बला और पर डालकर, साध चले निज काज।
देखे हमने आज ही, ऐसे तिकड़म बाज।।
आगे-आगे देखिए, क्या-क्या करें कमाल।
किसमें इतना दम कहो, इनसे करे सवाल।।
चढ़ा आवरण झूठ का, दिखते हैं झक्कास।
कहने भर के ठाठ बस, भीतर से खल्लास।।
लोभ-द्वेष औ स्वार्थ का, लगा जिन्हें है रोग।
जुड़ पाएंगे क्या कभी, मन से ऐसे लोग ?
चालू अपनी चाल चल, मंद-मंद मुस्कात।
दुरुपयोग कर शक्ति का, रचता नित उत्पात।।
© सीमा अग्रवाल
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