अपनी आस्था अपने दावे।
अपनी शान अपने दिखावे।
अपनी ढपली अपना गाना,
यही सभी के मन को भावे।
खोट नजर आते सब ही में,
अपनी करनी नजर न आवे।
अपनी-अपनी कहते सारे,
सच्चाई क्या कौन बतावे ?
स्वार्थ-लिप्त है दुनिया सारी,
आग लगी है कौन बुझावे ?
भरमाएँ सब इक दूजे को,
राह सही न कोई सुझावे।
स्वार्थ-मोह में अंधा मानव,
सुख न किसी का उसे सुहावे।
राजनीति में पल-पल हमने,
देखे कितने छद्म- छलावे।
चाल अनूठी नियति-नटी की,
ता- ता- थैया नाच नचावे।
आता कभी न चाँद जमीं पर,
पलक-पाँवड़े व्यर्थ बिछावे।
सत्य बताकर कल्पना को,
कौन हकीकत को झुठलावे।
लेती किस्मत कठिन परीक्षा,
पग-पग कंटक राह बिछावे।
चुग गई चिड़िया खेत सारा,
अब क्या पगले तू पछतावे।
जाने भी दे सोच न ज्यादा,
काहे 'सीमा' खून जलावे।
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© डॉ. सीमा अग्रवाल
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