Sunday 28 May 2023

किन्नर व्यथा....

किन्नर-व्यथा …

हमें भी तो जना तुमने, पिता का खून थे हम भी।
कलेजा क्यों किया पत्थर, सुनें तो माँ जरा हम भी।
दिखा दो एक भी ऐसा, कमी कोई नहीं जिसमें,
अधूरे हम चलो माना, कहाँ पूरे रहे तुम भी।

हमें किन्नर कहा जग ने, किया सबसे अलग हमको।
किया छलनी सवालों से, कहा बंजर नसल हमको।
हमें घर से निकाला क्यों, दिए आँसू खुशी लेकर,
हमारे वो खुशी के पल, करो वापस कभी हमको।

हमारे दर्द के किस्से , सुनेगा क्या जमाना ये।
हमें आँसू दिए भर-भर, हमें अपना न माना ये।
कहें भी क्या किसी से हम, यहाँ सब स्वार्थ में रत है,
खुशी में खूब गोते खा, भरें अपना खजाना ये।

खुशी जब-जब मिले तुमको, हमारा शुभ लगे आना।
खुशी में झूम कर सबकी, बजा ताली चले जाना।
हमारी एक ताली में, छिपे आँसू हजारों हैं,
तुम्हारी एक गलती का, उमर भर घूँट पिए जाना।

उड़ाकर नोट की गड्डी, भला कहते स्वयं को तुम।
गिनो आँसू हमारे भी, कभी फुरसत मिले तो तुम।
खुशियाँ छीन कर सारी, भिखारी ही बना डाला,
नपुंसक हैं अगर हम तो, कहो कैसे जनक हो तुम?

जने किसके कहाँ जनमे, नहीं कुछ ज्ञात है हमको।
यही दलदल हमारा घर, यही बस याद है हमको।
घुटी साँसें गले सूखे, नयन गीले भरे आँसू,
बजा ताली कमा खाना, यही सौगात है हमको।

कोख वही सेती है हमको,बीज वही पड़ता है हममें।
बिगड़ा मेल गुण-सूत्रों का, जो रह गयी कमी कुछ हममें।
लाडले हो तुम मात-पिता के, हम उनके ठुकराए हैं।
एक ही माँ के जाये हम-तुम, अंतर क्या तुममें हममें ?

जिस जननी ने जाया हमको, किया उसने ही हमें पराया।
जिस पिता का खून रगों में, उसे भी हम पर तरस न आया।
अन्याय समाज का अपनों का, जन्म लेते ही हमने झेला।
उलझे रहे नित प्राण हमारे, जीवन के सम-विषम में।

पूर्ण देह होकर भी रहते, कितने बंजर बीच तुम्हारे
हमें नजर भर देख सके न, दिए किसने दृग मीच तुम्हारे?
पहचान हमारी छीनने वालों, खुद को सर्वांग समझने वालों !
मन के चक्षु खोलो, दिखेंगे; श्वेत वसन पर कीच तुम्हारे!

माँ की ममता, मातृभूमि सुख, चख न पाए कभी हम।
दर्द को अपने दिल में समेटे, घुटते आए सदा हम।
फेर मुँह अनजान डगर पर, छोड़ा मात-पिता ने।
भार गमों का हँसते-रोते, ढोते आए सदा हम।

देवी-देव तुम मन-मंदिर के, तुम्हें जपेंगे तुम्हें भजेंगे।
जनें न चाहे अगली पीढ़ी, पर हम तुमको नहीं तजेंगे।
अपना कहकर हमें पुकारो, सीने से लगाकर देखो।
तज देंगे हर सुख हम अपना, सेवा तुम्हारी सदा करेंगे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Friday 26 May 2023

दोहा-गीत

हमने तुमको दिल दिया…

हमने तुमको दिल दिया, तुमने आँसू-भार।
प्रेम-समर में पाँव रख, पायी हमने हार।।बनते-बनते काम में, देती पलटी मार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।

शब्द रिदय पर यूँ लगे, जैसे असि की धार।
चटक गया दिल काँच सा, टुकड़े हुए हजार।
टूटे दिल का कर रहे, आँसू से उपचार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

ख्वाब अधूरे ही लिए, लिए बुझे अरमान।
गम को सीने से लगा, लौटे पी अपमान।।
ठोकर खायी बीच में, पड़ी वक्त की मार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

