Tuesday 27 July 2021

मुझे याद तुम्हारी आती है....

बदली जब नभ में छाती है
धरा झूम- झूम इठलाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

इक बूँद बरस जब स्वाति की
चातक की प्यास बुझाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

चंद्र-ज्योत्स्ना आ चकोर को
ओढ़नी जब धवल उढ़ाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

मधुर स्पर्श पा रवि-करों का
कमलिनी खिल जब जाती है
मुझे याद तुम्हारी आती है

- © डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)

Wednesday 21 July 2021

किन्नर व्यथा..

किन्नर व्यथा पर...

जिस जननी ने जाया हमको, किया उसने ही हमें पराया।
जिस पिता का खून रगों में, उसे भी हम पर तरस न आया।
अन्याय  समाज और अपनों का, जन्म लेते ही हमने झेला।
उलझे रहे नित प्राण हमारे, जीवन के सम-विषम में।

कोख वही सेती है हमको,बीज वही पड़ता है हममें।
बिगड़ा मेल गुण-सूत्रों का, जो रह गयी कमी कुछ हममें।
लाडले हो तुम मात-पिता के,  हम उनके ठुकराए हैं।
एक ही माँ के जाये हम-तुम, अंतर क्या तुममें हममें ?
- ©  सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Monday 19 July 2021

कोई अपना उपमान नहीं है.....

कोई अपना उपमान नहीं है....

शून्य जीवन, एक दिल, दो नयना,आँसू अनगिन, गम बेशुमार
कितना रोना लिखा भाग्य में, हमें किंचित अनुमान नहीं है।

मन-पृष्ठ कोरे, सूखी स्याही
रहती गमों  की आवाजाही
हर चाह से  करती किस्मत 
हफ्ता बसूली   और उगाही
दुख से युगों-युगों का नाता, सुख से कोई पहचान नहीं है
हम जैसे बस एक हमीं हैं, कोई अपना उपमान नहीं है

मीलों  दूर  चले आए हम
बचपन  पीछे  छोड़ आए
नव्य तलाशने की खातिर 
संबंध  पुराने   तोड़ आए
जड़ों से अपनी कटकर जीना इतना भी आसान नहीं है

भाग्य हीनता आयी  हिस्से 
आँसू  हुए  बदनाम  हमारे
टीस, घुटन, संत्रास, वेदना
लिखे गये सब  नाम हमारे
गिन-गिन फलीं सब बद्दुआएँ, फला कोई वरदान नहीं है
हम जैसे बस एक हमीं हैं, कोई अपना उपमान नहीं है
- © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
"मनके मेरे मन के" से

Saturday 17 July 2021

चलो उस पार....

चलो उस पार चलते हैं, जहाँ गम का निशां ना हो
जहाँ कल कल नदी बहती, हवा का खूब आना हो
न हों छल-छद्म से कंटक, सभी सुख से रहें मिलकर
बरसता हो जहाँ सावन, खुशी का ना ठिकाना हो
- © डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

अजब जग के नजारे हैं....

मुक्तक ...
1222 1222 1222 1222
न खाते फल तरू अपने, न पीती जल नदी अपना,
बरसते मेघ परहित में, न रखते स्वार्थ ये अपना,
गगन में चाँद सूरज भी, जगत हित रोज आते हैं,
सुजन जग में जनम लेकर, निभाते फर्ज हर अपना ।१।

नहीं रोते कभी गम में,  खुशी पाकर न हँसते हैं,
रखें मन शांत सुख-दुख में,निभाते खूब रिश्ते हैं,
जमाने के सभी वैभव, सदा फीके लगें जिनको,
बड़े दुर्लभ सुजन ऐसे,      धरा पर वे फरिश्ते हैं।२।

कहीं सूखा कहीं बाढ़ें, अजब जग के नजारे हैं,
कहीं घनघोर  बारिश है,  कहीं सूखे किनारे हैं,
उजालों औ अँधेरों में, छुपा है सार जीवन का,
धरा आकाश मिल दोनों, करें गुपचुप इशारे हैं।३।

उधर देखो झुपड़पट्टी,    वहाँ इक नार रहती है,
धरा सिर बोझ है उसके, धरा सा भार सहती है,
घटा घुमड़ जब आती है,भिगोकर खूब जाती है,
इधर आँसू बरसते हैं,    नदी उस पार बहती है।४।

गजब छायी बहारें हैं,  अजब जग के नजारे हैं,
जरा देखो  उधर सजना, उतर आए  सितारे हैं,
गगन खामोश तकता है,  धरा बेहाल दिखती है,
कहीं शोले कहीं शबनम, कहीं दिखते शरारे हैं।५।
- © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Wednesday 7 July 2021

सभी गम से गुजरते हैं....

एक मुक्तक...
1222 1222 1222 1222

न रोको तुम किसी को भी, न टोको तुम किसी को भी
करे जो जी करे जिसका,  न बोलो कुछ किसी को भी
हमारा  फर्ज  समझाना,     न समझे तो  करें क्या हम 
सभी गम से गुजरते हैं,   न समझो खुश किसी को भी
-© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

प्यारा सा अलबेला चाँद....

प्यारा-सा अलवेला चाँद...

