Sunday 18 June 2023

तके अमावस मौन...

चाँद नभ से दूर चला, तके अमावस मौन।
विरह-विदग्धा यामिनी, व्यथा सुनेगा कौन ?।।

© सीमा अग्रवाल

जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

Saturday 17 June 2023

पितृ दिवस पर...

पितृ दिवस के शुभ अवसर पर प्रिय पिता की स्मृतियों को समर्पित मेरे द्वारा रचित चंद दोहे...

दिनभर के व्यापार का,      पिता रचे मजमून।
घर-भर की रौनक पिता, पिता बिना सब सून।।

काँधे पर अपने बिठा, खूब करायी सैर।
छोटी सी भी चोट पर, सदा मनायी खैर।।

तुम मुखिया परिवार के, रखते सबका ध्यान।
मिली तुम्हारे नाम से,    हम सबको पहचान।।

सबका ही हित साधते, किया न कभी फरेब।
पिता  तुम्हें  हम  पूजते,     तुम  देवों के देव।।

चिर स्मरणीय तात तुम, सदा रहोगे याद ।
मन से मन में गूँजता,  मूक बधिर संवाद।।

किया नहीं संग्रह कभी, फैले कभी न हाथ।
किस्मत से ठाने रहे,    नहीं  झुकाया माथ।।

ज्ञाता  थे  कानून  के,  देते   राय    मुफीद।
उनके कौशल ज्ञान की, दुनिया बनी मुरीद।।

लालच कभी किया नहीं, सिद्ध किया न स्वार्थ।
राय सभी को मुफ्त दी,      कर्म किए परमार्थ।।

भूले  अपने  शौक  सब,   हमें  दिखाई   राह।
पथ प्रशस्त सबका किया, देकर सही सलाह।।

धुर विरोधी भाग्य-कर्म,        निभती कैसे प्रीत।
जिस पथ से भी तुम चले,भाग्य चला विपरीत।।

खुद्दारी ईमान सच, सहनशीलता न्याय।
गुँथे आप में इस तरह, हों जैसे पर्याय।।

आए कितने ताड़ने,   धन-दौलत ले साथ।
सच से मुँह फेरा नहीं, सदा निभाया साथ।।

माँ पत्नी तनया बहन, दिया सभी को मान।
कोई  तुमसे  सीखता, नारी   का   सम्मान।।

सीखा तुमसे ही प्रथम, अनुशासन का अर्थ।
अभेद्य नहीं था कुछ तुम्हें, तुम थे सर्व समर्थ।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Thursday 15 June 2023

माना तुम्हारे मुक़ाबिल नहीं मैं...

माना तुम्हारे  मुक़ाबिल  नहीं मैं...

माना तुम्हारे  मुक़ाबिल  नहीं मैं।
पर इतनी भी नाक़ाबिल नहीं मैं।

खुद को समझूँ खुदा, मूढ़ और को,
हूँ, लेकिन इतनी ज़ाहिल नहीं मैं।

काम जो भी मिला तन-मन से किया,
कपट औ झूठ में शामिल नहीं मैं।

समझती हूँ चाल बेढब सभी की,
होश पूरा मुझे, ग़ाफिल नहीं मैं।

सिर्फ दिखावे की हों बातें जहाँ,
मज़मे में ऐसे दाखिल नहीं मैं।

वजूद मेरा मिल्कियत है मेरी,
कृपा का किसी की, हासिल नहीं मैं।

मुझको निरंतर चलते ही जाना,
दरिया हूँ बहता, साहिल नहीं मैं।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday 6 June 2023

नित सुरसा सी बढ़ रही....

नित सुरसा सी बढ़ रही, लालच-वृत्ति दुरंत।
कहाँ रुकेगी लालसा, कहाँ स्वार्थ का अंत।।

मन में है दुविधा बड़ी, जाए तो किस ओर।
सोच न पाए मन विकल,  हुई रैन से भोर।।

रख मत जोड़बटोर कर, नश्वर सब सुखसाज।
माटी में मिलते दिखे,        कितने तख्तोताज।।

लिप्सा तज संतोष-धन, मन में करो निवेश।
शाश्वत सुख की संपदा, हर लेती हर क्लेश।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

नित सुरसा सी बढ़ रही....

नित सुरसा -सी बढ़ रही, इच्छा शक्ति दुरंत।

नित सुरसा -सी बढ़ रही, इच्छा शक्ति दुरंत।
कहाँ रुकेगी लालसा, कहाँ स्वार्थ का अंत।।

मन में है दुविधा बड़ी, जाए तो किस ओर।
सोच न पाए मन विकल, हुई रैन से भोर।।

रख मत जोड़बटोर कर, नश्वर सब सुखसाज।
माटी में मिलते दिखे, कितने तख्तोताज।।

लिप्सा तज संतोष-धन, मन में करो निवेश।
शाश्वत सुख की संपदा, हर लेती हर क्लेश।।

© सीमा अग्रवाल