Sunday 26 November 2023

आज देव दीपावली....

देता सुर को त्रास था,    करता पाप अनंत।
त्रिपुरारि कहलाए शिव, किया असुर का अंत।।

त्रिपुरासुर का अंत कर, दिया इंद्र को राज।
आज मुदित मन झूमता,  सारा देव समाज।।

पावन गंगा नीर में, कर कातिक स्नान।
देव दिवाली देवता, करें दीप का दान।।

छाई है अद्भुत छटा, दमक रहे सब घाट।
देव दरस की लालसा, जोहें रह-रह बाट।।

छिटकी नभ में चाँदनी, कातिक पूनम रात।
काशी के गलियार में, झिलमिल दीपक-पाँत।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
फोटो - गूगल से साभार

Friday 24 November 2023

सजल- स्वार्थ-लिप्त है दुनिया सारी...

अपनी आस्था   अपने दावे।
अपनी शान  अपने दिखावे।

अपनी ढपली  अपना गाना,
यही सभी के मन को भावे।

खोट नजर आते सब ही में,
अपनी करनी नजर न आवे।

अपनी-अपनी   कहते सारे,
सच्चाई  क्या  कौन  बतावे ?

स्वार्थ-लिप्त है दुनिया सारी,
आग लगी है   कौन बुझावे ?

भरमाएँ सब   इक दूजे को,
राह सही न    कोई सुझावे।

स्वार्थ-मोह में अंधा मानव,
सुख न किसी का उसे सुहावे।

राजनीति में पल-पल हमने,
देखे  कितने  छद्म- छलावे।

चाल अनूठी नियति-नटी की, 
ता- ता- थैया   नाच  नचावे।

आता कभी न चाँद जमीं पर,
पलक-पाँवड़े  व्यर्थ  बिछावे।

सत्य बताकर    कल्पना को,
कौन  हकीकत को झुठलावे।

लेती किस्मत  कठिन परीक्षा,
पग-पग  कंटक  राह बिछावे।

चुग गई  चिड़िया  खेत सारा,
अब  क्या पगले  तू पछतावे।

जाने  भी  दे  सोच न ज्यादा,
काहे  'सीमा'   खून   जलावे।

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© डॉ. सीमा अग्रवाल
    मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Sunday 12 November 2023

आया कातिक मास...

आया कातिक मास ....

त्योहारों की लिए गठरिया,
आया कातिक मास।
उतर चाँदनी करती भू पर,
परियों जैसा लास।

आज दिवाली का उत्सव है,
चहुँ दिसि है उल्लास।
सजे द्वार-घर-आँगन सबके
अद्भुत अलग उजास।
पकवानों की सोंधी-सोंधी,
आए मधुर सुवास।

माना रात अमा की काली,
विकट घना अँधियार।
उसे बेधने आयी देखो,
जगमग दीप-कतार।
उतरा नभ ले नखत धरा पर,
होता ये आभास।

हल्ले-गुल्ले गली-मुहल्ले,
खुशियों का संचार।
नई-नई आभा में दमकें,
रोशन सब बाजार।
बच्चे छोड़ें आतिशबाजी,
भर मन में उल्लास।

चौदह वर्ष बिताकर वन में,
जीत महासंग्राम।
लौटे आज सिया लखन संग,
अवधपुरी में राम।
पुरवासी फूले न समाए,
दमके मुख पर हास।

आज नखत सब उतरे भू पर,
कर नभ में अँधियार।
प्रभु दरसन की दिल में अपने,
लेकर ललक अपार।
आज अवध में खुशी निराली,
पुलकित हर रनिवास।

साजें दीपावलियाँ घर-घर,
तोरण बंदनवार।
गले मिल सब एक दूजे से,
बाँटे नित उपहार।
रामराज्य आए भारत में,
मिटें सकल संत्रास।

मूल्य वही हों फिर स्थापित,
वरें वही आदर्श।
समरसता हो सार जगत का,
बने वही संदर्श।
दमकें दीप दीप से दीपित,
रचें सुघड़ अनुप्रास।

आया कातिक मास...

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"मनके मेरे मन के" से

Saturday 11 November 2023

माटी तेल कपास की...

जलें तेल अरु वर्तिका, दीप बने आधार।
तीनों के गठजोड़ से, अँधियारे की हार।।

माटी तेल कपास की, तिकड़ी बनी मिसाल।
अँधियारे को बेधने,     बुनती जाल कमाल।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद (उ.प्र.)

