कित्ता प्यारा चाँद दूज का
देखो न यारा चाँद दूज का
अपनी लघुता पर इठलाए
क्यों सकुचाए चाँद दूज का
नयन कोर से इंगित करता
मन को भाए चाँद दूज का
खींच रहा मन अपनी ओर
मस्त अदा से चाँद दूज का
बेध रहा तम दम पर अपने
क्षीण बदन ये चाँद दूज का
अपनी इयत्ता में खुश रहना
समझाए हमें ये चाँद दूज का
देख लो जी भर आज इसे
फिर कब आए चाँद दूज का
तुम असीम, मेरी लघु 'सीमा'
तुम हो गगन मैं चाँद दूज का
- सीमा
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