Saturday 19 October 2024

करवाचौथ...

हर दिन करवा चौथ हो, हर दिन पहली रात
पुष्ट करें मन-भाव को,      प्रेम भरे जज्बात।।

करवा लेकर पूजतीं, चौथ जगत की नार।
करतीं पूजा चाँद की, कर सोलह  श्रंगार।।

मन से पति का ध्यान कर, छिड़कत प्रेम-पराग।
लख छवि पिय की चाँद में,  माँगे अमर सुहाग।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

फोटो गूगल से साभार

Thursday 17 October 2024

किंजल्किनीः माल कमल अम्लान...

राम-नाम किंजल्किनी, हरे सकल भव ताप।
लिए हाथ ये सुमिरनी,   करूँ निरन्तर जाप।।

स्वीकारो 'किंजल्किनी,  पुष्प कमल अम्लान'।
करूँ समर्पित प्रभु तुम्हें, शब्द-शब्द मम प्रान।।

मनके-मनके पर प्रभो,    सिर्फ तुम्हारा नाम।
निकट सदा मन के रहो,कोटिक तुम्हें प्रणाम।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद



फोटो गूगल से साभार

Wednesday 16 October 2024

आज रात कोजागरी...

आज रात कोजागरी...

पसरी भू पर चाँदनी, आया अमृत काल।
शरदचंद्र का आगमन, ज्योतित नभ का भाल।।

शरद पूर्णिमा पर करें,  कोजागर उपवास।
जाग्रत रहते जन जहाँ, करती लक्ष्मी वास।।

धरती  ने  धारण  किया,  मोहक  हीरक  हार ।
शीतल  नूतन  भाव का,  कन-कन  में  संचार ।।

मन-गगन  में  तुम मेरे,  चमको  बन कर चाँद ।
नयन  निमीलित  मैं करूँ,  देखूँ  गुपचुप चाँद ।।

उलझ-उलझ कर मेघ से, चंदा हुआ उदास।
मेघों रस्ता दो उसे,      रजनी तकती आस।।

आज रात कोजागरी,  बरसे अमृत - धार।
धवल चाँदनी से पटा, देख सकल संसार।।

वर-अभय कर-कमल लिए, विचरें श्री भूलोक।
रात जाग जो व्रत करे,    हर लें उसका शोक।।

चलीं भ्रमण पर लक्ष्मी, धरे अधर पर मौन।
आज रात कोजागरी,     जाग रहा है कौन ?।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
'किंजल्किनी' से

Saturday 12 October 2024

पुतला हरा विकार का....

सच के सिर पर सेहरा, कालिख तम के गात।
मिलनातुर हो विजयश्री,    दूर खड़ी मुस्कात।।

पुतला हरा विकार का,  दिया ज्ञान को मान।
भली निभाई शत्रुता,     तुमने कृपा-निधान।।

तज कषाय दशग्रीव जब, हुआ पूर्ण निष्काम।
खींच नाभि से प्राण झट, पहुँचाया निज धाम।।

दर्शन पा श्रीराम के,   हुआ तुरत निष्काम।
भव-बंधन से मुक्त हो, पहुँचा प्रभु के धाम।।

मंचन लीला का करो, तज कर सभी फरेब।
पुरुषोत्तम के गुण भरो, भरो न केवल जेब।।

भर - भर मद में जा रहे,  करने रावण राख।
कर्म-कसौटी पर टिके, जरा न जिनकी साख।।

पुतला रावण का बना, चले फूँकने आप।
गिरेबान में झाँकिए,     पहले अपने पाप।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ,      जागें जग के भाग।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से

फोटो गूगल से साभार

Friday 11 October 2024

नौ दिन ये नवरात्र के...

श्वेत वृषभ आरूढ़ हो, धारे हस्त त्रिशूल।
माँ गौरी निज भक्त के, हर लेतीं हर शूल।।

महा अष्टमी पर करें, माँ गौरा का ध्यान।
संकट सारे दूर हों, मिले अभय का दान।।

नौ दिन ये नवरात्र के,   मातृ शक्ति के नाम।
मातृ भक्ति से हों सदा, सिद्ध सभी के काम।।

नौ रातें शुभकारिणी,   हरतीं तमस-विकार।
गुंजित हो हर दिशा में, माँ की जयजयकार।।

कलुष वृत्ति मन की हरें, माता के नव रूप।
भक्ति-शक्ति के जानिए,   मूर्तिमंत स्वरूप।।

माता के दरबार में, कोई ऊँच न नीच।
समरसता बरसे यहाँ, भर-भर नेह उलीच।।

रिपुओं से रक्षा करे,    बने भक्त की ढाल।
बरसे जब माँ की कृपा, कर दे मालामाल।।

निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं,      पड़ा अपर्णा नाम।।

लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।

अष्टभुजी वाराहिनी,  अद्भुत मुख पर हास।
कृपा मिले माँ आपकी,    पूरा हो उपवास।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
दोहा संग्रह "किंजल्किनी" से

फोटो गूगल से साभार

Thursday 10 October 2024

तुम जलधर मैं मीन...

