सच के सिर पर सेहरा, कालिख तम के गात।
मिलनातुर हो विजयश्री, दूर खड़ी मुस्कात।।
पुतला हरा विकार का, दिया ज्ञान को मान।
भली निभाई शत्रुता, तुमने कृपा-निधान।।
तज कषाय दशग्रीव जब, हुआ पूर्ण निष्काम।
खींच नाभि से प्राण झट, पहुँचाया निज धाम।।
दर्शन पा श्रीराम के, हुआ तुरत निष्काम।
भव-बंधन से मुक्त हो, पहुँचा प्रभु के धाम।।
मंचन लीला का करो, तज कर सभी फरेब।
पुरुषोत्तम के गुण भरो, भरो न केवल जेब।।
भर - भर मद में जा रहे, करने रावण राख।
कर्म-कसौटी पर टिके, जरा न जिनकी साख।।
पुतला रावण का बना, चले फूँकने आप।
गिरेबान में झाँकिए, पहले अपने पाप।।
राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ, जागें जग के भाग।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से
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