मधुर शहद की बूँद सम, परम ज्ञान की सीख।
समझ बुद्ध की देशना, जैसे मीठी ईख।।
पंचशील धारण करे, रखे आत्मा शुद्ध।
तब जाकर मानव बने, बोधिसत्व से बुद्ध।।
सहज भाव सम्यक् वरे, करे स्वयं से युद्ध।
पारमिताएँ पूर्ण कर, बने बोधि से बुद्ध।।
मनसा-वाचा-कर्मणा, सरल-विमल-अति शुद्ध।
दया-भाव जिसमें भरा, कहते उसको बुद्ध।।
सुनो बुद्ध की देशना, गुनो कथ्य का सार।
अनथक पथ बढ़ते चलो , पा जाओगे पार।।
मन को अपने जानकर, बढ़ चल मन के पार।
करुण दृष्टि हर जीव पर, सुख का सम्यक् सार।।
अंतर्मन ज्योतित रहे, बनो स्वयं निज दीप।
रहें आत्म-परमात्म यों, ज्यों मोती अरु सीप।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
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