तुम जलधर मैं मीन...

तुम बिन कैसे धारूँ जीवन,
तुम जलधर मैं मीन।
प्राण जिएँ ये देख तुम्हें ही,
रहें  तुम्हीं  में  लीन।

चाँद न आए नजर अगर तो,
कैसे जिए चकोर ?
साँझ ढले से इकटक नभ में,
देखे राह अगोर।
उसके ही स्वप्नों में खोयी,
रहे सदा तल्लीन।

स्वाति नखत के मेघ साँवरे,
करो कृपा की कोर।
अनथक ताक रही मैं प्यासी,
कबसे तेरी ओर।
पीर पराई देख हँसें सब,
करता कौन यकीन ?

अथक ललक दरसन की तेरे,
और मुझे क्या काम।
राह बुहारूँ पंथ निहारूँ,
जपूँ निरंतर नाम।
रखती बेर मधुर चख मीठे,
शबरी -सी मैं दीन।

चैन नहीं इक पल जीवन में,
जकड़ें नित नव रोग।
करते हैं उपहास अबल का,
ताकत वाले लोग।
हालत मेरी छुपी न तुमसे,
भाँति-भाँति से हीन।

अंत भले का भला न होता,
मिले झूठ को जीत।
कैसे कोई सहे कहो तो,
दुःसह जगत की रीत।
भाग्य छली ले जाता तिस पर,
कनियाँ सुख की बीन।

सुख-दुख जो भी मिलें यहाँ, सब
किस्मत के आधीन।

तुम जलधर मैं मीन...

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
साझा संग्रह "अरुणोदय" से

Wednesday 9 October 2024

हँस जरा जो बोल दे तू...



हँस जरा जो बोल दे तू,
बोल वो अमृत लगेगा।
दे जहर भी हाथ से फिर,
वो मुझे अमृत लगेगा।

झुरझुरी सी है बदन में,
देह ठंडी सी पड़ी है।
मौत ही यूँ लग रहा है,
सामने मेरे खड़ी है।
बोल मृदु दो बोल दे तू,
शब्द हर अमृत लगेगा।

लग रहा है आज जैसे,
खोल अपना खो रही हूँ।
प्राण तुझमें जा रहे हैं,
लय तुझी में हो रही हूँ।
आँख भर जो देख ले तू,
दृश्य वो अमृत लगेगा।

होंठ भिंचते जा रहे हैं।
बोल फँसते जा रहे हैं।
क्या कहूँ तुझसे बता अब,
पल सिमटते जा रहे हैं।
नेह-रस जो घोल दे तू,
आचमन अमृत लगेगा।

बैठ पल भर पास मेरे।
देख आँखों  के अँधेरे।
वत्स ! इनमें भर उजाला,
मिट चलें ये तम घनेरे।
पूर्ण जो ये साध कर दे,
मौन भी अमृत लगेगा।

याद कर वो दिन तुझे जब
गोद में मैंने खिलाया।
बाँह का पलना बनाया,
थपकियाँ देकर सुलाया।
अंक में भर ले अगर तू,
क्षण मुझे अमृत लगेगा।

आँख जब तू फेरता है।
तम सघन मन घेरता है।
आ हलक तक प्राण मेरा ,
मौत ही तब हेरता है।
खुश नजर इस ओर कर ले,
देखना अमृत लगेगा।

मैं अकेली जब जगत में,
जीविका हित जूझती थी।
लौट जब आती, लपक कर-
बस तुझे  ही  चूमती थी।
आज कुछ तू ध्यान रख ले,
वक्त ये अमृत लगेगा।

हो रहा है तन शिथिल अब,
बढ़ रही है उम्र मेरी।
डगमगाते पाँव पग-पग,
माँगते बस  टेक तेरी।
तू बने लाठी अगर तो,
ये सफर अमृत लगेगा।

फड़फड़ाती लौ दिए की,
फड़फड़ाते प्राण हैं यों।
काल हरने प्राण ही अब,
आ रहा इस ओर हो ज्यों।
मोह से यदि मुक्त कर दे,
त्याग ये अमृत लगेगा।

हँस जरा कुछ बोल दे तू,
बोल हर अमृत लगेगा।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
साझा संग्रह "माँ" से

काला है माँ का बदन....


