अद्भुत माँ की शक्तियाँ, अद्भुत माँ का रूप।
दर्शन देतीं भक्त को, धारे रूप अनूप।।१।।
नवरातों में पूज लो, मैया के नवरूप।
मोहक छवि मन में बसा, हो जाओ तद्रूप।।२।।
कलुष वृत्ति मन की हरें, माता के नव रूप।
भक्ति-शक्ति के जानिए, मूर्तिमंत स्वरूप।।३।।
पूजो माता के चरन, ध्या लो उन्नत भाल।
वरद हस्त माँ का उठे, हर ले दुख तत्काल।।४।।
रिपुओं से रक्षा करे, बने भक्त की ढाल।
बरसे जब माँ की कृपा, कर दे मालामाल।।५।।
मधुर-भाव चुन चाव से, सजा रही दरबार।
मेरे घर भी अंबिके, आना अबकी बार।।६।।
माता के दरबार में, कोई ऊँच न नीच।
समरसता बरसे यहाँ, भर-भर नेह उलीच।।७।।
शिव-आराधन लीन हो, त्यागे सारे भोग।
बिल्व पत्र के बल किए, सिद्ध साधना योग।।८।।
निराहार निर्जल शिवा, शिवमय सुबहो-शाम।
त्याग पर्ण तन धारतीं, पड़ा अपर्णा नाम।।९।।
लिए शंभु की चाह में, जन्म एक सौ आठ।
जपें शिवा शिव नाम बस, भूलीं सारे ठाठ।।१०।।
चाह घनी मन में बसी, पाना है निज प्रेय।
भूलीं सारे भोग माँ, याद रहा बस ध्येय।।११।।
सुख-दुख में समभाव हो, रहे बीच बन सेतु।
साधन शक्ति सुमंगला, बने विजय का हेतु।।१२।।
वाम हस्त सोहे कमल, दाएँ हस्त त्रिशूल।
शैलसुता बृषवाहिनी, हरतीं जग के शूल।।१३।।
अर्द्ध चंद्र मस्तक फबे, कर सोहे त्रिशूल।
ताप हरो माँ शैलजे, हर लो सारे शूल।।१४।।
कठोर व्रती तपस्विनी, ब्रह्मचारिणी मात।
भक्ति-मगन शिवलीन हो, भूलीं सुधबुध गात।।१५।।
लिए कमंडल वाम में, दाएँ में जप-माल।
तप निरत ब्रह्मचारिणी, दमके तेजस भाल।।१६।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
"किंजल्किनी" से
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