Wednesday 26 July 2017

आओ प्रिय बैठो पास ---

आओ प्रिय बैठो पास, कुछ ख्वाब मधुर से बुन लें
कुछ कहो जो तुम आँखों से, हम आँखों से सुन लें

भावों की इस नगरी में, लफ़्जों का कोई काम नहीं
दिल लगाकर दिल से, हर धड़कन दिल की सुन लें

कितनी मादक प्रिय रात चाँदनी, चाँद सुधा बरसाता
प्रणय निवेदन करे रजनी से, गुपचुप हम भी सुन लें

आबद्ध आलिंगन में दो प्रेमी, बिछी है सेज फूलों की
प्रेयसी के कंपित अधरों की, थिरकन हम भी सुन लें

मैं बन जाऊँ रात रूपहली प्रिय तुम चंदा बन जाओ
प्रणय केलि से चंद्र-निशा की कुछ गुर हम भी गुन लें

लबों ने चुप्पी साधी अगर है, आँखों से ही कुछ बोलो
प्यार का इजहार हो सुख की कलियाँ हम भी चुन लें

- सीमा

Sunday 16 July 2017

सबकी 'सीमा' खैर मना...

इधर-उधर मत ताका कर
मन के भीतर झाँका कर

काँटों भरी राह पर भी तू
फूल खुशी के टाँका कर

मोती भी चुग लाया कर
यूँ ही धूल न फाँका कर

किया कर कुछ काम की बातें
खाली गप्प ना हाँका कर

सबकी अपनी कीमत है
कम न किसी को आँका कर

हुनर उजागर कर सबके, पर
दोष न अपने ढाँका कर

सबकी 'सीमा' खैर मना
बाल न किसी का बाँका कर

- सीमा
26-04-2013

Tuesday 11 July 2017

आई पावस ऋतु मनभावन ------

आई पावस ऋतु मनभावन
घनन-घनन-घन बरसे सावन

हुलस रहा सृष्टि का कन-कन
अद्भुत ये कुदरत का प्रांगण

सूखतीं नदियाँ, ताल, सरोवर
सूखी हरियाली, सूखे उपवन

इतना बरसो आज तुम बदरा
भर जाए रिक्त धरा का दामन

उमस, तपन, नीरसता बीते
भर किलकारी चहकें आँगन

जलधार मधुमय संगीत रचे
सुर बने श्रुति- मधुर लुभावन

सबको अपना मनमीत मिले
आन मिले सजनी से साजन

सखियाँ सोलह श्रंगार करें
गाएँ पेंग ले कजरी सुहावन

सुखों की हो न कोई 'सीमा'
बने ऋतु हर ताप नसावन

सुखद संदेशे घर-घर आएँ
हों शगुन शुभ मंगल पावन

- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ. प्र. )