Tuesday 23 January 2024

ऐंठ रहा जलजात...

ठिठुरन बढ़ती जा रही, काँपे थर-थर गात।
सरवर जम सब हिम हुए, ऐंठ रहा जलजात।।

पूस मास पाला पड़ा, ठिठुर रहे मैदान।
जमे हुए हैं शीत में,  ओले से अरमान।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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