अपने मालिक को ही भूला
आकर इस संसार में !
माया के झूले में झूला
आकर इस संसार में !
लोभ, मोह और काम, क्रोध के
सिवा न कोई काम किया !
इतना उलझ गया दुनिया में
कभी न उसका नाम लिया !
बस अपने ही सुख में फूला
आकर इस संसार में !
लालच देकर माया ने
इतना तुझे लाचार किया !
भटक रहा तू अपने पथ से
यह भी न कभी विचार किया !
मन-बुद्धि से हुआ तू लूला
आकर इस संसार में !
उलझा रहा सदा मन तेरा
ऐन्द्रिक सुख के जाल में !
भूल गया जाना है तुझे भी
एक दिन काल के गाल में !
गुनाह न अपना कभी कबूला
आकर इस संसार में !
खूब लुभाया झूठ ने तुझको
सच की दुनिया रास न आई !
मालिक के दर तक जाने की
जिसने भी तुझको राह दिखाई !
हुआ उसी पर आगबबूला
आकर इस संसार में !
अपने मालिक को ही भूला
आकर इस संसार में !
माया के झूले में झूला
आकर इस संसार में !
-सीमा अग्रवाल
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