भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।
दम पे इन्हीं के सभ्यता अनुदिन यहाँ फूली फली।
नित काम में रत हैं मगर, फल की न करते कामना।
सौ मुश्किलों सौ अड़चनों, का रोज करते सामना।
इनकी लगन को देखकर, हों पस्त अरि के
हौसले,
कैसे विधाता वाम हो, जब पूत मन की भावना।
शिव नाम मन जपते चलें, ले कर्म की गंगाजली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।१।
कुछ चुटकियों का खेल है, हर काम इनके वास्ते।
धुन में मगन चलते चलें, आसान करते रास्ते।
फल कर्म का पहला सदा, करके समर्पित ईश को,
करते विदा सब उलझनें, हँसते-हँसाते-नाचते।
कब दुश्मनों की दाल कोई सामने इनके गली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।२।
उड़ती चिरैया भाँप लें, जल-थाह गहरी नाप लें।
अपकर्म या दुष्कर्म का, सर पे न अपने पाप लें।
आशीष जन-जन का लिए, सर गर्व से ऊँचा किए,
फूलों भरी शुभकर्म की, झोली जतन से ढाँप लें।
कलुषित हृदय की भावना, कदमों तले घिसटी चली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।३।
बैठे भरोसे भाग्य के, रहते नहीं हैं ये कभी।
करके दिखाते काम हैं, कहते नहीं मुख से कभी।
आए बुरा भी दौर तो, छोड़ें न मन को साधना,
फुसलाव में भटकाव में, आते नहीं हैं ये कभी।
हर शै जमाने की झुकी, पीछे सदा इनके चली।
भारत सदा से ही रहा है कर्मवीरों की थली।४।
© सीमा अग्रवाल
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