Friday 10 November 2023

धनतेरस की शाम...

धनवर्षा से तरबतर, धनतेरस की शाम।
धन्वंतरि की हो कृपा, सब हों पूर्ण सकाम।।

धन-धान्य-आरोग्य मिले, मिले खूब सम्मान।
कृपा करें नित आप पर,  धन्वंतरि भगवान।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Tuesday 7 November 2023

भय लगता है ....

हुए अचानक बदलावों से,
भय लगता है।

परंपराएँ युगों-युगों की,
त्याग भला दें कैसे ?
चिकनी नयी सड़क पर बोलो,
दौड़ें  सरपट  कैसे ?
हो जाएँगे चोटिल सचमुच,
फिसले और गिरे तो।
झूठे जग के बहलावों से,
भय लगता है।

बहे नदी -सा छलछल जीवन,
रौ में रहे रवानी।
पसर न जाए तलछट भीतर,
बुढ़ा न सके जवानी।
हलचल भी गर हुई कहीं तो,
गर्दा छितराएँगे।
ठहरे जल के तालाबों से,
भय लगता है।

चूर नशे में बहक रहे सब,
परवाह किसे किसकी ?
दिखे काम बनता जिससे भी,
बस वाह करें उसकी।
झूठ-कपट का डंका बजता,
भाव गिरे हैं सच के।
स्वार्थ-लोभ के फैलावों से,
भय लगता है।

भूल संस्कृति-सभ्यता अपनी,
पर के पीछे डोलें।
अपनी ही भाषा तज बच्चे,
हिंग्लिश-विंग्लिश बोलें।
घूम रहीं घर की बालाएँ,
पहन फटी पतलूनें।
पश्चिम के इन भटकावों से,
भय लगता है।

आज कर रहे वादे कितने,
सिर्फ वोट की खातिर।
निरे मतलबी नेता सारे,
इनसे बड़ा न शातिर।
नाम बिगाड़ें इक दूजे का,
वार करें शब्दों से।
वाणी के इन बहकावों से,
भय लगता है।

गुजरे कल की बात करें क्या,
पग-पग पर थी उलझन।
मंजर था वह बड़ा भयावह,
दोजख जैसा जीवन।
वक्त बचा लाया कर्दम से,
वरना मर ही जाते।
गए समय के दुहरावों से,
भय लगता है।

हुए अचानक बदलावों से,
भय लगता है।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

कर्मवीर भारत....



भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।
दम पे इन्हीं के सभ्यता अनुदिन यहाँ फूली फली।

नित काम में रत हैं मगर फल की न करते कामना।
सौ मुश्किलों सौ अड़चनों का रोज करते सामना।
इनकी लगन को देखकर हों पस्त अरि के
हौसले,
कैसे विधाता वाम हो जब पूत मन की भावना।
शिव नाम मन जपते चलें ले कर्म की गंगाजली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।

कुछ चुटकियों का खेल है हर काम इनके वास्ते।
धुन में मगन चलते चलें आसान करते रास्ते।
फल कर्म का पहला सदा करके समर्पित ईश को, 
करते विदा सब उलझनें हँसते-हँसाते-नाचते।
कब दुश्मनों की दाल कोई सामने इनके गली।
भारत सदा से ही रहा है,    कर्मवीरों की थली।

उड़ती चिरैया भाँप लें जल-थाह गहरी नाप लें।
अपकर्म या दुष्कर्म का सर पे न अपने पाप लें।
आशीष जन-जन का लिए सर गर्व से ऊँचा किए,
फूलों भरी शुभकर्म की झोली जतन से ढाँप लें।
कलुषित हृदय की भावना कदमों तले घिसटी चली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।

बैठे भरोसे भाग्य के रहते नहीं हैं ये कभी।
करके दिखाते काम हैं कहते नहीं मुख से कभी।
आए बुरा भी दौर तो छोड़ें न करनी साधना,
फुसलाव में भटकाव में आते नहीं हैं ये कभी।
हर शै जमाने की झुकी, पीछे सदा इनके चली।
भारत सदा से ही रहा, है कर्मवीरों की थली।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

घटनी थी जो घट गयी....

अनहोनी होती रहे,       होनी टल-टल जाय।
विधना की मरजी चले, कर लो लाख उपाय।।

घटनी थी जो घट गयी, अब क्या देना तर्क।
बाद हादसे के नहीं,         पहले रहें सतर्क।।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
"दोहा संग्रह" से