लो पास तुम्हारे चली मैं आई चुपके से !
खोलो ना दिल के द्वार अपने चुपके से !
देखो ना घर के काम मैं सारे कर आई
छुपा लो अपने पास मुझे अब चुपके से !
मुझे तो तुममें रब का नूर नजर आता है
देखूं जो तुम्हें खिसक जाते गम चुपके से !
अनथक छवि निहारतीं बावरी अँखियाँ
जाने कब आ जाती नींद उनमें चुपके से !
तनिक मूंद लो आँखें, लाज हमें आती है
हमें कहनी है दिल की बात तुम्हें चुपके से !
चाह यही बस, कभी दूर न खुद से करना
निकल जाएंगे वरना प्राण हमारे चुपके से !
--- सीमा ---
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