Sunday 31 December 2023

आगाज नए साल का....

आने वाले साल से,  कहे पुराना साल।
रहे अधूरे काम जो, आकर उन्हें सँभाल।।

आने वाले साल से,    कहे पुराना साल।
तेरा भी इक साल में, होगा मुझसा हाल।।

तू उगता सूरज हुआ,  तुझको मिलें सलाम।
अस्तांचल की ओर मैं, मुझ पर लगा विराम।।

जश्न मने नववर्ष का, नये सजें सब साज।
नयी-नयी हों चाहतें,  नया-नया आगाज।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
सर्वाधिकार सुरक्षित

Wednesday 13 December 2023

अब न तुमसे बात होगी...

अब न तुमसे बात होगी...

अब न तुमसे बात होगी।
गुमशुदा  हर रात होगी।
अब न  होंगे  चाँद- तारे,
ना  रुपहली  रात होगी।

कुछ  पलों की  जिंदगानी,
कुछ  पलों   में  ढेर  होगी।
दो घड़ी  भी 'गर मिले तो,
दो घड़ी  क्या  बात  होगी ?

चाँद भी रूठा हुआ सा,
चाँदनी भी सुस्त सी है।
कुलबुलाते से सितारे,
क्या हसीं अब रात होगी ?

अब अकेले इन दिनों का,
गम सहारा है हमारा।
रात साए में अमा के,
बात किसको ज्ञात होगी ?

बुझ रही है दीप की लौ,
टूटती सी श्वास भी अब।
ख्वाब में ही आ मिलो तो,
साथ ये सौगात होगी।

कीं कभी जो बात तुमसे,
आ रहीं सब याद हमको।
आज  नयनों  से  हमारे,
आखिरी  बरसात  होगी।

अब न तुमसे बात होगी
अब न तुमसे बात होगी....

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

Tuesday 12 December 2023

रूपमाला / मदन छंद...

रूपमाला/मदन छंद...

विधान – (सम मात्रिक) 24 मात्रा, 14,10 पर यति, आदि और अंत में वाचिक भार 21 गाल l कुल चार चरण , क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत l

ढूँढते हैं प्राण पागल,   धूप में भी छाँव।
चाँदनी नीचे बिछी पर, जल रहे हैं पाँव।
शांत नीरव रात में भी, मचा मन में शोर।
चाँद गुपचुप नैन खोले, देखता इस ओर।

दे रहे जो दासता को,       बेबसी का नाम।
कर रहे वे साथ अपने, खुदकुशी का काम।
मन उड़े स्वच्छंद नभ में, ले हवा में साँस।
दो पलों की जिंदगानी, उस पर ये उसाँस।

फूस की है नींव जिस पर, मोम की दीवार।
आँसुओं के साथ अरमां, कर रहे चीत्कार।
और क्या-क्या देखना है, हे जगत-कर्तार ?
देख कितना दर्द मन को,   दे रहा संसार।

रूपमाला या मदन सा,  खुशनुमा आगाज।
चाँद सा मुखड़ा दमकता, चाँदनी का ताज।
शुभ सधे श्रंगार सोलह,   सोहते सुर साज।
हसरत भरा नभ भी जमीं, तक रहा है आज।

© सीमा अग्रवाल
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
सर्वाधिकार सुरक्षित

Sunday 10 December 2023

पद्मावती छंद- विधान एवं उदाहरण...

पद्मावती छंद...
विधान...
पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति  अनिवार्य है।
प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है। चार चरणों के इस छंद में दो-दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास अधोवत् है-
द्विकल + अठकल, अठकल, अठकल + चौकल + दीर्घ वर्ण (S)
2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।
उदाहरण...👇
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मन की सब बातें, रस-बरसातें, रात-दिवस हम करते थे।
सुख-दुख भी आकर, बनते चाकर, कंटक मग  के हरते थे।
तुमसे ये जीवन, जैसे उपवन, हरा-भरा नित रहता था।
पग-पग हरियाली, मने दिवाली, झरना सुख का बहता था।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
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मन सावन सा बन, जग का आँगन, सुखमय रसमय कर दे रे।
पथ बने सुकोमल, खिलें कमल-दल, बेजा तिनके हर ले रे।
बन सरल विमल मन, जैसे दरपन, जग तुझमें खुद को देखे।
आया दुख हरने, भव-सर तरने, रच सत्कर्मों के लेखे।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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जीवन है तीखा, मिर्च सरीखा, स्वाद निराला चख ले रे।
जिनसे मन मिलता, जीवन खिलता, साथ उन्हीं का रख ले रे।
तन-मन कर अर्पण, प्यार समर्पण, सुख मिलता है देने में।
साथी ये सच्चा, दे ना गच्चा, नौका जग की खेने में।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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समझो प्रिय जीवन, निर्मल दरपन, क्या शरमाना बोलो तो।
कहती क्या पायल, क्यों मन घायल, राज कभी कुछ खोलो तो।
पल-पल अति चंचल, भाव सुकोमल, आते-जाते रहते हैं।
यादों के साए, निसिदिन छाए, दिल तड़पाते रहते हैं।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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सावन मनभावन, जग का आँगन, तुम बिन कितना सूखा है।
नद-पोखर-उपवन, गाँव-खेत वन, कण-कण जैसे रूखा है।
घन नभ लहराओ, जल बरसाओ, जग झूमे-नाचे-गाए।
उपजें अन्न-फूल, मिटें मन-शूल, दामन सुख से भर जाए।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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Friday 8 December 2023

भर-भर रोए नैन...

हंसगति छंद...

भर-भर रोए नैन, चुए परनारे।
नींद बिना बेचैन,  हुए रतनारे।
खोजूँ कहाँ सुकून, कहूँ क्या किससे ?
अपने ही जब बात, करें ना मुझसे।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद