Friday 19 September 2014

केदार नाथ घाटी में आई भयंकर दैवीय आपदा पर---

घाटी की विध्वंसक लीला
प्रकृति-नारी का शाप ।
फल तो पायेगा ही मानव
गर तू करेगा पाप ।

जाग उठी है, प्रकृति-सुकुमारी
जैसे आज की नारी ।
अब भी शोषण नहीं रुका
तो पड़ सकता है भारी ।
हर सुख तेरा उड़ जाएगा
पल में बनकर भाप ।

प्रकृति माँ है, सहचरी है
सुख-दुख में तेरे साथ खड़ी है ।
हारे-थके तेरे प्राणों में
नवल चेतना सदा भरी है ।
युग-युग से सहती आई है
जुल्म तेरे चुपचाप ।

जिसके आँचल में पला-बढ़ा तू
उसे झुकाने आज खड़ा तू ।
स्वार्थ में अपने अंधा होकर
कैसी जिद ये आज अड़ा तू ।
अपनी अधमता, उसकी ममता
देख ले, जरा तू नाप ।

एक और कयामत आ सकती है
नारी भी गजब ढा सकती है ।
यह उत्पीडऩ नहीं रुका तो
नर ! तेरी शामत आ सकती है ।
विद्रोह की धधकती ज्वाला में
जल जाएगा अपने आप ।

अब भी कदम हटा ले,
गर तू स्वार्थ भरी मंजिल से ।
तेरे सभी गुनाहों को वह
भुला देगी अपने दिल से ।
समरसता धरा पर लौटेगी
मिट जाऐंगे सारे ताप ।

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )

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