Wednesday 13 March 2024

सब दिन एक न होते हैं....

सब दिन एक  न  होते हैं...

नित  परिवर्तित   होते  हैं।
सब दिन एक  न  होते हैं।

कैसे   उनको   समझाएँ,
बात - बात  पर  रोते  हैं।

दुख भी  अपने  साथी हैं,
मैल  मनों  का   धोते  हैं।

देखो  अपने  घर  में   ही, 
कहाँ  एक  सब  होते  हैं।

कुछ के हिस्से कलियाँ तो,
कुछ  काँटों  पर  सोते  हैं।

ऐसे  भी  हैं    लोग  यहाँ,
भार  और   का  ढोते  हैं।

मोल समझते पल-पल का,
वक्त  न  अपना  खोते  हैं।

रत  रहते    परमारथ    में
बीज  खुशी  के  बोते   हैं।

© डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

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