जाने कैसी बाढ़ ये आयी
मेरे सब अरमान बह गए !
अपमानों के घूँट मिले औ
रखे सारे सम्मान रह गए !
जग की दलीलें सुनने में,
धरे मेरे फरमान रह गए !
आए इतने अवरोध मग में,
फासले दरम्यान रह गए !
ले उत्कोच मेरी नियति के
सोते सब दरबान रह गए !
जाने कहाँ क्या कमी रही,
मिलने से वरदान रह गए !
लुट गई बस्ती ख्वाबों की
कहाँ मेरे भगवान रह गए !
क्या है मेरे गमों की सीमा
क्या देने बलिदान रह गए !
-सीमा