Friday 31 October 2014

मेरे गम के तम पर-----

मेरे गम के तम पर तेरी,
शुभ्र धवल मुस्कान !
चाँदनी बिखर जाती है,
ज्यों अँधेरी रात में !

स्वप्न सुनहरे आ ह्रदय में,
गम के बादल देते चीर !
कौंधती है बिजली रह रह,
ज्यों मौसम बरसात में ।

अरमाँ चाहत ख्वाब सभी,
ढक लेती गम की चादर !
छिप जाता माया का वैभव,
ज्यों निशा के गात में !

कह देता हर राज दिल का,
आँखों से बरसता पानी !
मिल जाता मर्म जीवन का,
ज्यों मुरझाए पात में !

सुधबुध बिसरा निज तन की,
बँध गया मन प्यार में उसके !
खुद बन्दी हो जाता भँवरा,
ज्यों आकर जलजात में !

-सीमा अग्रवाल

Monday 27 October 2014

मेरी वफाओं का-----

मेरी वफाओं का उसने,
क्या खूब मुझे ईनाम दिया !
पढ़े बिना ही दिल मेरा,
'बेवफा' मुझे ये नाम दिया !

खुदा मानकर जिसको मैंने,
खुद को ही था भुला दिया !
खुदगर्जी का आज उसी ने,
मुझको बड़ा इल्जाम दिया !

प्यार न देना था न देता,
पर कुछ तो रहम करता !
क्यों रुसवाई का मेरे हवाले,
उसने कड़वा जाम किया !

माना, मैं वो समझ न पाई,
जो समझाना चाहा उसने !
पर उसने भी न समझ मुझे,
कौन बड़ा कोई काम किया !

कह लेता मुझे वो कुछ भी,
सब सह लेती मैं हँस कर !
पर उसने तो सरे बाजार,
बैठ मुझे बदनाम किया !

मेरी वफाओं का उसने,
क्या खूब मुझे ईनाम दिया !

-सीमा अग्रवाल

Friday 10 October 2014

करना मेहर ओ ! शेरा वाली

मेरे बिछुओं की लम्बी उमर हो !
मेरी बिंदिया चंदा-सी अमर हो !
मुरझाए कभी न माँग की लाली
करना मेहर ओ ! शेरा वाली !!

दिल में उनके मेरी कदर हो !
प्यार भरा जीवन का सफर हो !
उल्फत का रुपया हो न जाली
करना मेहर ओ----------

तेरी कृपामयी नजर जिधर हो !
रुख हर सुख का सदा उधर हो !
पूरी हो मन्नत जो मन में पाली
करना मेहर ओ----------

चरणों में तेरे अनुराग अटल हो
निर्मल मुकुर-सा मन का पटल हो
तेरे दर से झोली जाए न खाली
करना मेहर ओ -----------

तेरी जगती में सबको सुख हो !
अश्कों से भीगा एक न मुख हो !
फूले-फले हर घर की डाली
करना मेहर ओ ! शेरा वाली !!

-सीमा अग्रवाल

Wednesday 8 October 2014

कुछ दोहे----

सोनचिरैया देश यह, था जग का सिरमौर।
महकाती सारा जहां, कहाँ गई वह बौर ।।

रक्षक ही भक्षक बने, खींच रहे हैं खाल ।
हे प्रभु ! मेरे देश का, बाँका हो न बाल ।।

आरक्षण के दैत्य ने, प्रतिभा निकली हाय !
देश रसातल जा रहा, अब तो दैव बचाय ।।

झांसे में न आ जाना, सुन कर मीठे बोल ।
दिल की सुनना बाद में, लेना बुद्धि से तोल ।।

बेरोजगारी बढ रही, जनसंख्या के साथ । 
  बीसियों पेट भर रहे, केवल दो ही हाथ ।।

मुंह से निकली बात के, लग जाते हैं पैर ।
बात बतंगड गर बने, बढ जाते हैं बैर ।।

फल तो उसके हाथ है, करना तेरे हाथ ।
निरासक्त हो कर्म कर, देगा वो भी साथ ।।

लोभ मोह सब छोड़ कर, कर ले प्रभु का जाप ।
अब तक जितने भी किए, धुल  जाऐंगे  पाप ।।

यह सभ्यता यह संस्कृति, यह वाणी यह वेष । कुछ भी तो अपना नहीं, बचा नाम बस शेष ।।

-सीमा अग्रवाल
   मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

की जब मैंने दुख से प्रीत-----

कल क्या होगा
इस चिंता में,
रात गई
आंखों में बीत ।

ओठों पर
आने से पहले
सुख का प्याला
गया रीत ।

आशाओं का
दीप जला, ढूँढा,
न मिला
जीवन-संगीत ।

किस्मत भी जब
हुई पराई ,
फूट पड़ा
अधरों से गीत ।

साथी सुख, तनहा
छोड गया जब,
दर्द मिला बन,
मन का मीत ।

हर सुख से,
खुद को ऊपर पाया,
की जब मैंने,
दुख से प्रीत ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

क्यूँ न खिलखिलाएँ आप -----

क्यूँ न खिलखिलाएँ आप,
आपकी किस्मत बुलंद है ।
अपने यहाँ तो आजकल,
खुशियों का आना बंद है ।

आपके हर भाव से,
टपकता है रस श्रंगार का ।
अपने तो दिल से निकलता,
गम में डूबा छंद है ।

आपकी दुनिया को रोशन,
करते सूरज चाँद सितारे ।
यहाँ टिमटिमाता एक दीया है,
जिसकी रोशनी भी मंद है ।

आप जमीं पर क्यों रुकें,
जब पंख मिले हैं चाहतों को ।
अपनी तो हर एक तमन्ना,
दिल में नजरबंद है ।

बेखबर हर गम से उनकी,
बेफिक्र चलती जिंदगानी ।
अपने तो दिल में पनपता,
हर पल नया एक द्वन्द्व है ।

अनंत है सीमा दुखों की,
गम का कोई अंत नहीं ।
छिनता रहा हमसे वही,
जिसे दिल ने कहा-पसंद है ।

सुमन जो खिलता डाल पर,
झर जाता एक दिन वही ।
जान लो के हर शै यहाँ,
वक्त की पाबंद है ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

किस्मत इतनी खोटी क्यों है !

किस्मत इतनी खोटी क्यों है !
हर खुशी इतनी छोटी क्यों है !
काँधे पर इस नाजुक दिल के,
गठरी गम की मोटी क्यों है !!

की ही नहीं जो मैंने गलती ,
उसकी सजा जब मुझको मिलती ।
करुण व्यथा मेरे अंतर की ,
आँसू बन आँखों से ढलती !!

मेरी हर मुस्कान रव ने,
पलक-पानी संग घोटी क्यों है !!
किस्मत इतनी खोटी क्यों है !
हर खुशी इतनी छोटी क्यों है !!

इस हँसते चेहरे के पीछे,
दर्द की गहरी पर्त जमी है !
जान किसकी आस में अब तक,
जीवन की ये डोर थमी है !!

जब भी चले खेल नसीब का ,
पिटती मेरी गोटी क्यों है !!
किस्मत इतनी खोटी क्यों है
हर खुशी इतनी छोटी क्यों है !!

--सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश )

Tuesday 7 October 2014

आ जाओ सनम-------

आ जाओ सनम,मेरी सेज है सूनी !
तुम बिन तुमसे हुई, प्रीत है दूनी !!

विरहानल में,जलता जीवन
अश्कों में गल, ढलता यौवन
मैं जल-जल, गल-गल मर न जाऊँ
कहे न तुमको, ये जग खूनी !
आ जाओ सनम--------

छोड़ो न यूँ तुम, साथी अपना
बने न हकीकत, फिर एक सपना
टूटे, गिर जहाँ से प्यार की मूरत
मंजिल वो ऊँची, क्या छूनी !
आ जाओ सनम---------

छोड़ो न तनहा, अरमान मेरे
अभिशाप बनें न, वरदान मेरे
बनाएगी क्या-क्या मिलकर बातें
जिह्वा जग की, बड़ी बातूनी !
आ जाओ सनम----------

बेष बनाकर जोगी वाला
हाथ में ले अश्कों की माला
पल-पल जपते नाम तुम्हारा
अरमाँ रमाने चले हैं धूनी !
आ जाओ सनम--------

आ जाओ सनम, मेरी सेज है सूनी !
तुम बिन तुमसे हुई , प्रीत है दूनी !!

-डाॅ0 सीमा अग्रवाल,
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )