Tuesday 28 November 2017

चाँद दूज का ....

कित्ता प्यारा चाँद दूज का
देखो न यारा चाँद दूज का

अपनी लघुता पर इठलाए
क्यों सकुचाए चाँद दूज का

नयन कोर से इंगित करता
मन को भाए चाँद दूज का

खींच रहा मन अपनी ओर
मस्त अदा से चाँद दूज का

बेध रहा तम दम पर अपने
क्षीण बदन ये चाँद दूज का

अपनी इयत्ता में खुश रहना
समझाए हमें ये चाँद दूज का

देख लो जी भर आज इसे
फिर कब आए चाँद दूज का

तुम असीम, मेरी लघु 'सीमा'
तुम हो गगन मैं चाँद दूज का

- सीमा

Monday 20 November 2017

कल जब न रहूँगी मैं...

कल जब न रहूँगी मैं
मुझे याद करोगे तुम
एक झलक पाने की
फरियाद करोगे तुम ?

उन्मन कभी जो होगे
मैं याद तुम्हें आऊंगी
मेरे प्यार से दिल को
आबाद करोगे तुम ?

आऊंगी याद कभी
या भुला दोगे यूँ ही
क्या गुनगुनाके मुझे
दिलशाद करोगे तुम ?

सामने रख तस्वीर
महसूसके मेरी पीर
नयनों से बैनों का
संवाद करोगे तुम ?

बतलाओ सच-सच
दिल से क्या अपने
मेरी चाहत का पंछी
आजाद करोगे तुम ?

क्या तोड़ के ये बंधन
और आगे बढ़ोगे तुम
नई और एक 'सीमा'
क्या ईजाद करोगे तुम ?

- डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

कल जब न रहूँगी मैं...