Monday 29 December 2014

समय के स्वर्णिम पृष्ठों पर ----

समय के स्वर्णिम पृष्ठों पर
होगा मेरा भी नाम देखना !

पलकों पर मुझे बिठा लेगी
आएगी ऐसी शाम देखना !

रिहा होंगी सब कैद राहें
खुलेगा रस्ता आम देखना !

मूल्यहीन जो आँके जाते
बढ़ेगा उनका दाम देखना !

औरों पर दोष लगाने वाला
होगा खुद ही बदनाम देखना !

अब न हम भी चुप बैठेंगे
छिड़ेगा महासंग्राम देखना !

अन्याय का अनुयायी भी
जपेगा एक दिन राम देखना !

जनम जनम की प्यास बुझेगी
छलकेगा ऐसा जाम देखना !

तुम भी अपना काम अब देखो
मुझे भी अपना काम देखना !

-सीमा अग्रवाल
   मुरादाबाद

Tuesday 23 December 2014

अपना बचपन माँ का आँचल

जीवन की धुंधली छाया में,
छल-छद्म की बिखरी माया में,
गम के पसरते साए में और
सुख की सिमटी-सी काया में,
           मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

जग के निष्ठुर उपहासों में,
सुख की बंजर-सी आसों में,
जीवन-मरण का खेल खेलती
चलती थमती-सी साँसों में,
          मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

दिल के मरते जज्बातों में,
बिन मौसम की बरसातों में,
पग पग झोली में आ गिरती
गम की अनगिन सौगातों में,
          मैं ढूँढ रही, हो पगली दीवानी
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

अपने प्रिय उस शान्त गाँव में,
बूढ़े पीपल की शीत छाँव में,
आ लौट चलें अब ए दिल, वहीं
क्यूँ उलझें इन मुश्किल दाँव में,
          मिलेगा वहीं जाकर अब मुझको
          अपना बचपन, माँ का आँचल !

-डाॅ0 सीमा अग्रवाल
  मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Thursday 11 December 2014

तुम हो जग में सुंदरतम ----

तुमसे ही ये जग सुंदर है
तुम हो जग में सुंदरतम !
मोहक छवि उतार दिल में ,
तुम्हें पूजे मेरा अंतरतम !

जुड़ा है तुमसे अद्भुत नाता
अब न कोई तुम बिन भाता !
तुम ही मेरे बन्धु , सखा हो
तुम ही हो मेरे प्रियतम !

-सीमा अग्रवाल

यूँ आशा हमें बहलाती है ---

जब दुख की अति हो जाती है
दिग्भ्रमित मति हो जाती है
एक किरण कौंध कहीं जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

जब रात अमा की आती है
राका भी नजर चुराती है
एक लौ कहीं जल जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

जब बदली गम की छाती है
घनघोर घटा घिर आती है
चल चपला चमक तब जाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

अंत निकट जब दिखता है
तम-सा आँखों में घिरता है
अलख ज्योति राह सुझाती है
यूँ आशा हमें बहलाती है !

-सीमा अग्रवाल

Monday 8 December 2014

मेरी गली वो आए ------

मेरी गली वो आए , इक
झलक दिखा कर चले गए
खुशी का एक झोंका मानो ,
मेरे गम ने देखा है !

प्यार की पेंग बढ़ा रहे थे,
छूने गगन को जा रहे थे
एक झटका लगा तो सच
धरती का सामने अपने देखा है !

ख्वाबों की दुनिया रास न आई
सच पर अपनी नजर टिकाई
पंख झुलसते अरमानों के,
सपनों को सिसकते देखा है !

मेरी चाहत की तुम हो सीमा
तुम्हारे सिवा कोई चाह नहीं
सुन ये मन ही मन इठलाते
खुद को भी हमने देखा है !

मुकर गये वो वादे से अपने
शायद मजबूरी थी उनकी
यूँ तो चुपके चुपके अश्क बहाते
उनको हमने देखा है !

बहुत पुकारा उस निर्दयी को
वहाँ से कोई सदा न आई
मोम इन आँखों से हमने
पत्थर होते देखा है !

अब भी वो आते जाते हैं
दिल की गली से होकर
पर राह गुजरते अजनबी सा
अब उनको हमने देखा है !

-सीमा अग्रवाल

Wednesday 3 December 2014

मन कर रहा आज ये मेरा------

मन कर रहा आज ये मेरा
मैं तुम पर कोई गीत लिखूँ
तुम ही बताओ नाम तुम्हारा
चितचोर लिखूँ मनमीत लिखूँ !

कैसा व्यापार लगाया मैंने
क्या खोया क्या पाया मैंने
जान सके न मन ये बाबरा
हार लिखूँ या जीत लिखूँ !

प्यार से अपने मुझे सँवारा
बदल दी मेरी जीवन धारा
है रोम-रोम स्पन्दित जिससे
वो जीवन का संगीत लिखूँ !

जब से तुम जीवन में आए
मन ने कितने ख्वाब सजाए
कितनी अनोखी कितनी प्यारी
तुम संग अपनी प्रीत लिखूँ !

मन कर रहा आज ये मेरा
मैं तुम पर कोई गीत लिखूँ !

-सीमा अग्रवाल

हाय रे वन्दे------

अपने मालिक को ही भूला
आकर इस संसार में !
माया के झूले में झूला
आकर इस संसार में !

लोभ, मोह और काम, क्रोध के
सिवा न कोई काम किया !
इतना उलझ गया दुनिया में
कभी न उसका नाम लिया !
        बस अपने ही सुख में फूला
        आकर इस संसार में !

लालच देकर माया ने
इतना तुझे लाचार किया !
भटक रहा तू अपने पथ से
यह भी न कभी विचार किया !
          मन-बुद्धि से हुआ तू लूला
          आकर इस संसार में !

उलझा रहा सदा मन तेरा
ऐन्द्रिक सुख के जाल में !
भूल गया जाना है तुझे भी
एक दिन काल के गाल में !
         गुनाह न अपना कभी कबूला
         आकर इस संसार में !

खूब लुभाया झूठ ने तुझको
सच की दुनिया रास न आई !
मालिक के दर तक जाने की
जिसने भी तुझको राह दिखाई !
         हुआ उसी पर आगबबूला
         आकर इस संसार में !

अपने मालिक को ही भूला
आकर इस संसार में !
माया के झूले में झूला
आकर इस संसार में !

-सीमा अग्रवाल

Monday 1 December 2014

तब दर्द तो दिल को होता है ----

झूठ के जब पाँव पसरते
सच एक कोने में रोता है ।
गम खाने वाला, रात को
आँसू पीकर जब सोता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

बेपरवाह दायित्व से कोई
नींद चैन की सोता है ।
अनगिन फर्जों को लादे कोई
बोझ से दोहरा होता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

जी हुजूरी करने वाला
सीढ़ी चढ़ता जाता है ।
आदर्शों पर चलने वाला
नीचे खड़ा रह जाता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

सुख - दुख का साथी जब
दुख में न साथ निभाता है ।
सुख सपना बनकर जब
खिसक हाथ से जाता है ।
         तब दर्द तो दिल को होता है !

- सीमा अग्रवाल

Sunday 23 November 2014

तुम हो चाँद गगन के ---

मनमोहक ये छवि तुम्हारी
हमने दिल में उतारी है !
पल पल जपता नाम तुम्हारा
दिल ये बना पुजारी है !

बेवफा ना हमें तुम मानो
हमें बस लगन तुम्हारी है !
अपना तुम्हें हम कह सकें
कहाँ ये किस्मत हमारी है !

तुम बिन दिल को चैन नहीं
पल भर लगती पलक नहीं !
पाने को एक झलक तुम्हारी
नजर बन चली भिखारी है !

मुझ चकोर की लघु है सीमा
देखूँ बस दूर से रूप तुम्हारा !
विस्तृत नभ की तुम हो शोभा
पाऊँ कैसे तुम्हें , लाचारी है !

मन है ये मेरा मानसरोवर
और तुम हो चाँद गगन के !
अहा ! रात के साए में चमकी
उजली तस्वीर तुम्हारी है !

