Friday 24 May 2024

भाई मुझको बुला रहा है...

भीगी आँखें देख रही हैं,
चित्र कुछ धुँधले बचपन के !
बाँहों का अपनी पलना बनाकर,
भाई मुझको झुला रहा है !

कभी खींचता नाक मेरी,
कभी खींच देता है चोटी !
कभी कहता गुड़िया, मुनिया,
कभी चिढ़ाता कहकर मोटी !

उलटे सीधे नाम रखकर,
कैसे वो मुझको रुला रहा है !

कल जल्दी फिर उठना है,
अब तो प्यारी बहना सो जा !
कल कर  लेंगे बातें बाकी,
अब मीठे सपनों में खो जा !

आँखों में अपनी नींद लिए
थपकी दे मुझको सुला रहा है ।

पर क्या ! आज उदास बहुत वो,
किसी गम ने उसको घेरा है !
कहता है राह न सूझती कोई,
मन में छाया गहन अँधेरा है ! 

कुछ अपने मन की कहने को,
भाई मुझको बुला रहा है ।

रोको न कोई आज मुझे,
खोल दो इन पाँव की बेड़ी !
जाना ही होगा आज मुझे,
डगर हो चाहे कितनी टेढ़ी !

काँधे पर मेरे सर रखने को,
भाई मुझको बुला रहा है !
     मेरा भाई मुझको बुला रहा है !

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

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