Monday 29 December 2014

समय के स्वर्णिम पृष्ठों पर ----

समय के स्वर्णिम पृष्ठों पर
होगा मेरा भी नाम देखना !

पलकों पर मुझे बिठा लेगी
आएगी ऐसी शाम देखना !

रिहा होंगी सब कैद राहें
खुलेगा रस्ता आम देखना !

मूल्यहीन जो आँके जाते
बढ़ेगा उनका दाम देखना !

औरों पर दोष लगाने वाला
होगा खुद ही बदनाम देखना !

अब न हम भी चुप बैठेंगे
छिड़ेगा महासंग्राम देखना !

अन्याय का अनुयायी भी
जपेगा एक दिन राम देखना !

जनम जनम की प्यास बुझेगी
छलकेगा ऐसा जाम देखना !

तुम भी अपना काम अब देखो
मुझे भी अपना काम देखना !

-सीमा अग्रवाल
   मुरादाबाद

Tuesday 23 December 2014

अपना बचपन माँ का आँचल

जीवन की धुंधली छाया में,
छल-छद्म की बिखरी माया में,
गम के पसरते साए में और
सुख की सिमटी-सी काया में,
           मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

जग के निष्ठुर उपहासों में,
सुख की बंजर-सी आसों में,
जीवन-मरण का खेल खेलती
चलती थमती-सी साँसों में,
          मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

दिल के मरते जज्बातों में,
बिन मौसम की बरसातों में,
पग पग झोली में आ गिरती
गम की अनगिन सौगातों में,
          मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

अपने प्रिय उस शान्त गाँव में,
बूढ़े पीपल की शीत छाँव में,
आ लौट चलें अब ए दिल, वहीं
क्यूँ उलझें इन मुश्किल दाँव में,
          मिलेगा वहीं जाकर अब मुझको
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

-डाॅ0 सीमा अग्रवाल
  मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Thursday 11 December 2014

तुम हो जग में सुंदरतम ----

तुमसे ही ये जग सुंदर है
तुम हो जग में सुंदरतम !
मोहक छवि उतार दिल में ,
तुम्हें पूजे मेरा अंतरतम !

जुड़ा है तुमसे अद्भुत नाता
अब न कोई तुम बिन भाता !
तुम ही मेरे बन्धु , सखा हो
तुम ही हो मेरे प्रियतम !

-सीमा अग्रवाल

यूँ आशा हमें बहलाती है ---

जब दुख की अति हो जाती है
दिग्भ्रमित मति हो जाती है
एक किरण कौंध कहीं जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

जब रात अमा की आती है
राका भी नजर चुराती है
एक लौ कहीं जल जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

जब बदली गम की छाती है
घनघोर घटा घिर आती है
चल चपला चमक तब जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

अंत निकट जब दिखता है
तम-सा आँखों में घिरता है
अलख ज्योति राह सुझाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

-सीमा अग्रवाल

Monday 8 December 2014

मेरी गली वो आए ------

मेरी गली वो आए , इक
झलक दिखा कर चले गए
खुशी का एक झोंका मानो ,
मेरे गम ने देखा है !

प्यार की पेंग बढ़ा रहे थे,
छूने गगन को जा रहे थे
एक झटका लगा तो सच
धरती का सामने अपने देखा है !

ख्वाबों की दुनिया रास न आई
सच पर अपनी नजर टिकाई
पंख झुलसते अरमानों के,
सपनों को सिसकते देखा है !

मेरी चाहत की तुम हो सीमा
तुम्हारे सिवा कोई चाह नहीं
सुन ये मन ही मन इठलाते
खुद को भी हमने देखा है !

मुकर गये वो वादे से अपने
शायद मजबूरी थी उनकी
यूँ तो चुपके चुपके अश्क बहाते
उनको हमने देखा है !

बहुत पुकारा उस निर्दयी को
वहाँ से कोई सदा न आई
मोम इन आँखों से हमने
पत्थर होते देखा है !

अब भी वो आते जाते हैं
दिल की गली से होकर
पर राह गुजरते अजनबी सा
अब उनको हमने देखा है !

-सीमा अग्रवाल

Wednesday 3 December 2014

मन कर रहा आज ये मेरा------

मन कर रहा आज ये मेरा
मैं तुम पर कोई गीत लिखूँ
तुम ही बताओ नाम तुम्हारा
चितचोर लिखूँ मनमीत लिखूँ !

कैसा व्यापार लगाया मैंने
क्या खोया क्या पाया मैंने
जान सके न मन ये बाबरा
हार लिखूँ या जीत लिखूँ !

प्यार से अपने मुझे सँवारा
बदल दी मेरी जीवन धारा
है रोम-रोम स्पन्दित जिससे
वो जीवन का संगीत लिखूँ !

जब से तुम जीवन में आए
मन ने कितने ख्वाब सजाए
कितनी अनोखी कितनी प्यारी
तुम संग अपनी प्रीत लिखूँ !

मन कर रहा आज ये मेरा
मैं तुम पर कोई गीत लिखूँ !

-सीमा अग्रवाल

हाय रे वन्दे------

अपने मालिक को ही भूला
आकर इस संसार में !
माया के झूले में झूला
आकर इस संसार में !

लोभ, मोह और काम, क्रोध के
सिवा न कोई काम किया !
इतना उलझ गया दुनिया में
कभी न उसका नाम लिया !
        बस अपने ही सुख में फूला
        आकर इस संसार में !

लालच देकर माया ने
इतना तुझे लाचार किया !
भटक रहा तू अपने पथ से
यह भी न कभी विचार किया !
          मन-बुद्धि से हुआ तू लूला
          आकर इस संसार में !

उलझा रहा सदा मन तेरा
ऐन्द्रिक सुख के जाल में !
भूल गया जाना है तुझे भी
एक दिन काल के गाल में !
         गुनाह न अपना कभी कबूला
         आकर इस संसार में !

खूब लुभाया झूठ ने तुझको
सच की दुनिया रास न आई !
मालिक के दर तक जाने की
जिसने भी तुझको राह दिखाई !
         हुआ उसी पर आगबबूला
         आकर इस संसार में !

अपने मालिक को ही भूला
आकर इस संसार में !
माया के झूले में झूला
आकर इस संसार में !

-सीमा अग्रवाल

Monday 1 December 2014

तब दर्द तो दिल को होता है ----

झूठ के जब पाँव पसरते
सच एक कोने में रोता है ।
गम खाने वाला, रात को
आँसू पीकर जब सोता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

बेपरवाह दायित्व से कोई
नींद चैन की सोता है ।
अनगिन फर्जों को लादे कोई
बोझ से दोहरा होता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

जी हुजूरी करने वाला
सीढ़ी चढ़ता जाता है ।
आदर्शों पर चलने वाला
नीचे खड़ा रह जाता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

सुख - दुख का साथी जब
दुख में न साथ निभाता है ।
सुख सपना बनकर जब
खिसक हाथ से जाता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

- सीमा अग्रवाल