जितना तुम्हें चाहा है मैंने
मुझे भी तुम चाहोगे उतना !
चुकाना ही होगा कर्ज तुम्हें ये
मेरी तुम पे रही उधारी है !

-डॉ0 सीमा अग्रवाल

Wednesday 19 November 2014

अभी तो कितना गम खाया है ---

अभी तो कितना गम खाया है !
फिर भी तुम कहते कम खाया है !

चाहा था जिसे रब से भी ज्यादा
दिल पे उसी ने कहर ढाया है !

जिसके लिए भुला बैठे खुद को
पल- पल उसने हमें ताया है ।

टूट गया अब बाँध सब्र का
आँख से आँसू ढुलक आया है !

पर मुमकिन नहीं है उसे भुलाना
इतना इस दिल को वो भाया है !

जी उठेंगी देख उसे ये अँखियाँ
कोई कह दे लौट वो फिर आया है !

कोई पूछे उससे क्यों रूठ गया वो
जो खुद ही चलके इधर आया है ।

ओ,नफरत करने वाले ! सुन ले
हमें तुझपे बला का प्यार आया है !

अब उजाला ज्यादा दूर नहीं,
अँधियारा इतना घिर आया है !

छंटने लगे अब गम के बादल,
लौट के घर हमदम आया है !

  अब रहे न कोई हसरत बाकी,
  प्यार भरा मौसम आया है !

  देख लिया जब जी भर उनको,
  आँखों में मेरी दम आया है !

  उस बिन तेरा वजूद न'सीमा,'
  कोई गैर नहीं वो हमसाया है !

-सीमा अग्रवाल

Thursday 13 November 2014

वक्त ले आया----

वक्त ले आया काँ से काँ तक
डराती है अब अपनी छाँ तक
कैसे यकीं आए नातों पर,
बदल गए सब सर से पाँ तक ।

नजर घुमाऊँ जब याँ से वाँ तक
देख नजारा डर जाती जाँ तक
किसी और पे क्या यकीं करें अब,
बदल गयी जब अपनी माँ तक ।

-सीमा अग्रवाल

बाल-गीत

बाल दिवस पर---
                    एक बाल-गीत
 
मशाल ज्ञान की लिए हाथ में
हम चलें प्रगति की ओर !
अथक गति भर चरणों में,
हम बढ़ें शिखर की ओर !

दें कुरूप को रूप सलोना
उजला हो घर का हर कोना
दारिद्रय मिटे,समृद्ध बनें सब
बिखरा हो कण-कण में सोना !

छोटे पर कर्मठ हाथों से
हम छू लें नभ के छोर !
सुंदर मन,सत्य समन्वित ले
हम बढ़ें शिवम् की ओर !

अग्यान तिमिर हर लें जग से
हम नन्हे नन्हे दीप !
मोती सी तरलता लिए ह्दय में
हम दमकें जैसे सीप !

जीत हार में साथ रहें हम
थामे प्रीत की डोर !
मिट जाए तम जीवन से
ले आएं ऐसी भोर !

-सीमा अग्रवाल

Friday 31 October 2014

मेरे गम के तम पर-----

मेरे गम के तम पर तेरी,
शुभ्र धवल मुस्कान !
चाँदनी बिखर जाती है,
ज्यों अँधेरी रात में !

स्वप्न सुनहरे आ ह्रदय में,
गम के बादल देते चीर !
कौंधती है बिजली रह रह,
ज्यों मौसम बरसात में ।

अरमाँ चाहत ख्वाब सभी,
ढक लेती गम की चादर !
छिप जाता माया का वैभव,
ज्यों निशा के गात में !

कह देता हर राज दिल का,
आँखों से बरसता पानी !
मिल जाता मर्म जीवन का,
ज्यों मुरझाए पात में !

सुधबुध बिसरा निज तन की,
बँध गया मन प्यार में उसके !
खुद बन्दी हो जाता भँवरा,
ज्यों आकर जलजात में !

-सीमा अग्रवाल

Monday 27 October 2014

मेरी वफाओं का-----

मेरी वफाओं का उसने,
क्या खूब मुझे ईनाम दिया !
पढ़े बिना ही दिल मेरा,
'बेवफा' मुझे ये नाम दिया !