जीवन विपदा से भरा, तनिक नहीं आराम।
आन फँसे मझधार में, तड़पें आठों याम।।
कैसे नौका पार हो, रूठा खेवनहार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

हाय ! घड़ी मनहूस में, लगा प्रेम का रोग।
योग मिलन का था नहीं, होना लिखा वियोग।।
चारों खाने चित गिरे, मिला नहीं आधार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

बाजी निकली हाथ से, हर पल मन में सोच।
दे आया कब कौन हा, जा उसको उत्कोच।।
हालत दिल की देखकर, रोते नौ-नौ धार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

जिससे मन की बात की, लगी उसी की टोक।
उस गलती का आज भी, मना रहे हम शोक।
राह न कोई सूझती, बंद दिखें सब द्वार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

आँसू की सौगात दे, छोड़ चले मझधार ।
यादें-तड़पन-करवटें, करते मिल सब वार।।
मन पर भारी बोझ है, आता नहीं करार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

दो गोलक में नैन के, सपने तिरें हजार।
कुछ होते साकार तो, कुछ हो जाते खार।।
मन का नाजुक आइना, चटके बारंबार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

साँस चले ज्यों धौंकनी, नैन चुएँ पतनार।
प्रोषितपतिका नार नित, जीती मन को मार।।
कैसे हो ‘सीमा’ मिलन, खड़ी बीच दीवार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Thursday 25 May 2023

रोम-रोम में राम....


रोम-रोम में राम….

कण-कण में श्रीराम हैं, रोम-रोम में राम ।
मन-मंदिर मेरा बने, उनका पावन धाम ।।

तोड़ न कोई राम का, निर्विकल्प हैं राम।
राम सरिस बस राम हैं, और न कोई नाम।।

लोभ- मोह में घिर मनुज, हुआ बुद्धि से मंद।
आएँगे किस विध प्रभो, मन की साँकल बंद।।

रिदय कामनागार तो, कामधेनु हैं आप।
एक छुअन भर आपकी, मेटे हर संताप।।

तेरा-मेरा मेल क्या, तू दाता मैं दीन।
तू सबका सिरमौर है, मैं लुंठित मतिहीन।।

जप ले मनके नाम के, मेटें मन के ताप।
राम नाम के जाप से, धुल जाते सब पाप ।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ, जागें जग के भाग।।

राम-नाम सुमिरन करो, कट जाएँ भव-फंद।
कमल-कोष से मुक्त हो, उड़ते ज्यों अलिवृंद।।

राम हमारी आस्था, राम अमिट विश्वास।
राम सजीवन प्राण हित, राम हमारी श्वास।।

राम नाम सुमिरन हरे, त्रिविध जगत के ताप।
साँसें अनथक कर रहीं, राम नाम का जाप।।

राम-राम के जाप में, हुए सदा उत्तीर्ण।
रोम-रोम पर देख लो, राम-नाम उत्कीर्ण।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday 23 May 2023

आज इस सूने हृदय में....

आज इस सूने हृदय में….

आज इस सूने हृदय में,
याद बस तेरी मचलती।
सोच हावी हो रिदय पर,
भाव हर कोमल कुचलती।

तुम हमारे कुछ नहीं, पर
याद आते हो सतत क्यों ?
सुन तुम्हारी मुश्किलों को
रह न पाते हम विरत क्यों ?

वेदना में देख तुमको,
क्यों नयन से पीर झरती ?
कलप उठतीं भावनाएँ,
वासना के चीर हरती।

क्यों हमें ये लग रहा है,
न अब कभी मिल पाएँगे।
नेह के वो पुष्प मन में,
न अब कभी खिल पाएँगे।

तुम हमें चाहो न चाहो,
दिल तुम्हें हम दे चुके हैं।
चाहना में घुल तुम्हारी,
हम तुम्हारे हो चुके है।

दुआ नित दिल से निकलती,
रहो सुखी संपन्न सदा।
कौन जाने भाग्य में पर,
क्या लिखा है, क्या बदा।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

कुछ मुक्तक....


