स्मित से माँ की बना, जग क्या सब ब्रह्मांड।
भोग कुम्हड़े का करें, नाम पड़ा कूष्मांड।।
प्रिय है माँ को कुम्हड़ा, बलि जो इसकी देत।
वरद हस्त रख शीश पर, दुखड़ा हर हर लेत।।
जननी ये ब्रह्मांड की, देतीं जीवन दान।
मन को निर्मल साफ रख, कर लो माँ का ध्यान।।
माता के मन को रुचे, मालपुए का भोग।
भोग लगाए जो इन्हें, हर लें उसके रोग।।
मुखमंडल पर ओज है, रविमंडल में वास।
जगतजननी कूष्मांडा, पूर्ण करो माँ आस।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"किंजल्किनी" से
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