रूप का उसके कोई न सानी, प्यारा-सा अलवेला चाँद
निहारे धरा को टुकुर-टुकुर, गोल मटोल मटके-सा चाँद

चुपके-चुपके साँझ ढले  वह, नित मेरी गली में आता
नजरें बचाकर सारे जग से, तड़के ही छिप जाता चाँद

सहज-सरल औ रजत-धवल है, स्निग्ध वपु नवल-विमल
तुम्हारे शहर से तो उजला है, मेरी गँवई बस्ती का चाँद

जब भी दौड़ूँ उसे पकड़ने, हाथ न मेरे कभी वह आए
औचक छिटक जा पहुँचे नभ में, माला के मनके-सा चाँद

भाव दिखाकर उछल अदा से, दूर गगन में जा बैठे
नभ में  तन्हा मारे फिर मक्खी, मंदी के धंधे-सा चाँद

दूषित हवा के पड़े थपेड़े, आनन विवर्ण हुआ उसका
पाण्डु रोग से पीड़ित लगता, जर्द पड़ा हल्दी-सा चाँद

पकड़ न आये शरारत उसकी, शातिर बड़ा हुनर वाला
रात-रात भर विचरे अकेला,  आवारा  लड़के-सा चाँद

जब-जब भी मैं उसे पुकारूँ, जा छुपे बदली की ओट
कितना मनाऊँ न माने पर, क्या जानूँ क्यों रूठा चाँद

राह तक-तक नयना हारे, न जाने कहाँ छुपा है निष्ठुर
उमर उसे लग जाये मेरी,  प्रभु रहे सलामत मेरा चाँद
- © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Monday 5 July 2021

कभी थे फूल से कोमल- एक मुक्तक

1222 1222 1222 1222
कभी थे फूल से कोमल, मगर अब शूल से लगते
हुए जो दिल कभी इक जां, नदी के कूल से लगते
तराने प्रेम के मेरे, मुझे ही आज छलते हैं
बसी थी हर खुशी जिनमें, वही अब भूल से लगते
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"मनके मेरे मन के" से

सोने-चाँदी से न तोल सनम...

साहित्यपीडिया हिंदी
Post published!
Jul 5, 2021 · गीत
 Reading time: 1 minute

सोने-चाँदी से न तोल सनम…

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सोने- चाँदी से न तोल सनम….

सोने- चाँदी से न तोल सनम
प्यार होता है अनमोल सनम

प्यार में सौदा, तौबा रे तौबा
प्यार में शर्तें, तौबा रे तौबा
वणिक-सी बात न बोल सनम
प्यार होता है अनमोल सनम

तोड़ के सारी प्यार की रस्में
साथ निभाने की सब कसमें
जीवन में विष न घोल सनम
प्यार होता है अनमोल सनम

प्यार है पूजा, प्यार है इबादत
समझ न इसको कोई तिजारत
चले न यहाँ कोई झोल सनम
प्यार होता है अनमोल सनम

इस राह चलना आसान नहीं
कायर का यहाँ पर मान नहीं
खुलती है कभी तो पोल सनम
प्यार होता है अनमोल सनम

बड़े – बड़े नाज़ों से पाले
ऊँचें महलों में रहने वाले
बिक जाते यहाँ बेमोल सनम
प्यार होता है अनमोल सनम
सोने-चाँदी से न तोल सनम
-© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“काव्यधारा” से

Friday 2 July 2021

आज तुम्हें फिर देखा हमने....

आज तुम्हें फिर देखा हमने….

आज तुम्हें फिर देखा हमने
तड़के अपने ख्वाब में
छुप कर बैठे हो तुम जैसे
मन के कोमल भाव में

किस घड़ी ये जुड़ गया नाता
तुम बिन रहा नहीं अब जाता
कब समझे समझाने से मन
हर पल ध्यान तुम्हारा आता

जहाँ भी जाएँ पाएँ तुम्हें
निज पलकन की छाँव में

क्यों तुम इतने अच्छे लगते
मन के कितने सच्चे लगते
छल-कपट से दूर हो इतने
भोले जितने बच्चे लगते

मरहम बनकर लग जाते हो
जग से पाए घाव में

तुम पर कोई आँच न आए
बुरी नजर से प्रभु बचाए
स्वस्थ रहो खुशहाल रहो तुम
दामन सुख से भर-भर जाए

साजे पग-पग कमल-बैठकी
चुभे न काँटा पाँव में

नजर चाँद से जब तुम आते
मन बिच कैरव खिल-खिल जाते
भान वक्त का जरा न रहता
बातों में यूँ घुल-मिल जाते

यूँ ही आते-जाते रहना
मेरे मन के गाँव में

आज तुम्हें फिर देखा हमने…

– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“मनके मेरे मन के” से

Thursday 1 July 2021

क्या क्षणिक इन आँधियों से....

रहे न अगर आस तो....

क्या क्षणिक इन आँधियों से,जिंदगी डर जाएगी
रहे न अगर  आस तो हाँ, प्यास  ही  मर जाएगी

तू बस अपना काम कर
फल चला खुद आएगा
तीरगी  को  चीर,  वहीं
रौशनी    रख   जाएगा
मन में  शीतल  शुद्ध  हवा,  ताजगी भर जाएगी
रहे न अगर  आस तो हाँ.....

वक्त ठहर गया तो क्या
समय न अपना तू गँवा
हौसलों  में   जान   रहे
पल में  होगा दुख  हवा
झोंका सुख का आएगा,  किस्मत सँवर जाएगी
रहे न अगर  आस तो हाँ.....

पहुँच न ले  गंतव्य  तक
न तब तलक तू साँस ले
मंजिल  निकट  आएगी
मिट   जाएँगे    फासले
छूकर  मन  की  भावना, मौत  भी  तर  जाएगी
रहे न अगर  आस तो हाँ......

जिंदगी का  सुर्ख सफ़ा
पल-पल नजरों  में  रहे
हार-जीत का फलसफ़ा
नित-नित  साँसों में बहे
ढील  जरा  भी  दी  अगर, चेतना  मर  जाएगी
रहे न अगर  आस तो हाँ, प्यास ही मर जाएगी
- © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"मनके मेरे मन के" से