Wednesday 5 August 2015

मुझे याद तुम्हारी आई---

खोई रही ख्यालों में तुम्हारे
पलभर नींद मुझे ना आई !
तुम क्या जानो तुम बिन,
तन्हा कैसे मैंने रैन बिताई !

तकती रही तस्वीर तुम्हारी
सुधबुध अपनी बिसराई
मुझे याद तुम्हारी आई !

पंछी लौटे नीड़ में अपने
नभ में संध्या घिर आई
मुझे याद तुम्हारी आई !

रोमांचित हो उठी धरा
जब नभ में बदली छाई
मुझे याद तुम्हारी आई !

रो रो व्यथित सावन ने
अश्कों की झड़ी लगाई
मुझे याद तुम्हारी आई !

चाँद के आगोश में जब
निशा शरमाई सकुचाई
मुझे याद तुम्हारी आई

चुपके से आ चकोर को
चाँद ने चादर धवल उढ़ाई
मुझे याद तुम्हारी आई !

                   --- सीमा ---

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