खुदा मानकर जिसको मैंने,
खुद को ही था भुला दिया !
खुदगर्जी का आज उसी ने,
मुझको बड़ा इल्जाम दिया !

प्यार न देना था न देता,
पर कुछ तो रहम करता !
क्यों रुसवाई का मेरे हवाले,
उसने कड़वा जाम किया !

माना, मैं वो समझ न पाई,
जो समझाना चाहा उसने !
पर उसने भी न समझ मुझे,
कौन बड़ा कोई काम किया !

कह लेता मुझे वो कुछ भी,
सब सह लेती मैं हँस कर !
पर उसने तो सरे बाजार,
बैठ मुझे बदनाम किया !

मेरी वफाओं का उसने,
क्या खूब मुझे ईनाम दिया !

-सीमा अग्रवाल

Friday 10 October 2014

करना मेहर ओ ! शेरा वाली

मेरे बिछुओं की लम्बी उमर हो !
मेरी बिंदिया चंदा-सी अमर हो !
मुरझाए कभी न माँग की लाली
करना मेहर ओ ! शेरा वाली !!

दिल में उनके मेरी कदर हो !
प्यार भरा जीवन का सफर हो !
उल्फत का रुपया हो न जाली
करना मेहर ओ----------

तेरी कृपामयी नजर जिधर हो !
रुख हर सुख का सदा उधर हो !
पूरी हो मन्नत जो मन में पाली
करना मेहर ओ----------

चरणों में तेरे अनुराग अटल हो
निर्मल मुकुर-सा मन का पटल हो
तेरे दर से झोली जाए न खाली
करना मेहर ओ -----------

तेरी जगती में सबको सुख हो !
अश्कों से भीगा एक न मुख हो !
फूले-फले हर घर की डाली
करना मेहर ओ ! शेरा वाली !!

-सीमा अग्रवाल

Wednesday 8 October 2014

कुछ दोहे----

सोनचिरैया देश यह, था जग का सिरमौर।
महकाती सारा जहां, कहाँ गई वह बौर ।।

रक्षक ही भक्षक बने, खींच रहे हैं खाल ।
हे प्रभु ! मेरे देश का, बाँका हो न बाल ।।

आरक्षण के दैत्य ने, प्रतिभा निकली हाय !
देश रसातल जा रहा, अब तो दैव बचाय ।।

झांसे में न आ जाना, सुन कर मीठे बोल ।
दिल की सुनना बाद में, लेना बुद्धि से तोल ।।

बेरोजगारी बढ रही, जनसंख्या के साथ । 
  बीसियों पेट भर रहे, केवल दो ही हाथ ।।

मुंह से निकली बात के, लग जाते हैं पैर ।
बात बतंगड गर बने, बढ जाते हैं बैर ।।

फल तो उसके हाथ है, करना तेरे हाथ ।
निरासक्त हो कर्म कर, देगा वो भी साथ ।।

लोभ मोह सब छोड़ कर, कर ले प्रभु का जाप ।
अब तक जितने भी किए, धुल  जाऐंगे  पाप ।।

यह सभ्यता यह संस्कृति, यह वाणी यह वेष । कुछ भी तो अपना नहीं, बचा नाम बस शेष ।।

-सीमा अग्रवाल
   मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

की जब मैंने दुख से प्रीत-----

कल क्या होगा
इस चिंता में,
रात गई
आंखों में बीत ।

ओठों पर
आने से पहले
सुख का प्याला
गया रीत ।

आशाओं का
दीप जला, ढूँढा,
न मिला
जीवन-संगीत ।

किस्मत भी जब
हुई पराई ,
फूट पड़ा
अधरों से गीत ।

साथी सुख, तनहा
छोड गया जब,
दर्द मिला बन,
मन का मीत ।

हर सुख से,
खुद को ऊपर पाया,
की जब मैंने,
दुख से प्रीत ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

क्यूँ न खिलखिलाएँ आप -----

क्यूँ न खिलखिलाएँ आप,
आपकी किस्मत बुलंद है ।
अपने यहाँ तो आजकल,
खुशियों का आना बंद है ।

आपके हर भाव से,
टपकता है रस श्रंगार का ।
अपने तो दिल से निकलता,
गम में डूबा छंद है ।

