असीम आकाश
Tuesday 12 March 2024
आया कलयुग घोर...
कांजी की इक बूँद से, फटते नहीं समुद्र।
मान न घटता आपका, कह लें कुछ भी क्षुद्र।।
घड़ा पाप का भर गया, आया कलयुग घोर।
चोरी करके हँस रहा, खड़ा सामने चोर।।
घाघ सरीखे जन हुए, करें न सीधी बात।
घेरे रहता आजकल, भय कोई अज्ञात।।
© सीमा अग्रवाल
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment