
कैसी झमाझम सारी रात हुई !

--- सीमा अग्रवाल ---

Thursday 23 April 2015

मेरे चाँद ने ---

मेरे चाँद ने अपनी दिशा बदल ली
या धुंधला चले इन आँखों के गोले !
इक झलक मिली न दूर तक उसकी
मैंने राह तकी रात भर पलकें खोले !

               --- सीमा ---

Wednesday 22 April 2015

जब जब ठोकर खाई मैंने

जब-जब ठोकर खाई मैंने
मुझे नया एक गीत मिला !
अश्कों के लरजते धारे में
जैसे जीवन-संगीत मिला !

क्या हुआ जो वो रूठ गया
दर्पन गर मन का टूट गया !
टूटे आइने के हर टुकड़े में
मुझे अपना मनमीत मिला !

        --- सीमा ---

Friday 17 April 2015

फल का निर्णय राम करेंगे---

फल का निर्णय राम करेंगे
हम बस अपना काम करेंगे !

निर्दोष पर दोष लगाने वाले
अपना ही काम तमाम करेंगे !

जिनके अपने दामन दागी
वो क्या हमें बदनाम करेंगे !

आड़ में झूठ की जीने वाले
पल-पल सच नीलाम करेंगे !

कभी तो हाथ रंगेंगे उनके
जो इतने कत्लेआम करेंगे !

कैसे माल बिकेगा उनका
जो हद से ऊँचे दाम करेंगे !

पानी की है दरकार जिन्हें
हवाले उनके जाम करेंगे !

साकार कभी न होंगे सपने
इतना अगर आराम करेंगे !

दिन दूना और रात चौगुना
आओ हम तुम काम करेंगे !

क्यों मैं सोचूँ इधर-उघर की
होगा तो वही जो राम करेंगे !

-सीमा अग्रवाल

Friday 10 April 2015

दिन बीता मेरे सुख भी बीते

दिन बीता मेरे सुख भी बीते !
आँसू बरसे, नयन-घट रीते !
कितने प्यासे हैं आज अधर वे
जो स्नेह-सुधा छककर थे पीते !

- सीमा

Sunday 5 April 2015

दिल ने याद किया---

हमने तो सिवा तुम्हारे
न किसी से इतना प्यार किया !
चाहते रहे मन ही मन
जुबां से ना कभी इजहार किया !
तुमने ही दिशा बदल ली
किस पल न हमने इंतजार किया !
बिछी हैं आज भी पलकें
आ जाओ कि दिल ने याद किया !

-सीमा अग्रवाल

Wednesday 1 April 2015

आते हैं सनम जो -----

आते हैं सनम जो यादों में
तनहा रातों में,बरसातों में
तुमसे तो कहीं अच्छे हैं वे
सिर्फ एक नहीं, कई बातों में !

तुम रहते जुदा, वो जुदा नहीं
कुछ सामने उनके खुदा नहीं
पाबंदी है तुम पर जमाने की
कब आने की, कब जाने की
        स्नेह-डोर से बँधे वो आते
        तुम मिलते जैसे-खैरातों में !

तुम राज छिपाते पर वो नहीं
तुम दिल को दुखाते पर वो नहीं
एतबार को हमारे ठोकर लगा,
तुम हमें ही झुकाते पर वो नहीं
        तुम रंग उड़ा जाते चेहरे का
        वो भर देते रंग जज्बातों में !

तुम हो हकीकत वो हैं छाया
पर मैंने प्यार उन्ही से पाया
मेरे इस जख्मी दिल को जिंदा
रखे हुए है बस उन्हीं का साया
        कैसे ना वारी जाऊँ मैं उन पर
        साथ निभाते नाजुक हालातों में !

जख्म मिला तो तुमसे करते हैं
पर मरहम वो लगाया करते हैं
सूरत तो एक है पर सीरत का
कितना अंतर है देखो दोनों में
        तुम टुकड़े दिल के करते हो
        वो दुखड़े हर लेते बातों में !

तुम नजरों से रहते हो दूर
पर वो रहते दिल में भरपूर
खबर तुम्हें क्या हाल हमारा
वो जानें सब संसार हमारा
        एक वो ही तो भीगा करते हैं
        मेरे अश्कों की बरसातों में !

युग बीत गए तुम्हें देखे बिन
वो जुदा हुए न इक पल छिन
आस में तुम्हारी बीती उमर
पा उन्हें हुआ ये प्यार अमर
        मैं नाचती झूमती हँसती गाती
        उन संग यादों की बारातों में !

-सीमा अग्रवाल