आपकी दुनिया को रोशन,
करते सूरज चाँद सितारे ।
यहाँ टिमटिमाता एक दीया है,
जिसकी रोशनी भी मंद है ।

आप जमीं पर क्यों रुकें,
जब पंख मिले हैं चाहतों को ।
अपनी तो हर एक तमन्ना,
दिल में नजरबंद है ।

बेखबर हर गम से उनकी,
बेफिक्र चलती जिंदगानी ।
अपने तो दिल में पनपता,
हर पल नया एक द्वन्द्व है ।

अनंत है सीमा दुखों की,
गम का कोई अंत नहीं ।
छिनता रहा हमसे वही,
जिसे दिल ने कहा-पसंद है ।

सुमन जो खिलता डाल पर,
झर जाता एक दिन वही ।
जान लो के हर शै यहाँ,
वक्त की पाबंद है ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

किस्मत इतनी खोटी क्यों है !

किस्मत इतनी खोटी क्यों है !
हर खुशी इतनी छोटी क्यों है !
काँधे पर इस नाजुक दिल के,
गठरी गम की मोटी क्यों है !!

की ही नहीं जो मैंने गलती ,
उसकी सजा जब मुझको मिलती ।
करुण व्यथा मेरे अंतर की ,
आँसू बन आँखों से ढलती !!

मेरी हर मुस्कान रव ने,
पलक-पानी संग घोटी क्यों है !!
किस्मत इतनी खोटी क्यों है !
हर खुशी इतनी छोटी क्यों है !!

इस हँसते चेहरे के पीछे,
दर्द की गहरी पर्त जमी है !
जान किसकी आस में अब तक,
जीवन की ये डोर थमी है !!

जब भी चले खेल नसीब का ,
पिटती मेरी गोटी क्यों है !!
किस्मत इतनी खोटी क्यों है
हर खुशी इतनी छोटी क्यों है !!

--सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश )

Tuesday 7 October 2014

आ जाओ सनम-------

आ जाओ सनम,मेरी सेज है सूनी !
तुम बिन तुमसे हुई, प्रीत है दूनी !!

विरहानल में,जलता जीवन
अश्कों में गल, ढलता यौवन
मैं जल-जल, गल-गल मर न जाऊँ
कहे न तुमको, ये जग खूनी !
आ जाओ सनम--------

छोड़ो न यूँ तुम, साथी अपना
बने न हकीकत, फिर एक सपना
टूटे, गिर जहाँ से प्यार की मूरत
मंजिल वो ऊँची, क्या छूनी !
आ जाओ सनम---------

छोड़ो न तनहा, अरमान मेरे
अभिशाप बनें न, वरदान मेरे
बनाएगी क्या-क्या मिलकर बातें
जिह्वा जग की, बड़ी बातूनी !
आ जाओ सनम----------

बेष बनाकर जोगी वाला
हाथ में ले अश्कों की माला
पल-पल जपते नाम तुम्हारा
अरमाँ रमाने चले हैं धूनी !
आ जाओ सनम--------

आ जाओ सनम, मेरी सेज है सूनी !
तुम बिन तुमसे हुई , प्रीत है दूनी !!

-डाॅ0 सीमा अग्रवाल,
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Friday 26 September 2014

कह -मुकरनियाँ--

हर मुश्किल में साथ निभाए
बिगडे सब मेरे काम बनाए
रहता है दिल में आठों याम
ए सखि साजन ! ना सखि राम ।

आगे पीछे मेरे डोळे
कान में कोई मंतर बोले
समझ न आए एक भी अच्छर
ए सखि साजन ! ना सखि मच्छर ।

वो पास है तो जीने का सुख है
उसके बिना तो दुख ही दुख है
उसे समझ न लेना ऐसा-वैसा
ए सखि साजन ! ना सखि पैसा ।

तन मन का वह ताप मिटाए
उस बिन अब तो रहा न जाए
छुपा है जाने कहाँ मनभावन
ए सखि साजन ! ना सखि सावन ।

ले के मुझे आगोश में अपने
दिखाए मधुर-मधुर वो सपने
गुपचुप-गुपचुप करे फिर बात
ए सखि साजन ! ना सखि रात ।

