श्वेत वृषभ आरूढ़ हो, धारे हस्त त्रिशूल।
माँ गौरी निज भक्त के, हर लेतीं हर शूल।।
महा अष्टमी पर करें, माँ गौरा का ध्यान।
संकट सारे दूर हों, मिले अभय का दान।।
नौ दिन ये नवरात्र के, मातृ शक्ति के नाम।
मातृ भक्ति से हों सदा, सिद्ध सभी के काम।।
नौ रातें शुभकारिणी, हरतीं तमस-विकार।
गुंजित हो हर दिशा में, माँ की जयजयकार।।
कलुष वृत्ति मन की हरें, माता के नव रूप।
भक्ति-शक्ति के जानिए, मूर्तिमंत स्वरूप।।
माता के दरबार में, कोई ऊँच न नीच।
समरसता बरसे यहाँ, भर-भर नेह उलीच।।
रिपुओं से रक्षा करे, बने भक्त की ढाल।
बरसे जब माँ की कृपा, कर दे मालामाल।।
निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं, पड़ा अपर्णा नाम।।
लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।
अष्टभुजी वाराहिनी, अद्भुत मुख पर हास।
कृपा मिले माँ आपकी, पूरा हो उपवास।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से
No comments:
Post a Comment