Sunday 10 December 2023

पद्मावती छंद- विधान एवं उदाहरण...

पद्मावती छंद...
विधान...
पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति  अनिवार्य है।
प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है। चार चरणों के इस छंद में दो-दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास अधोवत् है-
द्विकल + अठकल, अठकल, अठकल + चौकल + दीर्घ वर्ण (S)
2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।
उदाहरण...👇
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मन की सब बातें, रस-बरसातें, रात-दिवस हम करते थे।
सुख-दुख भी आकर, बनते चाकर, कंटक मग  के हरते थे।
तुमसे ये जीवन, जैसे उपवन, हरा-भरा नित रहता था।
पग-पग हरियाली, मने दिवाली, झरना सुख का बहता था।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
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मन सावन सा बन, जग का आँगन, सुखमय रसमय कर दे रे।
पथ बने सुकोमल, खिलें कमल-दल, बेजा तिनके हर ले रे।
बन सरल विमल मन, जैसे दरपन, जग तुझमें खुद को देखे।
आया दुख हरने, भव-सर तरने, रच सत्कर्मों के लेखे।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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जीवन है तीखा, मिर्च सरीखा, स्वाद निराला चख ले रे।
जिनसे मन मिलता, जीवन खिलता, साथ उन्हीं का रख ले रे।
तन-मन कर अर्पण, प्यार समर्पण, सुख मिलता है देने में।
साथी ये सच्चा, दे ना गच्चा, नौका जग की खेने में।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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समझो प्रिय जीवन, निर्मल दरपन, क्या शरमाना बोलो तो।
कहती क्या पायल, क्यों मन घायल, राज कभी कुछ खोलो तो।
पल-पल अति चंचल, भाव सुकोमल, आते-जाते रहते हैं।
यादों के साए, निसिदिन छाए, दिल तड़पाते रहते हैं।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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सावन मनभावन, जग का आँगन, तुम बिन कितना सूखा है।
नद-पोखर-उपवन, गाँव-खेत वन, कण-कण जैसे रूखा है।
घन नभ लहराओ, जल बरसाओ, जग झूमे-नाचे-गाए।
उपजें अन्न-फूल, मिटें मन-शूल, दामन सुख से भर जाए।
© सीमा अग्रवाल,
जिगर कॉलोनी,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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