दूध-सा उजला उसका रूप
सामने उसके टिके न धूप
पहचानो जरा, है कौन वो वन्दा
ए सखि साजन ! ना सखि चन्दा ।

जहाँ मैं जाऊँ साथ वो जाए
उस बिन मुझसे रहा न जाए
मुझे भाए उसका हर स्टाइल
ए सखि साजन ! ना मोबाइल ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Sunday 21 September 2014

दुनिया में मुझको सबसे प्यारा---

दुनिया में मुझको सबसे प्यारा
लगता बस अपना भाई ।
क्यों न चलूँ, कदमों पर उसके
जब उसके पीछे आई ।

बाँहों को अपनी पलना बनाया
थपकी देकर मुझे सुलाया
जागता रहा तब तक वो खुद भी
जब तक मुझको नींद न आई ।
दुनिया में मुझको --------

कितना मुझ पर प्यार जताए
क्या अच्छा क्या बुरा बताए
जब भी भटकी हूँ मैं पथ से,
उसने ही तो राह सुझाई ।
दुनिया में मुझको -------

कोई एक गुण हो तो बताऊँ
कहाँ तक उसके हुनर गिनाऊँ ।
पूर्णता रूप, शील, कर्म की
देती उसमें मुझे दिखाई ।
दुनिया में मुझको ----------

जब भी पुकारा, वो दौडा आया
क्या क्या न उसने मुझे सिखाया
उसने ही तो मुझे सम्हाला
जब - जब मैंने ठोकर खाई ।
दुनिया में मुझको ----------

या रव , कैसे उससे मिलाया
नजरों को वो नजर न आया ।
एक नजर तो देख लें उसको
आँखों ने ये आस लगाई ।
दुनिया में मुझको ---------

खुश हूं और कुछ खुश भी नहीं
मिलकर भी तो वो मिला नहीं ।
युग युग की पहचान बना वो,
पर मिटी न युग सी लम्बी जुदाई ।
दुनिया में मुझको -----------

लो राखी का दिन भी आया
आँखों ने उसका ख्वाब सजाया
टकटकी लगाए कबसे खडी मैं
पर हाथ निराशा आई ।

दुनिया में मुझको सबसे प्यारा
लगता बस अपना भाई ।
क्यों न चलूँ, कदमों पर उसके
जब उसके पीछे आई ।

Friday 19 September 2014

आज मैं बन गया नाना जी---

आज मैं बन गया नाना जी ।
खुशी से हूं , दीवाना जी ।
नशे में क्या न कर जाऊँ,
कोई मेरे पास न आना जी ।

लगता है, हाथ लगा है मेरे,
कोई अनमोल खजाना जी ।
प्यारा होता ब्याज मूल से,
आज मैंने ये जाना जी ।

आज मैं बन गया नाना जी ।
खुशी से हूं , दीवाना जी ।।

तरस रहे हैं दरस को नैना ,
मोहक छवि दिखाना जी ।
लक्ष्मी भेजी मेरे अंगना ,
रव का शुक्र मनाना जी ।

आज मै बन गया नाना जी ।
खुशी से हूं , दीवाना जी ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

तेरे बिना - - -

दिल कहीं न लागे, तेरे बिना !
कहीं दूर ये भागे, तेरे बिना !!

भोजन में अब वो स्वाद कहाँ !
नित होते हैं नागे, तेरे बिना !!

आँखों में अब वो नींद कहाँ !
हर पल ये जागें, तेरे बिना !!

सुलझाऊँ कैसे जीवन-डोरी !
उलझे सब धागे, तेरे बिना !!

किस्मत न जाने सोई कहाँ !
हम हुए अभागे, तेरे बिना !!

वक्त के घोडे ले जाएं कहाँ !
क्या हो अब आगे,तेरे बिना !!

खुश रहो सदा तुम, रहो जहाँ !
दिल दुआ ये माँगे, तेरे बिना !!

