क्या मिलेगा भला, मजहबी रार से ?
नाथ लें हम दिलों, को सहज प्यार से।
आ मिलें सब गले, क्यों रहें अनमने,
फूल कोई न हो, अब विलग हार से।
वो मुझे दोष दे, मैं उसे दोष दूँ।
जुड़ सकेंगे न यों, तार करतार से।
क्या सही कर्म ये, मानवों के लिए ?
निर्बलों को दलें, शाक्त यलगार से।
हैं सभी अंश हम, उस परम तत्व का,
एकजुट सब रहें, एक परिवार -से।
हाथ में हाथ ले, शपथ ये लें चलो।
मुक्त कर दें धरा, दानवी भार से।
हो दुआ बस यही, बच रहे ये जहां,
कुदरती मार से, वक्त के वार से।
मैं तुम्हें जान दूँ, तुम मुझे जिंदगी।
हो यही प्रण सदा, यार का यार से।
बात 'सीमा' बने, ध्यान से सब सुनें।
लेखनी जब चले, तेज तलवार से।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र )
V.nice
ReplyDeleteThanks nishi ❤️
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