Tuesday 17 February 2015

क्या देने अभी बलिदान रह गए !

जाने कैसी बाढ़ ये आयी
मेरे सब अरमान बह गए !

अपमानों के घूँट मिले औ
रखे सारे सम्मान रह गए !

जग की दलीलें सुनने में,
धरे मेरे फरमान रह गए !

आए इतने अवरोध मग में,
फासले दरम्यान रह गए !

ले उत्कोच मेरी नियति के
सोते सब दरबान रह गए !

जाने कहाँ क्या कमी रही,
मिलने से वरदान रह गए !

लुट गई बस्ती ख्वाबों की
कहाँ मेरे भगवान रह गए !

क्या है मेरे गमों की सीमा
क्या देने बलिदान रह गए !

-सीमा

Monday 16 February 2015

सुन तुम्हारे दिल की धड़कन---

सुन तुम्हारे दिल की धडकन,
सांस चलती थी मेरी !
तुम पर कोई आँच आए,
जां निकलती थी मेरी !
जी रही हूँ कैसे तुम बिन ,
हैरान हूँ ये देखकर,
पहले तो पहलू में तुम्हारे,
साँझ ढलती थी मेरी !

रब ही जाने कैसे तुम बिन जिंदगी चलती मेरी ! गुमनामियों के साए में उम्र यूँ ही ढलती मेरी !

- सीमा अग्रवाल

बाँट लूँ-----

बाँट लूँ हर गम साथ तेरे !
आ हाथ में दे दे हाथ मेरे !
जब,जैसे,जहाँ भी तू कहे,
चल दूँगी मै भी साथ तेरे !

        - सीमा       

Saturday 14 February 2015

यूँ आशा हमें बहलाती है---

जब दुख की अति हो जाती है
दिग्भ्रमित मति हो जाती है
एक किरण कौंध कहीं जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

जब रात अमा की आती है
राका भी नजर चुराती है
एक लौ कहीं जल जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

जब बदली गम की छाती है
घनघोर घटा घिर आती है
चल चपला चमक तब जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

अंत निकट जब दिखता है
तम-सा आँखों में घिरता है
अलख-ज्योति राह सुझाती है
यूँ आशा  हमें बहलाती है !

जीवन में जितने घाव मिले
हौले हौले उन्हें सहलाती है !
उतार फेंकती तम की चादर
रवि-किरनों से नहलाती है !
           यूँ आशा हमें बहलाती है !
        

-सीमा अग्रवाल

Thursday 12 February 2015

वक्त बदला दुनिया बदली

वक्त बदला
दुनिया बदली
बदले हम-तुम भी
पर आपस में !
मैं तुम और तुम
मैं हो गए !
हो गए जुदा
बाहर से
जुड़ते गए पर
भीतर ही भीतर !
चिन्ह उगे तन पर
परिवर्तन के
पर आज भी
मन वही का वही
न बदला लेशमात्र भी !
अहसास न बदले
तुमसे जुड़े
मेरे भाव न बदले !
खयालात न बदले !
आज भी मैं तुममें
तुम मुझमें
खुद को
जिया करते हैं !
दुनिया की
नजरों से दूर
मन की दुनिया में
खुल के जिया करते हैं !

- सीमा

Friday 6 February 2015

उस पार क्षितिज के

देखो उस पार क्षितिज के,
दिखता जो अंतिम छोर है !
वहाँ से हाथ हिला कर कोई,
मुझे बुलाता अपनी ओर है !

खिंचती जाती मैं पास उसके
बँधी उस संग नेह की डोर है !
याद जब-जब आती उसकी
भीग जाती नयन की कोर है !

निशां न वहाँ गम के तम का
खिली रहती उजली भोर है !
जाना चाहूँ दौड़ पास उसके
न जानूं, जाना किस ओर है !

-सीमा

Thursday 5 February 2015

यह तो---

यह तो गमों ने आवाजाही लगा रखी है ।
रात-दिन दिल की महफिल सजा रखी है ।
वरना तो पसरी थी वीरानी यहाँ से वहाँ तलक,
भावों का चमन, जग ने तो उजाड़ ही डाला था ।

       -सीमा अग्रवाल

Tuesday 3 February 2015

आजा कयामत !

आजा कयामत ! अब तू भी आजा,
इंतजार की घड़ियाँ कुछ कम तो हों !
जीते जी नहीं तो,मरने पर ही सही,
पल भर आँखें उनकी भी नम तो हों !

-सीमा