Friday 23 October 2015

हमने तुमको देखा है

राम नहीं, रावन भी नहीं
बस तुममें तुमको देखा है !
सबसे अलग सबसे जुदा
बस हमने तुमको देखा है !

छल नहीं, कोई छद्म नहीं
अहं नहीं, कोई दंभ नहीं
स्नेहिल नजरों से मंद-मंद
मुस्कुराते तुमको देखा है !

धवल चंद्र सम रूप तुम्हारा
वृत्त ज्यों निर्मल जल की धारा
स्त्रवनों में मधुरिम बतियों का
रस ढुलकाते तुमको देखा है !

यूँ तो दूर बहुत तुम पास नही
मिलने की भी कोई आस नहीं
आँखें मूंद पर जब भी देखा
अपने दिल में तुमको देखा है !

लुकते, छिपते, ओझल होते
कभी शांत कभी चंचल होते
इंदु सम अपने मन-मानस में
नित अठखेली करते देखा है !

तुम छाए हो जग में चाँद बन कर
आ रही चाँदनी मुझ तक छन कर
ऐसा प्यारा  एक  सपन सलोना
तड़के ही आँखों ने मेरी देखा है !

दुहाई यहाँ आने की तुम्हारे
दे रहे हैं ये पदचिन्ह तुम्हारे
अभी अभी हाँ अभी तो यहीं
मुक्त विचरते तुमको देखा है !

         ---- सीमा ----

Thursday 22 October 2015

राम नहीं, रावन भी नहीं ---

राम नहीं, रावन भी नहीं
बस तुममें तुमको देखा है !
सबसे अलग सबसे जुदा
बस हमने तुमको देखा है !

छल नहीं, कोई छद्म नहीं
अहं नहीं, कोई दंभ नहीं
स्नेहिल नजरों से मंद मंद
मुस्कुराते तुमको देखा है !

धवल चंद्र सम रूप तुम्हारा
वृत्त ज्यों निर्मल जल की धारा
श्रवनों में मधुरिम बतियों का
रस ढुलकाते तुमको देखा है !

यूँ तो दूर हो तुम पास नही
मिलने की कोई आस नहीं
आँख मूंदकर पर जब देखा
इस दिल में तुमको देखा है !

                     --- सीमा ---

Wednesday 21 October 2015

क्यूँ यूँ---

क्यूँ यूँ अजनबी तुम हो गए ! क्यूँ यूँ भाग्य हमारे सो गए ! खुशी से लहलहाती जमीं पर क्यूँ यूँ बीज गम के बो गए ! - सीमा

हँसी ना आने दी अधरों पर

हँसी न आने दी अधरों पर,
अश्कों पर भी रोक लगा दी !
ए मेरे निष्ठुर भाग्य-विधाता,
मुझे तुमने ये कैसी सज़ा दी !

कैसे इठलाते फिरते थे
रोके न किसी के रुकते थे
दिल में मचलते अरमानों की
अर्थी ही हाय ! उठा दी !

अंधड़ आया, बादल गरजे,
और टूटकर बरसा पानी !
नन्हें, नाजुक सपनों की,
सबने मिल हस्ती मिटा दी !

कितने प्यारे दिन थे आए
मन ने अनगिन ख्वाब सजाए
कान भरे किस्मत के किस ने
उसने लिखी हर खुशी मिटा दी !

प्यार ही तो माँगा था अपना
दौलत तो कभी ना माँगी थी
क्यूँ अनचाहा देकर मुझको
अनजानी सी राह दिखा दी !

चैन आए अब कैसे दिल को
कैसे आँखों में निंदिया आए
मसलकर मेरे सुख की कलियाँ
क्यों काँटों की सेज बिछा दी !

क्यूँ आए अब हँसी लबों पर
क्यूँ मन ये झूमे, नाचे, गाऐ
सुला कर मेरी जागी किस्मत
सोई हुई हर पीर जगा दी !

                -----सीमा अग्रवाल-----