Thursday 18 January 2024

आयी सुहानी भोर...

लला गृह की ओर चले, आई सुहानी भोर।
बजें नगाड़े-दुंदुभी,     गुंजित नभ के छोर।।

पलक-पाँवड़े मग बिछा, खड़ा सज्ज हो द्वार।
रामदरश की कामना,    करता हर परिवार।।

दुर्दिन बीते शुभ दिन आए, रामलला घर वापस आए।
हुई अंततः जीत हमारी, बिगड़ी किस्मत दीन्ह सँवारी।
मेघ चतुर्दिक सुख के छाए, पुरवासी मुद मंगल गाए।
मन उमंगित शुभ घड़ी आयी, सजी अयोध्या नवता पायी।
भव्य नव्य अरु दिव्य स्वरूपा, शोभा अमित अपार अनूपा।
महिमा पुर की अकथ अपारा, सहस-कोटि मुख बरनि न पारा।
हुई सुबह ले सुखद उजाला, बीत गया तम-तोम कराला।
राम-रस की बह रही धारा, मन आह्लादित हर्ष अपारा।
तनीं कनातें राम-पताका, शुभ नित बाँचे राम-शलाका।
गर्भ-गृह में प्राण-प्रतिष्ठित, रोम-रोम प्रभु हुए अधिष्ठित।
जब प्रभु आनी ठानी मन में, बानक वही बने अग-जग में।

प्राण-प्रतिष्ठा  राम  की,  हुई  अवध में  आज।
सुखदा बाइस जनवरी, फलें सभी शुभ काज।।

घर-घर सबके गया बुलावा, अक्षत चावल पूत कलावा।
लगीं अवध में उत्सुक आँखें, काश मुझे मिल जातीं पाँखें।
मैं भी अवधपुरी जा पाती, राम दरश कर धन्य कहाती।
मन हर्षित तन होत अधीरा, मिटे कलेश गयी सब पीरा।
देव गगन में अति हरषाए, पुष्प खुशी के चुन बरसाए।
जागे फिर से भाग अवध के, हुए धूसरित भाव कपट के।
राम-नाम की महिमा न्यारी, समझ न पाएँ अत्याचारी।
राम-नाम काटे भव-फंदा,  दुख निकसें मन होत अनंदा।
संत काज हित नर वपु धारे। खोजि-खोजि प्रभु खल संहारे।
भक्त शिरोमणि पूर्ण सकामा, जपत निरंतर रामहिं रामा।
दो नयनन ने आस लगाई, दरसन दो हमको रघुराई।

मन - मानस मेरे रहे,   सदा आपका वास।
सहस्त्रार विगसे कमल, आए सरस सुवास।।

मानव-संस्कृति के तुम पोषक। धर्म-न्याय सत् के उद्घोषक।
तुम सा जग में और न दूजा, ध्यान लगा नित तुमको पूजा।
अहं चूर कर रिपु संहारा, कीन्ह दशानन विगत विकारा।
मन से सबका भला विचारा, गलत शब्द ना कभी उचारा।
दुख जीवन में रहे सदा ही,  पल सुख के बस यदा-कदा ही।
दुख में भी सुख लीन्ह तलाशा, दोष मिटा मन सतत तराशा।
तुम सा जग में कौन मिलेगा ? देकर शुभता पाप हरेगा ?
मर्यादित-अनुशासित तुम सा, छान लिया जग मिला न ऐसा।
तीन जगत के प्रभु तुम स्वामी।  घट-घट वासी अंतर्यामी।
करें नयन-मन मिल संवादा,  कायम हो फिर वह मर्यादा।
जन-जन मन में आस लगाए, राम-राज फिर वापस आए।

सिंहासन आरूढ़ हो,  करें लला फिर राज।
समता से शासन चले, समरस बने समाज।।

खोया वैभव सूदमय, मिला अवध को आज।
युगों-युगों तक अब चले, रामलला का राज।।

© डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उत्तर प्रदेश )
फोटो गूगल से साभार

No comments:

Post a Comment