कुछ मुक्तक…

(1)
भरे जो नेह की हाला, न प्याला वो कभी फूटे।
सिखाए जो सबक सच के, न शाला वो कभी छूटे।
खुशी जिनसे छलकती हो, जुड़ें वे तार सब मन के,
गुँथे मन-भाव हों जिसमें, न माला वो कभी टूटे।
(2)
डगर मुश्किल लगे कितनी, नहीं हटना पलट पीछे।
नजर में रख सदा मंजिल, बढ़े चलना नयन मींचे।
बहे विपरीत धारा के, वही पाता किनारा है,
न देना ध्यान दुनिया पर, भले अपनी तरफ खींचे।
(3)
उड़ानों का नहीं मतलब, गगन का नूर हो जाना।
भुलाकर दर्द अपनों के, खुशी में चूर हो जाना।
बड़े संघर्ष झेले हैं, तुम्हें काबिल बनाने में,
जिन्होंने पर दिए तुमको, उन्हीं से दूर हो जाना।
(4)
नियति ने कुछ नियत लमहे, हमें सबको नवाजे हैं।
कहीं कलरव कहीं मौना, कहीं घुटती अवाजें हैं।
कहीं दुख के विकल पल तो,कहीं नगमे खुशी के हैं,
कहीं काँधे चढ़े बच्चे, कहीं उठते जनाजे हैं।
(5)
मिली जिस काल आजादी, हुआ दिल चाक भारत का।
खुशी का पल गया करके, नयन नमनाक भारत का।
किए टुकड़े वतन के दो, हजारों जन हुए बेघर,
खिंची दीवार नफरत की, हुआ सुख खाक भारत का।
(6)
कभी थे फूल से कोमल, मगर अब शूल से लगते।
हुए जो दिल कभी इक जां, नदी के कूल से लगते।
तराने प्रेम के मेरे, मुझे ही आज छलते हैं,
बसी थी हर खुशी जिनमें, वही अब भूल से लगते।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

Monday 22 May 2023

किए जा सितमगर सितम मगर...


किए जा सितमगर सितम मगर….

किए जा सितमगर सितम मगर।
सर मेरे ये इल्जाम न कर।

जो जी में आए कर जी भर,
पर व्यर्थ मुझे बदनाम न कर।

गलती मुझसे जो हुयी नहीं,
जबरन वो मेरे नाम न कर।

हँसे न जग करनी पर तेरी,
ऐसा कोई तू काम न कर।

आपस की सब बातें अपनी,
कह बीच सभी के आम न कर।

मुझे गिरा नज़रों में सबकी,
ऊँचा तू अपना दाम न कर।

किया भरोसा तुझ पर मैंने,
उसका यूँ कत्ले आम न कर।

देख रहा करनी वह सबकी,
विधि को अपने तू वाम न कर।

आजा अब तो घर तू वापस,
काली जीवन की शाम न कर।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

ऐलान....

ऐलान कर दिया….

‘आजाद हो तुम आज से’, ऐलान कर दिया।
क्या अब कहें कहकर हमें, बेजान कर दिया।

नादान थे समझे नहीं, बातें जहर बुझी,
तुमने कहा हमने सुना, उस कान कर दिया।।

नाराजगी भी थी अगर, कहते हमें कभी
ये क्या कि बिन कुछ भी कहे, चालान कर दिया।

हमसे जफा करके दया, आयी नहीं तुम्हें !
कुछ तो कहो क्यों प्यार का, अपमान कर दिया।

टूटा हुआ दिल क्या करे, अवसाद के सिवा !
सिक्के उछाले प्यार का, भुगतान कर दिया।

बढ़ते गये नित फासले, किसकी लगी नजर !
लाकर खड़ा गम के हमें, दरम्यान कर दिया।

कितने सनम कर लो सितम, होता न अब असर,
नाजुक नरम दिल को पका, चट्टान कर दिया।

लाँघीं नहीं हमने कभी, तकरार में हदें,
ऊँचाइयाँ दे प्यार को, भगवान कर दिया।

देखा किए अनथक तुम्हें, हटती न थी नजर,
दिलो-जिगर अपना सभी, कुर्बान कर दिया।

दिल को यही इक रंज है, कैसे करे सबर,
महका हुआ हँसता चमन, वीरान कर दिया।

है स्वार्थ ही परमोधरम, जग का यही मरम,
इंसान को किसने यहाँ, हैवान कर दिया।

आना नहीं ‘सीमा’ कभी, अब इस जहान में,
अच्छे-बुरे हर कर्म का, भुगतान कर दिया।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Sunday 21 May 2023

ऐलान कर दिया...

