Sunday 29 May 2016

ए चाँद रात भर कहाँ विरमाए-----

कितना पुकारा
तुम नही आए !
ए चाँद रातभर
कहाँ विरमाए !

जीती हूँ मैं तो
देख तुम्हें ही
तुम बिन कैसे
नींद आ जाए !

नीरव रजनी
सोई है जगती
तनहाई मेरी
मुझे ही डराए !

इतनी दूर बस
रहो तुम प्यारे
धवल चाँदनी
मुझ तक आए !

निशाकंत तुम
कलावंत तुम
रूप तुम्हारा
मन को लुभाए !

मिट जाए अगन
थकन भी सारी
आगोश में अपने
जो मुझे सुलाए !

जितना जग से
मिलता हलाहल
उतना संजीवन
मन तुझसे पाए !

विचरो स्वच्छंद
नील निलय में
तुम पर ना कोई
बादल मंडराए !

छलकें जो बूँदें
सुधारस भीनी
पलकें झपें मेरी
नींद आ जाए !

- सीमा

Sunday 22 May 2016

तुम प्रतिमा शब्दों की मेरे ----

तुम प्रतिमा शब्दों की मेरे
भावों का मेरे आलम्बन !
तुम मेरी लघुता की गरिमा
जड़ता का मेरी स्पंदन !

अब मैं तुमसे दूर कहाँ
मन से मन के तार जुड़े
पग बढ़ें जिधर भी मेरे
मन ये तुम्हारी ओर मुड़े

चाह रही ना कोई बाकी
मिला तुम्हारा अवलंबन !

सांध्य गगन में जीवन के
चाँद से नजर तुम आए
पाकर मन की शीतलता
मेरा रोम- रोम हरषाए

सरकने लगा है धीरे धीरे
ख्वाबों से मेरे अवगुंठन !

तुम आदर्श मेरे जीवन के
सृजन का आधार हो तुम
दूर रहो तुम चाहे जितना
मन में सदा साकार हो तुम

मेरे उच्छृंखल प्राणों का
हो तुम्हीं मर्यादित बंधन !

बीन- सी स्वर लहरी सुन
होता विकल मन का हिरन
निरख छवि घनश्याम-सी
मन- मयूर करता है नर्तन

झंकृत हो उठता तार-तार
है कैसा अद्भुत ये आकर्षन !

- सीमा

Saturday 21 May 2016

मैं तुम पर कोई गीत लिखूं----

मन कर रहा आज ये मेरा
मैं तुम पर कोई गीत लिखूँ
तुम ही बता दो, नाम तुम्हारा
चितचोर लिखूँ, मनमीत लिखूँ !

कैसा व्यापार लगाया मैंने
क्या खोया क्या पाया मैंने
जान सके न मन ये बाबरा
हार लिखूँ या जीत लिखूँ !

प्यार से अपने मुझे सँवारा
बदल दी मेरी जीवन- धारा
है रोम- रोम स्पन्दित जिससे
वो जीवन का संगीत लिखूँ !

जब से तुम जीवन में आए
मन ने कितने ख्वाब सजाए
कितनी अनोखी, कितनी प्यारी
तुम संग अपनी प्रीत लिखूँ !

कभी क्रोध में गरजे मुझ पर
कभी अभ्र से बरसे मुझ पर
समझ ना आए तासीर तुम्हारी
उष्ण लिखूँ या शीत लिखूँ !

मन कर रहा आज ये मेरा
मैं तुम पर कोई गीत लिखूँ !
तुम ही बता दो, नाम तुम्हारा
चितचोर लिखूँ, मनमीत लिखूँ !

-सीमा

Friday 20 May 2016

रिदय के कोरे पृष्ठों पर आज मैं ------

रिदय के कोरे पृष्ठों पर आज मैं
मन की अपने हर बात लिख दूँ

लिख दूँ खुद को जनम की प्यासी
तुमको रिमझिम बरसात लिख दूँ

रह- रह जो बनते- बिगड़ते मन में
चुन- चुन वो सारे जज्बात लिख दूँ

लिख दूँ तुम्हें मैं विभा शशधर की
खुद को चकोरी साँवल गात लिख दूँ

लिख दूँ तुम्हें मैं चितचोर कन्हैया
खुद को ग्वालन एक अज्ञात लिख दूँ

लिख दूँ तुम्हें अरुणिमा दिनकर की
खुद को विकसता जलजात लिख दूँ

मैं तो सीमा- बद्ध क्षणिक एक बंधन
तुम्हें अखिल विश्व में व्याप्त लिख दूँ

- सीमा

Wednesday 11 May 2016

ए मन ये क्या कर दिया तूने ---

मुझे ही मुझसे छीन लिया तूने !
ए मन ! ये क्या कर दिया तूने !

आँखों में मेरी अश्क भर दिए
अधरों को मेरे सी दिया तूने !

विवेक को भी तो बख्शा न मेरे
संज्ञा शून्य उसे कर दिया तूने !

उखाड़ के मुझको मेरी जमीं से
क्यूं चाह को पंख दे दिया तूने !

रहने ही देता मुझे सीमा में मेरी
असीम से क्यूँ मिला दिया तूने !

- सीमा

मधुर होते दुख के परिणाम---

मधुर होते दुःख के परिणाम
अंत होता उनका अभिराम
एक समय वह भी आता है
जब लेती है निशा विश्राम
        विकसता नवल रवि सुखधाम    
         मधुर होते दुःख के परिणाम !

अगर करें हम समुचित न्याय
तो रात नही दुःख का पर्याय
सुबह के स्वर्णिम पृष्ठों पर लिखती
झिलमिल सपनों का अध्याय
        हारती न कभी जीवन- संग्राम
        मधुर होते दुःख के परिणाम !

जब भी दुख जीवन में आए
सुख सारे लगने लगें पराए
धर धीरज कर्म निरत रहना
यही तो है जो भाग्य बनाए
        सुख-दुःख का चक्र चले अविराम
        मधुर होते दुःख के परिणाम !

जो पीड़ा से नजर ना चुराते
प्यार से उसको गले लगाते
सुख पाकर जो नहीं मदमाते
मिलते गम तो नही घबराते
        वे समदर्शी सुखी आठों याम
        मधुर होते दुःख के परिणाम !

- डॉ0 सीमा अग्रवाल

Monday 9 May 2016

जाऊंगी तुमसे पहले ----

हर काम तुम ही क्यों करोगे मुझसे पहले
आई हूँ तुम्हारे बाद, जाऊंगी तुमसे पहले
- सीमा

कभी पास हों तो -----

सिर्फ कल्पना से मन कब तक बहले !
कभी पास हों तो, मन मन की कह ले !!

मिले रात को जो बाँहों का हार तुम्हारी !
दिन भर हर थकन मन हँसकर सह ले !!

तुम्हें सुला प्यार से खुद भी सो जाऊं !
जब जागूं तो देखूं तुम्हें मैं सबसे पहले !!

दिल की धड़कन, सांसों का स्पंदन तुम
तुम बिन जान कहो तन में कैसे रह ले !!

पाहुन आ पहुँचा है 'सीमा' दर पे तेरे !
अश्क पोंछ ले प्रेम- समन्दर में बह ले !!

- सीमा