कितना पुकारा
तुम नही आए !
ए चाँद रातभर
कहाँ विरमाए !
जीती हूँ मैं तो
देख तुम्हें ही
तुम बिन कैसे
नींद आ जाए !
नीरव रजनी
सोई है जगती
तनहाई मेरी
मुझे ही डराए !
इतनी दूर बस
रहो तुम प्यारे
धवल चाँदनी
मुझ तक आए !
निशाकंत तुम
कलावंत तुम
रूप तुम्हारा
मन को लुभाए !
मिट जाए अगन
थकन भी सारी
आगोश में अपने
जो मुझे सुलाए !
जितना जग से
मिलता हलाहल
उतना संजीवन
मन तुझसे पाए !
विचरो स्वच्छंद
नील निलय में
तुम पर ना कोई
बादल मंडराए !
छलकें जो बूँदें
सुधारस भीनी
पलकें झपें मेरी
नींद आ जाए !
- सीमा