सघन गहन अँधियार सा, रूप विकट विकराल।
घन बिच बिजुरी सी लसे, गल विद्युत की माल।।

काला है माँ का बदन,   काले बिखरे बाल।
दुष्टों के हित धारतीं, काल रूप विकराल।।

श्यामल है माँ का बदन, कालरात्रि है नाम।
दुष्टों का संहार कर,    पहुँचाती निज धाम।।

खल-दल का मर्दन करें, कालरात्रि बन काल।
भय निकालने भक्त का,   धरें रूप विकराल।।

लपट आग की नाक से, निकल रही अविराम।
गर्दभ वाहन मातु का,         त्रिपुर भैरवी नाम।।

रूप भयंकर काल सा, देतीं शुभता दान।
वरद हस्त रख शीश पर, करतीं अभय प्रदान।।

माता के मन को रुचे, मालपुए का भोग।
भोग लगाए जो इन्हें, हर लें उसके रोग।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
दोहा संग्रह " किंजल्किनी" से

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फोटो गूगल से साभार

Sunday 6 October 2024

नमस्तस्यै नमस्तस्यै...

पाँचवी माता स्कंदमाता संसार की हर संतति पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें...

देकर बुद्धि कुबुद्धि को, अनगढ़ को संज्ञान।
रखो मात स्कंद की,   हर संतति का ध्यान।।

अंक सुशोभित मात के, बाल रूप स्कंद।
रिपुओं से रक्षा करें,     भक्त रहें निर्द्वन्द।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"किंजल्किनी" से


फोटो गूगल से साभार

Saturday 5 October 2024

या देवी सर्वभूतेषु कूष्मांडा रूपेण संस्थिता....

स्मित से माँ की बना, जग क्या सब ब्रह्मांड।
भोग कुम्हड़े का करें,     नाम पड़ा कूष्मांड।।

प्रिय है माँ को कुम्हड़ा, बलि जो इसकी देत।
वरद हस्त रख शीश पर, दुखड़ा हर हर लेत।।

जननी ये ब्रह्मांड की, देतीं जीवन दान।
मन को निर्मल साफ रख, कर लो माँ का ध्यान।।

माता के मन को रुचे, मालपुए का भोग।
भोग लगाए जो इन्हें, हर लें उसके रोग।।

मुखमंडल पर ओज है, रविमंडल में वास।
जगतजननी कूष्मांडा, पूर्ण करो माँ आस।।

© सीमा अग्रवाल
    मुरादाबाद
    "किंजल्किनी" से
photo from wikipedia

Friday 4 October 2024

अद्भुत माँ की शक्तियाँ...

अद्भुत माँ की शक्तियाँ, अद्भुत माँ का रूप।
दर्शन देतीं भक्त को,        धारे रूप अनूप।।१।।

नवरातों में पूज लो,       मैया के नवरूप।
मोहक छवि मन में बसा, हो जाओ तद्रूप।।२।।

कलुष वृत्ति मन की हरें, माता के नव रूप।
भक्ति-शक्ति के जानिए,   मूर्तिमंत स्वरूप।।३।।

पूजो माता के चरन,   ध्या लो उन्नत भाल।
वरद हस्त माँ का उठे, हर ले दुख तत्काल।।४।।

रिपुओं से रक्षा करे,    बने भक्त की ढाल।
बरसे जब माँ की कृपा, कर दे मालामाल।।५।।

मधुर-भाव चुन चाव से, सजा रही दरबार।
मेरे घर भी अंबिके,  आना  अबकी  बार।।६।।

माता के दरबार में, कोई ऊँच न नीच।
समरसता बरसे यहाँ, भर-भर नेह उलीच।।७।।

शिव-आराधन लीन हो,     त्यागे सारे भोग।
बिल्व पत्र के बल किए, सिद्ध साधना योग।।८।।

निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं,      पड़ा अपर्णा नाम।।९।।

लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।१०।।

चाह घनी मन में बसी, पाना है निज प्रेय।
भूलीं सारे भोग माँ,  याद रहा बस ध्येय।।११।।

सुख-दुख में समभाव हो, रहे बीच बन सेतु।
साधन शक्ति सुमंगला,  बने विजय का हेतु।।१२।।

वाम हस्त सोहे कमल, दाएँ हस्त त्रिशूल।
शैलसुता बृषवाहिनी, हरतीं जग के शूल।।१३।।

अर्द्ध चंद्र मस्तक फबे, कर सोहे त्रिशूल।
ताप हरो  माँ शैलजे, हर  लो सारे  शूल।।१४।।

कठोर व्रती तपस्विनी, ब्रह्मचारिणी मात।
भक्ति-मगन शिवलीन हो, भूलीं सुधबुध गात।।१५।।

लिए कमंडल वाम में, दाएँ में जप-माल।
तप निरत ब्रह्मचारिणी, दमके तेजस भाल।।१६।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"किंजल्किनी" से

फोटो गूगल से साभार