Monday 28 September 2015

अब तक यूं ही गँवाया जीवन

तुलसीदास जी द्वारा रचित पद "अब लौं नसानी अब ना नसैहौं" का भावानुवाद---

अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा !
जाग गया हूँ राम-कृपा से, फिर बिस्तर नहीं लगाऊंगा !

हर चिंता को हरने वाली, राम- नाम की मणि मनोहर
सदा ह्रदय में बास करेगी, बनकर उनकी अचल धरोहर
राम-नाम-सेतु पर चढ़कर, भव- सागर तर जाऊंगा ।
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।

अपने वश में जान ये इन्द्रियाँ,खूब हँसी हैं मुझ पर
आज इन्हें काबू में करके, लगाम कसूंगा मैं इन पर
राम-नाम से चलेगा शासन, ऐन्द्रिक- राज हटाऊंगा ।
अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।

झूठे रस के लोभ में कितना, मन का भौंरा भटका है
जब-जब इसने चोंच बढ़ाई, तब-तब काँटों में अटका है
राम-रसायन पीने अब, चरणकमलों में इसे बसाऊंगा ।

अब तक यूं ही गँवाया जीवन, अब ना व्यर्थ गँवाऊंगा ।
जाग गया हूँ राम-कृपा से, फिर बिस्तर नहीं लगाऊंगा ।

                      --- डॉ0 सीमा अग्रवाल ---

Sunday 27 September 2015

सावन-भादो चले गए----

सावन- भादो चले गए, गए गगन से बादल !
पर दो पलकों पर अब भी छाए गहन हैं बादल !
बरसती आँखें अहर्निश, छाया रहतासघनअंधेरा
क्या जानूँ कब जायेंगे इन अँखियन से बादल ! - सीमा

Saturday 19 September 2015

मेरी प्यासी, सूनी अंखियों में

मेरी प्यासी सूनी अंखियों में
तुम बनके सपना छा जाना !
अलसाई सी मुंदती पलकों में
तुम बनके प्राण समा जाना !

कितना तरसते कान ये मेरे
मीठे बोल तुम्हारे सुनने को !
अधरों को कानों तक लाकर
कोई गीत मधुर सा गा जाना !

लगता नहीं मन बिना तुम्हारे
बेचैन- सा हर पल रहता है !
तनहा सुबकते अरमानों को
तुम देके थपकी सुला जाना !

मैं निहारूंगी राह तुम्हारी
तुम चुपके- चुपके आ जाना !
पंथ बुहारती अंखियों को
मनमोहक छवि दिखा जाना !

काँधे पे तुम्हारे चिबुक टिका
जब मैं तुम में खो जाऊंगी !
प्यार से लगा सीने से अपने
तनमन की थकन मिटा जाना !

बाँह थाम मेरी, ले साथ अपने
सतरंगी जहां दिखा लाना !
यूँ मेरे नीरस जीवन में तुम
प्रेम की नदिया बहा जाना !
         

                       --- सीमा---