Friday 24 November 2023

सजल- स्वार्थ-लिप्त है दुनिया सारी...

अपनी आस्था   अपने दावे।
अपनी शान  अपने दिखावे।

अपनी ढपली  अपना गाना,
यही सभी के मन को भावे।

खोट नजर आते सब ही में,
अपनी करनी नजर न आवे।

अपनी-अपनी   कहते सारे,
सच्चाई  क्या  कौन  बतावे ?

स्वार्थ-लिप्त है दुनिया सारी,
आग लगी है   कौन बुझावे ?

भरमाएँ सब   इक दूजे को,
राह सही न    कोई सुझावे।

स्वार्थ-मोह में अंधा मानव,
सुख न किसी का उसे सुहावे।

राजनीति में पल-पल हमने,
देखे  कितने  छद्म- छलावे।

चाल अनूठी नियति-नटी की, 
ता- ता- थैया   नाच  नचावे।

आता कभी न चाँद जमीं पर,
पलक-पाँवड़े  व्यर्थ  बिछावे।

सत्य बताकर    कल्पना को,
कौन  हकीकत को झुठलावे।

लेती किस्मत  कठिन परीक्षा,
पग-पग  कंटक  राह बिछावे।

चुग गई  चिड़िया  खेत सारा,
अब  क्या पगले  तू पछतावे।

जाने  भी  दे  सोच न ज्यादा,
काहे  'सीमा'   खून   जलावे।

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© डॉ. सीमा अग्रवाल
    मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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