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

केदार नाथ घाटी में आई भयंकर दैवीय आपदा पर---

घाटी की विध्वंसक लीला
प्रकृति-नारी का शाप ।
फल तो पायेगा ही मानव
गर तू करेगा पाप ।

जाग उठी है, प्रकृति-सुकुमारी
जैसे आज की नारी ।
अब भी शोषण नहीं रुका
तो पड़ सकता है भारी ।
हर सुख तेरा उड़ जाएगा
पल में बनकर भाप ।

प्रकृति माँ है, सहचरी है
सुख-दुख में तेरे साथ खड़ी है ।
हारे-थके तेरे प्राणों में
नवल चेतना सदा भरी है ।
युग-युग से सहती आई है
जुल्म तेरे चुपचाप ।

जिसके आँचल में पला-बढ़ा तू
उसे झुकाने आज खड़ा तू ।
स्वार्थ में अपने अंधा होकर
कैसी जिद ये आज अड़ा तू ।
अपनी अधमता, उसकी ममता
देख ले, जरा तू नाप ।

एक और कयामत आ सकती है
नारी भी गजब ढा सकती है ।
यह उत्पीडऩ नहीं रुका तो
नर ! तेरी शामत आ सकती है ।
विद्रोह की धधकती ज्वाला में
जल जाएगा अपने आप ।

अब भी कदम हटा ले,
गर तू स्वार्थ भरी मंजिल से ।
तेरे सभी गुनाहों को वह
भुला देगी अपने दिल से ।
समरसता धरा पर लौटेगी
मिट जाऐंगे सारे ताप ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Sunday 14 September 2014

जी करता है ----

जी करता है , जी भर रो लूँ !
अश्कों से अपना, हर गम धो लूँ !

आज मैं तनहा, खाली खाली !
कैसे रात कटे , ये काली !
शायद मन कुछ राहत पाए,
बिखरी यादों के मनके पो लूँ !
          जी करता है , जी भर रो लूँ !

एक तरफ हों सुहानी घडियाँ !
औ दूजे पर अश्कों की लडियाँ !
जीवन-तुला के दो पलडों पर,
सुख-दुख दोनों रखकर तोलूँ !
         जी करता है, जी भर रो लूँ !

किया न उसने मुझपे भरोसा !
प्यार के बदले गम ही परोसा !
अब कैसे उससे बात करूँ मैं ,
हसरत अधूरी मन में ले सो लूँ !
          जी करता है, जी भर रो लूँ !

सोचा न था ये दिन आयेगा !
नन्हा सुख भी छिन जाएगा !
कुदरत की सौगात समझ,
भार गमों का हँस कर ढो लूँ !
         जी करता है जी भर रो लूँ !
         अश्कों से अपना हर गम धो लूँ !

-सीमा अग्रवाल

Friday 12 September 2014

पाहुन ! तुम दिल में आए हो---

पाहुन ! तुम दिल में आए हो
रव का दिया वरदान बनकर
मन-मंदिर में बसे हुए हो
आज तुम्ही भगवान बनकर

पहली बार नजर जब आए
चुपके से आ दिल पर छाए
मेरे लवों पर थिरक रहे हो
आज तुम्ही मुस्कान बनकर

ये जग शातिर बडा लुटेरा
डाले रहता हर पल डेरा
इस मंदिर का देतीं पहरा
साँसें मेरी दरबान बनकर

वरना क्या हस्ती थी मेरी
वीरान पडी बस्ती थी मेरी
आईं बहारें मेरे दर तक
कुदरत का फरमान बनकर

अब न मुझसे नजर चुराना
कभी न अपना साथ छुडाना
रह जाएगा बुत ये मेरा
बिन तेरे बेजान बनकर

पाहुन ! तुम दिल में आए हो
रव का दिया वरदान बनकर ।

-सीमा अग्रवाल,
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Wednesday 10 September 2014

हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !

हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !
लगा लिया है मैंने प्रभुवर,
इन पावन चरणों में डेरा !
हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !

तेरी जगती में जब सब सोते,
एक अकेली जगती हूँ मैं !
नाम की तेरे देके दुहाई,
इन प्राणों को ठगती हूँ मैं !
मन में मूरत बसी है तेरी,
जिव्हा पर बस नाम है तेरा !

हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !

मैंने सुना है भक्त पुकारे,
तो तुम दौड़े आते हो !
अपना हर एक काम जरूरी,
उस पल छोड़े आते हो !
अपने प्रण की लाज रख लो,
डालो इधर भी फेरा !

हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !

जब से जाना अंश हूँ तेरा,
खोज में तेरी हुई मैं दीवानी !
नाता तुझसे जुडा है जबसे,
सारे जग से हुई बेगानी !
अज्ञान-तिमिर हर लो मेरा,
कर दो अब सुखद सवेरा !

हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !

खुद से जुदा कर मुझको तुमने,
भेज दिया संसार में !
कैसे तुम तक अब मैं आऊँ,
भटक रही मंझधार में !
कोई तो राह दिखाओ मुझे
चहुँ ओर विपद् ने घेरा !

हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !

समय की सीमा तू क्या जाने,
अनंत समय है साथ में तेरे !
मैं कैसे व्यर्थ गँवा दूँ जीवन,
दो पल ही तो हाथ में मेरे !
कब बीत चलें दो पल ये सुहाने,
घिर आए गहन अँधेरा !

हर लो हरि-हर, हर दुख मेरा !

-डाॅ0 सीमा अग्रवाल,
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

Sunday 7 September 2014

मेहमां बनकर आए थे जग में---

घर से चिर-विदा लेते समय पिता की
तरफ से स्वजनों को अन्तिम संबोधन-

मेहमां बनकर आए थे जग में,
लौट अब घर की ओर चले !
अथाह प्रेम था पाया जिनसे,
बाँध नेह की डोर चले !

कितना अटूट जुडा था नाता,
टूटा तो सब बिखर चले !
जिन पलकों पर बैठा करते,
आँसू बन उनसे ढुलक चले !

मेरा घर, घरवाले क्या,
कोई न मेरे साथ था !
आया था जब दुनिया में,
मैं तो खाली हाथ था !

पाया यहीं था सकल साज,
छोड यहीं सब आज चले !

यूँ अश्क न बहाओ रो रोकर,
विदा करो मुझे तुम खुश होकर !
यू तो मैं भी क्या खुश हूँ बोलो,
तुम जैसे प्यारे स्वजन खोकर !

जाना ही होता, उसको जग से ,
जब जीवन की जिसके साँझ ढले ।

( मां के प्रति )
मेरे कुछ दायित्व अधूरे हैं,
जिम्मेदारी उनकी तुम पर है !
अपने से ज्यादा, सच कहता हूँ ,
मुझे रहा भरोसा तुम पर है !

तुम्हें मेरी जगह भी लेनी है,
यूँ रोने से कैसे काम चले !

बिटिया को विदा भी करना है !
सूने घर को भी तो भरना है !
बहू आए, खुशहाली लाए,
वंश भी तो आगे बढना है !

कुछ अधूरी साधें अपनी,
काँधे पे तुम्हारे डाल चले !

( भाई के प्रति )
बेटा ! तुम रखना माँ का ध्यान,
माँ की सेवा में ही है कल्यान !
माँ के एक इशारे पर ही,
किया है मैंने महा प्रयाण !

थके प्राण माँ के आँचल में,
लेने आज विश्राम चले ।

क्या कुदरत का खेल है देखो !
कुछ न किसी पर रहे बकाया !
आज हमारे बच्चों ने भी,
अपना सारा कर्ज चुकाया !

जिन्हें बिठाया था काँधों पर
काँधे पे उन्हीं के आज चले !

मैं सदा रहूँगा बीच तुम्हारे !
मिटेंगे न पल जो साथ गुजारे !
जीवन-फलक पर अमिट रहेंगे,
बने जो तुम संग चित्र हमारे !

तनहाई में देने साथ तुम्हारा,
यादों का अलबम छोड चले !

सजल घटा-सी यह काया थी !
उस असीम की लघु छाया थी !
मोहपाश बँधे तुम बिलख रहे क्यों,
जो तुम्हें लुभाती,बस माया थी !

जिस विराट से हुए अलग थे,
सिमट उसी में आज चले !

मेहमां बनकर आए थे जग में,
लौट अब घर की ओर चले !!

डाॅ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )