Wednesday 12 January 2022

उठो, जागो, बढ़े चलो बंधु ( स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के शुभ अवसर पर उनके द्वारा दिए गए उत्प्रेरक मंत्र से प्रेरित नर्मदा प्रकाशन से "वेदांत" काव्य संग्रह में प्रकाशित मेरी स्वरचित रचना )

उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु...

उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु, 
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

सपने सतरंगी आगत के,
सजें तुम्हारी आँखों में।
जज्बा जोश लगन सब मिलकर,
भर दें उड़ान पाँखों में।

रखकर गंतव्य निगाहों में,
अर्जुन सम तीर चलाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु, 
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

तुम युवक ही रीढ़ समाज की,
टिका है भविष्य तुम्हीं पर।
तुम्हीं देश के कर्णधार हो,
नजरें सभी की तुम्हीं पर।

निज ऊर्जा, महत्वाकांक्षा से
ऊँचा तुम इसे उठाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु, 
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

मंजिल चूमे कदम तुम्हारे,
भरी हो खुशी से झोली।
देख तुम्हारे करतब न्यारे,
नाचें  झूमें  हमजोली।

देश तरक्की करे चहुँमुखी,
अग जग में मान बढ़ाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु, 
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

कुदरत के लघु अवयव को भी,
क्षति न कभी तुम पहुँचाना।
पूज चरण पीपल-बरगद के,
बैठ छाँह में सुस्ताना।

दीन-हीन निरीह जीवों को,
जीवन की आस बँधाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु, 
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।

असामाजिक तत्व समाज के
खड़े राह को रोकें तो,
डाह भरे निज सम्बन्धी भी
छुरा पीठ में भोंकें तो,

करके नजरंदाज सभी को
पथ अपना सुगम बनाओ।
उठो-जागो-बढ़े चलो बंधु, 
न जब तक लक्ष्य तुम पाओ।
- ©® डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
" वेदांत " से