Monday 6 May 2024

देख सिसकता भोला बचपन...

सुरभित सृजन" में प्रकाशित मेरी तीन स्वरचित मौलिक रचनाएँ...

१- देख सिसकता भोला बचपन...

देख सिसकता भोला बचपन,
भारी बोझ तले।
क्या किस्मत है इन बच्चों की,
मन में सोच पले।

पूर्ण तृप्ति के एक कौर को,
कैसे  तरस  रहे।
सामने मालिक मूँछो वाले,
इन पर बरस रहे।
हल न कोई पीर का इनकी,
बेबस हाथ मले।

दिन पढ़ने-लिखने के, पर ये
कचरा बीन रहे।
जीवन पाकर भी मानव का,
भाग्य-विहीन रहे।
हास-हौंस-उल्लास बिना ही,
जीवन चला चले।

कोई खाए पिज्जा बर्गर,
कोई जूस पिए।
घूँट सब्र का पी रहे ये,
दोनों होंठ सिए।
छप्पन भोग भरी थाली का,
सपना रोज छले।

खिलने से पहले ही कोमल,
कलियाँ मसल रहे।
हाय कहें क्या अपने जन ही,
सपने कुचल रहे।
सुनी करुण जो गाथा इनकी,
आँसू बह निकले।

कोई कहे मनहूस इनको,
कोई करमजला।
कौन कहे कैसे सँवरेगा,
इनका भाग्य भला।
विपदा जमकर बैठी ऐसे,
टाले नहीं टले।

पाएँ वापस बचपन अपना,
मोद भरे उछलें।
मुक्त उड़ान भरें पंछी-सी,
कोमल पंख मिलें।
सुलभ इन्हें भी हों सारे सुख
मेरी दुआ फले।

२- अपनी गजब कहानी...

मैं हूँ उसका राजा बाबू,
वो है मेरी रानी।
अपनी गजब कहानी।

उसकी खातिर सारे जग से,
नाता मैंने तोड़ा।
उसे खिलाता छप्पन व्यंजन,
पर खुद खाता थोड़ा।
बनी रही अंजान मगर वह,
कदर न मेरी जानी।
अपनी गजब कहानी...

बहुत प्रिया के नखरे देखे,
बहुतहिं करी चिरौरी।
उसे मनाने अल्मोड़ा से,
लाया ढूँढ सिंगौरी।
फूली कुप्पा बनी रही वह,
एक न मेरी मानी।
अपनी गजब कहानी...

कभी प्यार से कहती मुझसे,
सुन ओ मेरे राजा।
बिन तेरे मैं जी न सकूँगी,
रूठ के मुझसे न जा।
साथ-साथ बस हँसते-रोते,
हमको उम्र बितानी।
अपनी गजब कहानी...

रुनझुन-रुनझुन पायल उसकी,
गीत-गज़ल सब गाती।
रह जाता मैं देख ठगा-सा,
बात न मुँह तक आती।
आती जब-जब पास मिरे वो,
ओढ़ चुनरिया धानी।
अपनी गजब कहानी...

कभी प्यार से गले लगाती,
आँखें कभी दिखाती।
कहकर बुद्धू भोला मुझको,
कितने सबक सिखाती।
लगे नहीं रति से कमतर, जब
बातें करे रुमानी।
अपनी गजब कहानी...

सूनी उस बिन दिल की नगरी,
सूना ये घर-आँगन।
नेह-सिक्त आँचल बिन उसके,
बीते सूखा सावन।
हाथ में उसका हाथ रहे तो,
हर रुत लगे सुहानी।
अपनी गजब कहानी...

३- कुछ दोहे...

मेरी भी प्रभु सुध धरो, छुपा न तुमसे हाल।
पीर गुनी जब भक्त की, दौड़ पड़े तत्काल।।१।।

समता उसके रूप की, मिले कहीं ना अन्य।
निर्मल छवि मन आँककर, नैन हुए हैं धन्य।।२।।

दिल में उसकी याद है, आँखों में तस्वीर।
उलझे-उलझे ख्वाब की, कौन कहे ताबीर।।३।।

चाहे कितना हो सगा, देना नहीं उधार।
एक बार जो पड़ गयी, मिटती नहीं दरार।।४।।

पुष्पवाण साधे कभी, साधे कभी गुलेल।
हाथों में डोरी लिए, विधना खेले खेल।।५।।

प्रक्षालन नित कीजिए, चढ़े न मन पर मैल।
काबू में आता नहीं,   अश्व  अड़ा  बिगड़ैल।।६।।

एक बराबर वक्त है, हम सबके ही पास।
कोई सोकर काटता, कोई करता खास।।७।।

कला काल से जुड़ करे, सार्थक जब संवाद।
कालजयी रचना बने, लिए  सुघर  बुनियाद।।८।।👍

मन से मन का मेल तो, भले कहीं हो देह।
प्यास पपीहे की बुझे, पीकर स्वाती-मेह।।९।।

बात-बात पर क्रोध से, बढ़ता मन-संताप।
वशीभूत प्रतिशोध के, करे अहित नर आप।।१०।।

क्षणभर का आवेग यह,  देर तलक दे शोक।
भाव प्रबल प्रतिशोध का, किसी तरह भी रोक।।११।।

© डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ0प्र0 )


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