अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर-
अपनी सुविधा के लिए, जोड़-तोड़ कर कर्म।
नियम पुरुष ने खुद गढ़े, कहा उन्हें फिर धर्म।।१।।
अपराधों का आंकड़ा, बढ़ जाता हर बार।
नर पर आश्रित नारियाँ, सहने को लाचार।।२।।
जागो जग की नारियों, लो अपने अधिकार।
त्याग तुम्हारा ये पुरूष, बना रहे हथियार।।३।।
जानें समझें बेटियाँ, अपना हर अधिकार।
निज पैरों पर हों खड़ी, कहे न कोई भार।।४।।
वृत्ति आसुरी त्याग दो, बनो मनुष्य महान।
नारी का आदर करो, पाओ खुद भी मान।।५।।
नारी अब पीछे कहाँ, गढ़ती नव प्रतिमान।
बना रही हर क्षेत्र में, नित नूतन पहचान।।६।।
अब नारी के रूप में, हुआ बहुत बदलाव।
हर क्षण आगे बढ़ रही, पाँव नहीं ठहराव।।७।।
नारी अब अबला नहीं, करती डटकर वार।
अपने पैरों पर खड़ी, नहीं किसी पर भार।।८।।
बढ़चढ़ हर उद्योग में, हासिल करे मुकाम।
घर-बाहर सब देखती, बिना किए आराम।।९।।
नारी बहुत सशक्त है, दीन-हीन मत जान।
सकल सृष्टि की जननी, शक्ति-पुंज महान।।१०।।
नारी नर की जननी, नारी जगत- आधार।
ये सृष्टि क्या सृष्टा भी, बिन नारी निरधार।।११।।
न हो आश्रित कभी नर पर, इसी में श्रेय नारी का।
खड़ी हो पैर पर अपने, प्रथम हो ध्येय नारी का।
जना ब्रह्मांड है जिसने, भला कमतर किसी से क्यों ?
करे जो मान नारी का, वही हो प्रेय नारी का।
डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र )
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