Saturday, 12 October 2024

पुतला हरा विकार का....

सच के सिर पर सेहरा, कालिख तम के गात।
मिलनातुर हो विजयश्री,    दूर खड़ी मुस्कात।।

पुतला हरा विकार का,  दिया ज्ञान को मान।
भली निभाई शत्रुता,     तुमने कृपा-निधान।।

तज कषाय दशग्रीव जब, हुआ पूर्ण निष्काम।
खींच नाभि से प्राण झट, पहुँचाया निज धाम।।

दर्शन पा श्रीराम के,   हुआ तुरत निष्काम।
भव-बंधन से मुक्त हो, पहुँचा प्रभु के धाम।।

मंचन लीला का करो, तज कर सभी फरेब।
पुरुषोत्तम के गुण भरो, भरो न केवल जेब।।

भर - भर मद में जा रहे,  करने रावण राख।
कर्म-कसौटी पर टिके, जरा न जिनकी साख।।

पुतला रावण का बना, चले फूँकने आप।
गिरेबान में झाँकिए,     पहले अपने पाप।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ,      जागें जग के भाग।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से

फोटो गूगल से साभार

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