आजाद हो तुम आज से, ऐलान कर दिया।
क्या अब कहें कहकर हमें, बेजान कर दिया।

नादान थे समझे नहीं, बातें जहर बुझी,
तुमने कहा हमने सुना, उस कान कर दिया।।

नाराजगी भी थी अगर, कहते हमें कभी
ये क्या कि बिन कुछ भी कहे, चालान कर दिया।

हमसे जफा करके दया, आयी नहीं तुम्हें !
कुछ तो कहो क्यों प्यार का, अपमान कर दिया।

टूटा हुआ दिल क्या करे, अवसाद के सिवा !
सिक्के उछाले  प्यार का, भुगतान कर दिया।

बढ़ते गये नित फासले, किसकी लगी नजर !
लाकर खड़ा गम के हमें, दरम्यान कर दिया।

कितने सनम कर लो सितम, होता नहीं असर,
नाजुक नरम दिल को पका, चट्टान कर दिया।

तोड़ीं नहीं हमने कभी,  तकरार में हदें,
ऊँचाइयाँ दे प्यार को, भगवान कर दिया।

देखा किए अनथक तुम्हें, हटती न थी नजर,
दिलो-जिगर अपना सभी, कुर्बान कर दिया।

दिल को यही इक रंज है,  कैसे करे सबर,
महका हुआ हँसता चमन, वीरान कर दिया।

आँसू टपक झर-झर झरें, तुम पर नहीं असर,
हाजिर बला के स्वार्थ ने, फुरकान कर दिया।

है स्वार्थ ही परमोधरम, जग का यही मरम,
इंसान को किसने यहाँ,  हैवान कर दिया।

आना नहीं 'सीमा' कभी अब इस जहान में,
अच्छे बुरे हर कर्म का, भुगतान कर दिया।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Tuesday 2 May 2023

चुनावी बयार...

अरे ये कौन नेता हैं, न आना बात में इनकी।

अरे ये कौन नेता हैं, न आना बात में इनकी।
पलट जाना मुकर जाना, लिखा है जात में इनकी।
कटोरा भीख का ले जब, चुनावी दौर में आएँ,
चटाना धूल तुम इनको, यही औकात है इनकी ।

जरूरत वोट की हो जब, गले लगते गरीबों के।
दिखाते भाव कुछ ऐसे, मसीहा हों गरीबों के।
नजर हटते पलट जाते, जरा देखो हँसी उनकी,
भिखारी से चले आते, भले बनते गरीबों के।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Monday 1 May 2023

सूना आज चमन...

सूना आज चमन...

हौंस और उल्लास कहाँ अब,
बुझा-बुझा सा मन।
देख अभागी किस्मत अपनी,
रोता है  हर छन।

कितने अरमां कितने सपने,
नित अकुलाते थे।
पूरे होंगे सोच एक दिन,
हम इठलाते थे।
मधु-रसकण का वर्षण होगा,
था अनुमान सघन।

लदे सुखों से दिन थे जगमग,
हँसती थी राका।
अरमां भोले जब्त हुए सब,
पड़ा गजब डाका।
किर्च-किर्च सब ख्वाब हुए हैं,
चटक गया दरपन।

नहीं किसी से द्वेष हमें था,
सब तो थे अपने।
मिलजुलकर सब साथ रहेंगे,
देखे थे सपने।
रही मगर हर आस अधूरी,
सूना आज चमन।

दरकते आज रिश्ते-नाते,
कौन किसे जाने ?
रत हैं सभी स्वार्थ में अपने,
कौन किसे माने ?
रिसते छाले, बहते आँसू,
चुभते बिखरे कन।

चला कुचक्र नियति का ऐसा,
सूखा सुख-सागर।
रिस गया नेह-रस जीवन से,
रीती मन-गागर।
ताल मिला कर वक्त भाग्य से,
करे अजब नर्तन।

बँधी बहुत उम्मीद हमें थी,
सुख अब आएँगे।
दूर नहीं दिन जब खुशियों के,
बदरा छाएँगे।
ऐन वक्त पर सोयी किस्मत,
जाग उठी तड़पन।

खायी हमने मात सदा जो,
कमी हमारी थी।
सबको भला समझ लेने की,
हमें बिमारी थी।
दिल-दिमाग बिच इसी बात पर,
रहती नित अनबन।

सूना आज चमन....

© सीमा अग्रवाल, जिगर कॉलोनी, मुरादाबाद

"मनके मेरे मन के" से